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नील सरस्वती स्तोत्र हिंदी अर्थ के साथ

वासंतिक गुप्त नवरात्र में इसका विशेष पाठ किया जाता है। नील सरस्वती स्तोत्र के पाठ से बच्चों का दिमाग तेज होता है।

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देवी सरस्वती Godess Saraswati

नील सरस्वती स्तोत्र

वासंतिक गुप्त नवरात्र में इसका विशेष पाठ किया जाता है। नील सरस्वती स्तोत्र के पाठ से बच्चों का दिमाग तेज होता है।

नील सरस्वती स्तोत्र (नील सरस्वती स्तोत्र) नीला सरस्वती को समर्पित अत्यंत शक्तिशाली महामंत्र है जिसका पाठ शत्रु के कारण हो रही परेशानियों से निपटने में काफी मददगार साबित होता है। इसके पाठ से आप अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इस स्तोत्र को जो व्यक्ति नवरात्र के अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी के दिन अथवा प्रतिदिन इसका पाठ करता है उसके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है।

देवी नीला सरस्वती को तारा देवी के नाम से भी जाना जाता है। परंपरागत रूप से यह माना जाता है कि देवी तारा की कृपा से व्यास मुनि अठारह महापुराणों की रचना की। इस स्तोत्र का पाठ बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा में किया जाता है। इसके अलावा मां सरस्वती देवी की नियमित पूजा में नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं। नील सरस्वती स्तोत्र के लाभ: विशेषकर बच्चों को इस स्तोत्र का पाठ पढ़ाना लाभकारी होता है। नील सरस्वती स्तोत्र के पाठ से बच्चों का दिमाग तेज होता है, पढ़ाई में निपुण होते हैं, सभी प्रकार की कलाओं में निपुण होते हैं और स्मरण शक्ति भी तेज होती है। इस नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करने से मां सरस्वती जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि ज्योतिषी नील सरस्वती स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें तो भविष्यवाणियाँ सत्य और अटल हो जाती हैं।

नील सरस्वती स्तोत्र

घोर रूपे महारावे सर्वशत्रु भयंकरि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।१।।

भयानक रूपवाली, घोर निनाद करनेवाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करनेवाली तथा भक्तों को वर प्रदान करनेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।

ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।२।।

देव तथा दानवों के द्वारा पूजित, सिद्धों तथा गन्धर्वों के द्वारा सेवित और जड़ता तथा पाप को हरनेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।

जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।३।

जटाजूट से सुशोभित, चंचल जिह्वा को अंदर की ओर करनेवाली, बुद्धि को तीक्ष्ण बनानेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।

सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते।
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणा गतम्।।४।

सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। हे सृष्टिस्वरुपिणि ! आपको नमस्कार है, मुझ शरणागत की रक्षा करें।।

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।५।

आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं। हे देवि ! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें।।

वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नम:।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्।।६।

वं ह्रूं ह्रूं बीजमन्त्रस्वरूपिणी हे देवि ! मैं आपके दर्शन की कामना करता हूँ। बलि तथा होम से प्रसन्न होनेवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। उग्र आपदाओं से तारनेवाली हे उग्रतारे ! आपको नित्य नमस्कार है, आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।७।

हे देवि ! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढ़ता का नाश करें। आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।

इन्द्रा दिविलसद द्वन्द्ववन्दिते करुणा मयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणा गतम्।।८।

इन्द्र आदि के द्वारा वन्दित शोभायुक्त चरणयुगल वाली, करुणा से परिपूर्ण, चन्द्रमा के समान मुखमण्डलवाली और जगत को तारनेवाली हे भगवती तारा ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।।

अष्टभ्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां य: पठेन्नर:।
षण्मासै: सिद्धिमा प्नोति नात्र कार्या विचारणा।।९।

जो मनुष्य अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी तिथि को इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह छः महीने में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए।।

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां विद्यां तर्क व्याकरणा दिकम।।१०।

इसका पाठ करने से मोक्ष की कामना करनेवाला मोक्ष प्राप्त कर लेता है, धन चाहनेवाला धन पा जाता है और विद्या चाहनेवाला विद्या तथा तर्क – व्याकरण आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेता ह।।

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाऽन्वित:।
तस्य शत्रु: क्षयं याति महा प्रज्ञा प्रजा यते।।११।

जो मनुष्य भक्तिपरायण होकर सतत इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके शत्रु का नाश हो जाता है और उसमें महान बुद्धि का उदय हो जाता ह।।

पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय:।।१२।

जो व्यक्ति विपत्ति में, संग्राम में, मूर्खत्व की दशा में, दान के समय तथा भय की स्थिति में इस स्तोत्र को पढ़ता है, उसका कल्याण हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है।।

इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनि मुद्रां प्रदर्श येत।।१३।।

इस प्रकार स्तुति करने के अनन्तर देवी को प्रणाम करके उन्हें योनिमुद्रा दिखानी चाहिए।।

।।इति नीलसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

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