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भद्रा, तिथि,करण, योग, वार, पक्ष

Bhadra, Tithi, Karan, Yoga, Vaar, Paksha

शुभ मुहूर्त एवं नक्षत्र विज्ञान

सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण 2025 * विवाह शुभ मुहूर्त * वधूप्रवेश द्विरागमन मुहूर्त * नूतन वधु द्वारा पाकारंभ मुहूर्त * वर वरण वरीक्षा मुहूर्त * गृहप्रवेश मुहूर्त * भूमि पूजन गृहारंभ मुहूर्त * उपनयन मुहूर्त * अन्नप्राशन मुहूर्त * नामकरण मुहूर्त * कर्णवेध मुहूर्त * मुंडन (चौल) मुहूर्त * अक्षरारंभ विद्यारंभ मुहूर्त * वाहन मुहूर्त * सम्पत्ति क्रय मुहूर्त * व्यापार मुहूर्त * जलशयाराम देव प्रतिष्ठा मुहूर्त * हल प्रवहण बीजोप्ती मुहूर्त * कूपारम्भ बोरिंग मुहूर्त * स्वर्ण क्रय विक्रय मुहूर्त * इस वर्ष में पंचक * मुहूर्त कितने प्रकार के होते हैं? * जानिए अपने सपनों का अर्थ * अंगों पर छिपकली गिरने का फल * हिंदू पंचांग एवं अयन * हिन्दू वर्ष एवं मास * भद्रा, तिथि,करण, योग, वार, पक्ष * खरमास, धनु संक्रान्ति क्या है? * मकर संक्रांति * कुंभ संक्रांति * मेष संक्रांति * कालसर्प योग एवं उसका निवारण
 
भद्रा, तिथि,करण, योग, वार, पक्ष Bhadra, Tithi, Karan, Yoga, Vaar, Paksha
 

भद्रा, तिथि,करण, योग, वार, पक्ष

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

तिथि या चन्द्र दिवस किसे कहते हैं?

जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच जब 12° (अंश) की दूरी होती हैं तो इसे एक तिथि कहते हैं और इसी तिथि का दूसरा नाम चन्द्र दिन है। ऐसे चन्द्र दिन एक एक वर्ष में 354 होते है। अर्थात् हम कह सकते हैं कि एक वर्ष में 354 चन्द्र दिवस अर्थात 354 तिथि होते हैं।

पंचांग के आधार पर तिथि उन्नीस घंटे से लेकर छब्बीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में 30 तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।

तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)।

नक्षत्र दिन किसे कहते हैं?

आकाश में प्रवह नामक वायु से प्रेरित होकर सभी ग्रह निरन्तर अत्यन्त वेगायमान होकर पश्चिम दिशा में जाते हुए दिखलाई पड़ते हैं। इसी प्रवहवायु के प्रभाव से नक्षत्र पूर्व क्षितिज से चलकर जितने समय में पुनः उसी पूर्वी क्षितिज में आता है उस काल को ही नक्षत्र दिन के नाम से जाना जाता है। नक्षत्र दिन 60 घटी अर्थात् 24 घण्टे का ही होता है। इसकी अवधि में एक निमेष भी कम या अधिक नहीं होता है। सूर्यसिद्धान्त में कहा है कि "नाडीषष्ठ्‌यातुनाक्षत्रमहोरात्रं प्रकीर्तितम्" अर्थात् सौर दिन हो या चान्द्रदिन अथवा सावन दिन इनका मान स्थिर नहीं है परन्तु केवल नाक्षत्र दिन ही मात्र एक ऐसा दिन है कि जिसका मान प्रायः 60 घटी अथवा 24 घण्टे निश्चित है।

सौर दिन किसे कहते हैं?

सामान्यतः शब्द से ही ज्ञात हो रहा है कि सौर दिन का सम्बन्ध सूर्य से है। अतः शास्त्रीय मान्यता के अनुसार हम कह सकते हैं कि राशि वृत्त के सूर्य के द्वारा राशि वृत्त के एक अंश को भोगने में लिया जाने वाला समय सौर दिन कहलाता है। इस प्रकार एक अंश को भोगने में एक सौर दिन का समय लगता है अतः360 अंशों का भ्रमण करने में 360 सौर दिन लगते है। सूर्य के द्वारा लगाए गए इसी एक भ्रमण को सौर वर्ष के नाम से जानते हैं।

अहोरात्र या सावन दिन किसे कहते हैं?

सामान्यतः कहें तो एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के मध्य का समय सावन दिन होता है। इस सम्बन्ध में सूर्य सिद्धान्त में लिखा है "उदयादुदयं भानोभूमि सावनवासर:" यह लगभग 24 घण्टे का होता है इसी को अहोरात्र भी कह सकते है और भूमि पर व्यवहार में आने वाला दिन भी यही सावन दिन ही होता है।

वार

एक सप्ताह में सात दिन होते हैं:-सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार।

पक्ष किसे कहते हैं?

प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक चन्द्र मास में दो पक्ष होते हैं शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।

जब सूर्य और चन्द्रमा एक राशि अंश कला आदि पर स्थित होते हैं तो वह बिन्दु अमान्त अथवा प्रतिपदा का आदि बिन्दु होता है। जैसे ही चन्द्रमा अपनी अधिक गति के कारण सूर्य को पीछे छोड़ आगे बढ़ता है और सूर्य से 12 अंश आगे आता है तो शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा समाप्त होती है। इसी प्रकार जब चन्द्रमा सूर्य से ठीक सामने 180 अंश पर स्थित होता है वह पूर्णिमान्त बिन्दु होता है, और फिर इसी प्रकार 180 अंश से 12-12 अंश आगे बढ़ता हुआ पुनः सूर्य के पास आता है और एक समान राशि अंश कला आदि पर पहुंचता है तब पुनः अमान्त हो जाता है। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि जब सूर्य और चन्द्रमां का परस्पर अन्तर 180 अंश का रहता है। तब शुक्ल पक्ष होता है। जब यह अन्तर 360 अथवा 00 अंशात्मक अथवा (शून्य) अन्तर हो तब कृष्ण पक्ष होता है।

नक्षत्र किसे कहते हैं?

नक्षत्र आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। मूलत: नक्षत्र 27 माने गए हैं। ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है। चंद्रमा उक्त सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है। ये 27 नक्षत्र हैं - 1. अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृत्तिका, 4. रोहिणी, 5. मॄगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेशा, 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तराफाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाती, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढा, 21. उत्तराषाढा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्व भाद्रपद, 26. उत्तर भाद्रपद, 27. रेवती |

योग किसे कहते हैं?

योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:-
27 योगों के नाम -
विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यतीपात, वरीयान्, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।

27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति

करण किसे कहते हैं? भद्रा किसे कहते हैं?

एक करण चंद्रमा और सूर्य के बीच 6 डिग्री के अंतर के बराबर होता है। एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किंस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किंस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

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