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Kalsarpa Yoga

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कालसर्प योग किसे कहते हैं? क्या होता है कालसर्प योग?

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

कालसर्प योग को अत्यंत अशुभ योग माना गया है। कालसर्प योग से जो जातक प्रभावित होते है उन्हें स्वप्न में सर्प दिखाई देते है। जातक अपने कार्यों में कठिन परिश्रम करने के बावजूद अपने आशाओं जैसी सफलता प्राप्त नहीं कर पाता। हमेशा मानसिक चिन्ताओं से तनाव ग्रस्त रहता है। अकारण लोगों से शत्रुता बढ़ती है। गुप्त शत्रु सक्रिय रहते है। जिससे सही निर्णय नहीं ले पाता। पारिवारिक जीवन कलह पूर्ण हो जाता है। विवाह में विलम्ब और वैवाहिक जीवन में तनाव के साथ अनिष्टकारी स्थितियां हो जाती है।

कुंडली में कैसे बनता है कालसर्प योग?

भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह मन जाता है। इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है लेकिन यह व्यक्ति के जीवन पर व्यापक असर डालते हैं। राहु और केतु हमेशा बक्रगति से चलते है। राहु से केतु की ओर बननेवाला योग ही कालसर्प योग बनता है। केतु से राहु की ओर बनने वाला योग अनेक ज्योतिष द्वारा कालसर्प योग नही माना जाता। कालसर्प योग किसी न किसी पूर्व जन्मकृत दोष अथवा पितृदोष के कारण बनता है।

ज्योतिष शास्त्र में सर्प से राहु और केतु का सम्बन्ध जोड़ा गया है। राहु को सर्प का मुख और केतु को पूँछ माना जाता है। राहु और केतु ऐसे ग्रह हैं जो हमेशा एक दूसरे के सामने रहते हैं या यूँ कहें की एक दूसरे के सापेक्ष हमेशा 180 डिग्री पर होते हैं। यदि राहु कुंडली के पहले भाव में स्थित है तो केतु हमेशा सातवें भाव में होगा, यदि केतु ग्यारहवें भाव में है तो राहु हमेशा पांचवे भाव में स्थित होगा।

अब यदि किसी की कुंडली में बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के अक्ष के एक तरफ ही आ जाएँ तो यह एक योग का निर्माण करेगा जिसे हम कालसर्प योग के नाम से जानते हैं। उदहारण के लिए मान लेते हैं की किसी की कुंडली में राहु पंचम भाव में और केतु ग्यारहवें भाव में स्थित है। अब यदि बाकी सारे ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि) राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ यानी छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें भाव या फिर बारहवें, पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे भाव में ही स्थित हो जाएँ तो उस कुण्डली में कालसर्प योग माना जायेगा। जातक को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यवसाय आदि से कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

कालसर्प योग प्रमुख रूप से भाव के आधार से 12 प्रकार के होते है। 1. अनन्त कालसर्प योग, 2. कुलिक कालसर्प योग, 3. शंख कालसर्प योग, 4. वासुकि कालसर्प योग, 5. पद्म कालसर्प योग, 6. महापद्म कालसर्प योग, 7. तक्षक कालसर्प योग, 8. कर्कोटक कालसर्प योग, 9. शंखनाद (शंखचूड़) कालसर्प योग, 10. घातक कालसर्प योग, 11. विषधर कालसर्प योग, 12. शेषनाग कालसर्प योग

1. अनन्त कालसर्प योग- लग्न से सप्तम भाव तक बनने वाला योग है। जिससे जातक को मानसिक अशांति, कपट बुद्धि, वैवाहिक जीवन का दुःखमय होना तथा जातक को आगे बढ़ने में काफी संघर्ष करना पड़ता है।

2. कुलिक कालसर्प योग- द्वितीय स्थान से अष्टम स्थान तक पड़ने वाला योग जिससे जातक का स्वस्थ्य प्रभावित होता है। आर्थिक क्षेत्र में अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। जातक के वाणी में कर्कशपन से कलहपन की स्थिति बन जाती है। पारिवारिक विरोध, अपयश का भागी, विवाह में विलम्ब तथा विच्छेदक भी बन जाता है।

3. शंखपाल कालसर्प योग- यह योग चतुर्थ से दशम् भाव में बनता है। जिससे जातक नौकरी, विद्याध्यन आदि में रुकावटें खड़ी होती है। व्यापार में घाटा आदि होना या सामना करना पड़ता है तथा कोई न कोई समस्या विघ्न में डाल देती है।

4. वासुकि कालसर्प योग- यह योग तृतीय से नवम् भाव में बनता है। पारिवारिक विरोध, भाई-बहनों से मन मुटाव, मित्रों से धोखा मिलता है। कानूनी रुकावटें, धर्म के प्रति नास्तिकता, नौकरी, धंधे में उलझने बनी रहती है। जातक के साथ कोई न कोई बदनामी जुड़ी रहती है। मानसिक तनाव बना रहता है।

5. पद्म कालसर्प योग- पंचमी से एकादश भाव में राहु-केतु होने से यह योग बनता है। ऐसे जातक को विद्याध्यन में रुकावटें आती है। संतान सुख में कमी या सन्तानों का दूर रहना या विच्छेद होना, पत्नी व मित्रों से विश्वास में कमी, जुआ, लाटरी, सट्टा में सर्वस्व स्वाहा करना, विश्वासो व्यक्तियों से धोखा, संघर्ष पूर्ण जीवन बितना जातक की शिक्षा अपूर्ण रहना आदि।

6. महापद्म कालसर्प योग - छ: से बारहवें भाव में राहु और केतु होने से यह योग बनता है। आत्मबल में गिरावट, पत्नी विछोह, प्रयत्न के बाद भी बिमारियाँ नही छूटती है, गुप्त शत्रु निरन्तर षड्यन्त्र करते रहते है, यात्राओं की अधिकता रहती है।

7. तक्षक कालसर्प योग- सप्तम् से लग्न तक राहु-केतु होने से यह योग बनता है। इसमें प्रभाव, वैवाहिक जीवन एवं सम्पत्ति के स्थायित्व, जीवन साथी से विछोह, प्रेम प्रसंग में असफलता, बनते कार्यों में रुकावटें आना, बड़ा पद मिलते-मिलते रुक जाता है। असाध्य रोगों से जूझना पड़ता है। मानसिक परेशानी बनी रहती है।

8. कर्कोटक कालसर्प योग- अष्टम् भावः से द्वितीय भाव तक राहु-केतु होने से कर्कोटक कालसर्प योग बनता है। जातक को अल्प आयु, दुर्घटना का भय, ऊपरी बाधाएँ, स्वास्थ्य चिन्ता, अर्थानि, व्यापार में नुक्शान, अधिकारियों से मन मुटाव, साझेदारी में धोखा, अकाल मृत्यु आदि संयोग का सामना करना पड़ता है।

9. शंखनाद (शंखचूड़) कालसर्प योग- नवम् से तृतीय भाव में राहु-केतु होने से शंखनाद (शंखचूड़) कालसर्प योग बनता है। भाग्योदय में परेशानी, मित्रों द्वारा कपट, आगे बढ़ने में रुकावटे, व्यापार में घाटा, नौकरी आदि में अवनति, घरेलू आपसी संबन्ध में दरार, शासन से कार्यों में अवरोध, जातक के सुख में कमी।

10. घातक कालसर्प योग- दशम् से चतुर्थ भाव तक राहु-केतु होने से बातक कालसर्प योग बनता है। व्यापार में घाटा, साझेदारों में मन मुटाव व सरकारी अधिकारियों से अनबन, माता-पिता, दादा-दादो का वियोग, गृहस्थ जीवन में कष्ट, निरन्तर बढ़ती चिन्तायें।

11. विषघर कालसर्प योग- एकादश स्थान से पंचम् स्थान में राहु-केतु स्थित होने से विषधर काल सर्पयोग बनता है। इस योग में उच्च शिक्षा में बाधा, नेत्र पोड़ा, अनिद्रारोग, किसी लम्बी बिनारी का योग, काका व चचेरे भाइयों में झगड़ा। परिवार में विग्रह, धन के मामले में बदनामी, जन्म स्थान से दूर जाना आदि।

12. शेषनाग कालसर्प योग- द्वादश से षष्ठ भाव में राहु-केतु स्थित होने से यह योग बनता है। शत्रुओं को अधिकता, जातकों को कोर्ट-कचहरी में पराजय का सामना होता है। निराशा अधिक रहती है। मनचाहा कार्य में रुकावट होती है। दिल दिमाग परेशान रहता है, कर्जा उतारने में रुकावटें खड़ी होती है। हर कार्य में विलम्ब होता है।

राहु की पीड़ा व दोष के निवारण हेतु बुधवार, शनिवार को 1. काला तिल, 2. नीला कपड़ा, 3. कम्बल, 4. कालेरंग का फूल, 5. सरसों का तेल, 6. अभ्रक, 7. सौला, 8. सूप, 9. गोमेद, 10. गेहूँ, गुड़ और दक्षिणा रात्रिकाल में दान करें।

कालसर्प योग की शांति हेतु उपाय

1. श्रावण मास में रूद्राभिषेक अवश्य करें।
2. तीर्थराज प्रयाग में तर्पण और श्राद्ध कर्म सम्पन्न करें।
3. कालसर्प के शान्ति का उपाय रात्रि में किया जाय। राहु के सभी पूजन शिव मन्दिर में रात्रि के समय या राहुकाल में करें। शिवलिंग पर मिसरी एवं दूध अर्पित करें। शिव तांडव स्त्रोत का नियमित पाठ करें। नियमित पंचाक्षर मंत्र का जप करें।
4. नियमित मूली दान करें। बहते जल में कोयला प्रवाहित करें।
5. मसूर की दाल सफाई कर्मचारी को कुछ पैसे सहित प्रात:काल दें।
6. बहते जल में विधान सहित पूजनकर दूध के साथ चांदी के नाग, नागिन के जोड़े प्रवाहित करें।
7. प्रत्येक महोने को पंचमी तिथि को एक नारियल नदी के जल में प्रवाहित करें।
8. प्रत्येक अमावस्या को काला तिल, नारियल एवं कोयला काले कपड़े में बांधकर जल में बहायें।

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