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मेष संक्रान्ति चैत्र संक्रान्ति

Aries Sankranti

शुभ मुहूर्त एवं नक्षत्र विज्ञान

विवाह शुभ मुहूर्त * वधूप्रवेश द्विरागमन मुहूर्त * नूतन वधु द्वारा पाकारंभ मुहूर्त * वर वरण वरीक्षा मुहूर्त * गृहप्रवेश मुहूर्त * उपनयन मुहूर्त * अन्नप्राशन मुहूर्त * नाकुंभण मुहूर्त * कर्णवेध मुहूर्त * मुंडन (चौल) मुहूर्त * अक्षरारंभ विद्यारंभ मुहूर्त * भूमि पूजन गृहारंभ मुहूर्त * वाहन मुहूर्त * सम्पत्ति क्रय मुहूर्त * व्यापार मुहूर्त * जलशयाराम देव प्रतिष्ठा मुहूर्त * हल प्रवहण बीजोप्ती मुहूर्त * कूपारम्भ बोरिंग मुहूर्त * स्वर्ण क्रय विक्रय मुहूर्त * मुहूर्त कितने प्रकार के होते हैं? * जानिए अपने सपनों का अर्थ * अंगों पर छिपकली गिरने का फल * हिंदू पंचांग एवं अयन * हिन्दू वर्ष एवं मास * भद्रा, तिथि,करण, योग, वार, पक्ष * खरमास, धनु संक्रान्ति क्या है? * मकर संक्रांति * कुंभ संक्रांति * मेष संक्रांति * कालसर्प योग एवं उसका निवारण
 
मेष संक्रान्ति  चैत्र संक्रान्ति Aries Sankranti
 

मेष संक्रान्ति क्या है?

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

मेष संक्रान्ति का समय

मेष संक्रान्ति का समय 13 अप्रैल दिन शनिवार को है जब सूर्य का मीन राशि से मेष राशि में गोचर होगा। यह संक्रांति रात 11 बजकर 17 मिनट पर होगा। अतः पुण्य काल 14 अप्रैल को सूर्योदय के साथ से प्रारंभ होगा।

सूर्योदय के बाद 5 घटी अवधि (यदि संक्रांति पिछले दिन सूर्यास्त के बाद होती है) और संक्रांति क्षण के बाद 1 घटी अवधि (यदि संक्रांति दिन के समय होती है) अत्यधिक शुभ होती है। यदि यह मुहूर्त उपलब्ध है तो हम इसे महापुण्य काल मुहूर्त के रूप में सूचीबद्ध करते हैं। यदि उपलब्ध हो तो महापुण्य काल मुहूर्त को पुण्य काल मुहूर्त की तुलना में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यदि मेष संक्रान्ति सूर्यास्त के बाद होती है तो पुण्य काल की सभी गतिविधियाँ अगले दिन सूर्योदय तक के लिए स्थगित कर दी जाती हैं। इसलिए पुण्य काल के सभी कार्य दिन के समय ही करने चाहिए। पुण्य काल संक्रान्ति से 8 घंटा पूर्व से और 16 घंटा पीछे तक रहता है।

13 अप्रैल को मेष संक्रांति सूर्यास्त के बाद रात्रि में है अत: 14 अप्रैल को मेष संक्रांति का सतुआन और बैसाखी मनाया जायेगा।

मेष संक्रान्ति महत्व -

मेष संक्रांति से नया सौर वर्ष प्रारंभ होता है। मेष संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद दान करने का विधान है। ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

सनातनी परंपरा रही है कि मेष संक्रांति के हीं दिन से शिवलिंग पर जेष्ठ शुक्ल दशमी तक (गंगा दशहरा के दिन तक) के लिए गलंतिका (जल से भरा हुआ मटका) लगाते हैं जिससे बूंद बूंद शीतल जल शिवलिंग पर टपकता रहता है। साथ हीं आज के हीं दिन शिवलिंग पर नये उपजे चने का सत्तू, आम एवं बेल फल का गुद्दा प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। इसके बाद आज के हीं दिन से घरों में शीतल जल पाने के लिए मटका का उपयोग शुरू करते हैं और सतुआन मानते हैं । यह परंपरा इस बात की सूचना है की अब गर्मी की शुरुआत हो गई है और अब शरीर का तासीर ठंडा रखने वाले भोज्य पदार्थ का उपयोग करना है।

भारत में उड़िया कैलेण्डर, तमिल कैलेण्डर, मलयालम कैलेण्डर तथा बंगाली कैलेण्डर आदि विभिन्न सौर कैलेण्डरों का पालन किया जाता है। यह सभी कैलेण्डर मेष संक्रान्ति के आधार पर ही वर्ष के प्रथम दिवस (अथवा मलयालम कैलेण्डर में विषु कानी) का निर्धारण करते हैं। सौर कैलेण्डरों में संक्रान्ति के सटीक समय के आधार पर वर्ष के प्रथम दिवस को चिह्नित करने हेतु विभिन्न नियमों का पालन किया जाता है।

उड़ीसा (आधिकारिक तौर पर ओडिशा) में हिन्दु मध्यरात्रि से पूर्व संक्रान्ति होने पर उसे ही नववर्ष का प्रथम दिवस माना जाता है। उड़ीसा में मेष संक्रान्ति को पणा संक्रान्ति के रूप में मनाया जाता है।

तमिलनाडु में जब संक्रान्ति सूर्योदय के उपरान्त तथा सूर्यास्त से पूर्व होती है, उसी दिन नववर्ष आरम्भ होता है। यदि संक्रान्ति सूर्यास्त के पश्चात् होती है तो वर्ष अगले दिन से आरम्भ होता है। तमिलनाडु में मेष संक्रान्ति को पुथन्डु के रूप में मनाया जाता है।

मलयालम कैलेण्डर में सूर्योदय तथा सूर्यास्त के मध्य के दिन को पाँच भागों में बाँटा गया है। यदि उनमें से पहले तीन भाग के भीतर संक्रान्ति होती है तो वर्ष उसी दिन से आरम्भ होता है, अन्यथा अगले दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में यदि संक्रान्ति मध्याह्न तक होती है, तो इसे उसी दिन मनाया जाता है, अन्यथा इसे अगले दिन मनाया जाता है। केरल में मेष संक्रान्ति को विषु के रूप में मनाया जाता है।

बंगाल में, जब संक्रान्ति सूर्योदय तथा मध्यरात्रि के मध्य के समय में होती है तो नववर्ष अगले दिन से आरम्भ होता है। यदि संक्रान्ति मध्य रात्रि के उपरान्त होती है तो वर्ष अगले से अगले दिन आरम्भ होता है। पश्चिम बंगाल में मेष संक्रान्ति को नबा वर्षा अथवा पोहेला बोइशाख के रूप में मनाया जाता है।

मेष संक्रान्ति को असम में बिहू तथा पंजाब में वैसाखी के रूप में मनाया जाता है।

संक्रान्ति किसे कहते हैं?

सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 12 राशि हैं। सभी ग्रह बारी बारी से इन 12 राशियों में प्रवेश करते हैं। सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करता है और जब एक राशि से दूसरे राशि में जाता है तो वह राशि परिवर्तन संक्रान्ति कहलाता है। इसलिए पूरे साल में 12 संक्रांतियां होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस राशि में प्रवेश करते हैं, उसी के अनुसार संक्रांति का नाकुंभण किया जाता है।

संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का बहुत महत्व माना जाता है। प्रत्येक संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है।

मेष संक्रान्ति पूजा विधि - संक्रान्ति व्रत

जिस दिन संक्रान्ति हो उस दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर यह संकल्प करें -

ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2081 पिंगल नाम संवत्सरे चैत्र मासे शुक्ल पक्षे षष्ठी तिथौ ..वासरे (दिन का नाम जैसे रविवार है तो "रवि वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् ज्ञाताज्ञातसमस्तपातकोपपातकदुरितक्षयपूर्वक श्रुतिस्मृति- पुराणोक्तपुण्यफलप्राप्तये श्रीसूर्यनारायणप्रीतये च मेषसंक्रमण- कालीनमयनकालीनं वा स्नानदानजपहोमादिकर्माहं करिष्ये ।'

( उदहारण के लिए - ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो, द्वितीयपरार्धे, श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे, कलियुगे, कलिप्रथमचरणे, बौद्धावतारे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, पटना नगरे, विक्रम संवत 2081 पिंगल नाम संवत्सरे, चैत्र मासे, शुक्ल पक्षे, षष्ठी तिथौ, रवि वासरे, वाशिष्ठ गोत्रोत्पन्न, साधक प्रभात शर्मोऽहम्, ज्ञाताज्ञात समस्तपातकोपपातक दुरितक्षयपूर्वक श्रुतिस्मृति- पुराणोक्तपुण्यफलप्राप्तये श्रीसूर्यनारायणप्रीतये च मेषसंक्रमण- कालीनमयनकालीनं वा स्नानदानजपहोमादिकर्माहं करिष्ये ।' )

- यह संकल्प करके वेदी या चौकीपर लाल कपड़ा बिछाकर अक्षतों का अष्टदल लिखे और उसमें सुवर्णमय सूर्यनारायणकी मूर्ति-स्थापन करके उनका पञ्चोपचार (स्नान, गन्ध, पुष्प, धूप और नैवेद्य) से पूजन और तिराहार, साहार, अयाचित, नक्त या एकभुक्त व्रत करे तो सब प्रकारके पापों का क्षय, सब प्रकार की अधि-व्याधियों का निवारण और सब प्रकार की हीनता अथवा संकोच का निपात होता है तथा प्रत्येक प्रकार की सुख-सम्पत्ति, संतान और सहानुभूति की वृद्धि होती है।

 

 

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