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धनु संक्रान्ति, खरमास

Dhanu Sankranti, Kharmas

शुभ मुहूर्त एवं नक्षत्र विज्ञान

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खरमास क्या होता है धनु संक्रान्ति क्या है खरमास के दौरान क्या करें खरमास के दौरान क्या न करें संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान का महत्व
 

संक्रान्ति क्या है? खरमास क्या होता है? धनु संक्रान्ति क्या है?

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

संक्रान्ति किसे कहते हैं?

सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 12 राशि हैं। सभी ग्रह बारी बारी से इन 12 राशियों में प्रवेश करते हैं। सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करता है और जब एक राशि से दूसरे राशि में जाता है तो वह राशि परिवर्तन संक्रान्ति कहलाता है। इसलिए पूरे साल में 12 संक्रांतियां होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस राशि में प्रवेश करते हैं, उसी के अनुसार संक्रांति का नामकरण किया जाता है।

संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का बहुत महत्व माना जाता है। प्रत्येक संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है।

धनु संक्रांति क्या है?

सूर्य जब वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश (गोचर) करता है तो उसे धनु संक्रान्ति कहते हैं। इसी दिन से हेमंत ऋतु शुरू होती है और खरमास का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है जो सूर्य के धनु राशि में बने रहने तक पूरे माह रहेगा। इस दौरान शुभ कार्य करने की मनाही होती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष 16 दिसंबर 2023, शनिवार को धनु संक्रांति है। इस संक्रांति को बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं।

सूर्य धनु राशि में कब प्रवेश कर रहा है ?

हिंदू पंचांग के अनुसार, 16 दिसंबर को सूर्य देव सायं 04 बजकर 9 मिनट तक वृश्चिक राशि में हैं। उसके बाद वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए खरमास की शुरुआत इसी दिन से होगी। धनु संक्रांति का पुण्यकाल 16 दिसंबर को प्रातः 09 बजकर 58 मिनट से शाम 04 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। सूर्य की धनु संक्रांति में और खासकर संक्रांति के पुण्यकाल के दौरान गोदावरी नदी में स्नान-दान का बहुत महत्व है। संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का बहुत महत्व माना जाता है।

खरमास क्या होता है ?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार खरमास तब होता है जब सूर्य ग्रह, बृहस्पति ग्रह के स्वामित्व वाली राशि (शासित राशियाँ) धनु राशि और मीन राशि में प्रवेश करते हैं। माना गया है कि इस दौरान वह अपने गुरु की सेवा में रहते हैं जिससे सूर्य की गति धीमी हो जाती है। ऐसे में सूर्य का प्रभाव कम हो जाता है। इस कारण कोई भी शुभ कार्य में सफलता मिलने की संभवानाएं कम हो जाती है। खरमास का अर्थ अशुद्ध मास होता है।
खरमास साल में दो बार आता है। पहला खरमास मार्च में आता है जब सूर्य मीन राशि में प्रवेश करता है, और दूसरा दिसंबर में आता है जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है।

कब से शुरू होगा खरमास

सूर्य ग्रह 16 दिसंबर 2023 को सायं 03 बजकर 58 मिनट पर वृश्चिक राशि से धनु राशि में गोचर करेंगे, इसलिए 16 दिसंबर 2023 से खरमास की शुरुआत होगी।

खरमास कब ख़त्म होगा

14 जनवरी 2024 को पौष शुक्ल चतुर्थी की रात्रि 2 बजकर 54 मिनट तक सूर्य धनु राशि में है उसके बाद मकर राशि में प्रवेश होगा। इसके साथ ही खरमास समाप्त हो जाएगा। अत: 15 जनवरी 2024 से विवाह, उपनयन संस्कार, मुंड़न आदि मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे।

खरमास की कथा

पुराणों के अनुसार जब एक बार सूर्य देवता अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर ब्राह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे। तब निरंतर चलते रहने के कारण उनके रथ में जुते घोड़े बहुत थक गए और सभी घोड़े प्यास से व्याकुल हो रहे थे। घोड़ों की यह स्थिति देखकर सूर्य देव बहुत दुखी हुए और उनकी चिंता होने लगी। रास्ते में उन्हें एक नदी दिखाई दिया जिसके पास दो खर यानी गधे खड़े थे। भगवान सूर्यनारायण ने प्यास से व्याकुल अपने घोड़ों को राहत देने के लिए उन्हें खोल कर दो गधों को अपने रथ में बाँध लिया।लेकिन खरों के चलने की गति धीमी होने के कारण रथ की गति भी धीमी हो गई। फिर भी जैसे तैसे एक मास का चक्र पूरा हो गया। उधर तब तक घोड़ों को काफी आराम मिल चुका था। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। इसी वजह से इस महीने का नाम खर मास रखा गया। इस प्रकार पूरे पौष मास में खर अपनी धीमी गति से भ्रमण करते हैं और इस माह में सूर्य की तीव्रता बहुत कमजोर हो जाती है, पौष के पूरे महीने में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का प्रभाव कमजोर हो जाता है।चूंकि सनातन धर्म में सूर्य को महत्वपूर्ण कारक ग्रह माना जाता है, ऐसे में सूर्य की कमजोर स्थिति को अशुभ माना जाता है इस कारण खरमास में किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लगा दी जाती है।

खरमास के नियम

धार्मिक मान्यता के अनुसार खरमास के महीने में पूजा-पाठ, तीर्थ यात्रा, मंत्र जाप, भागवत गीता, रामायण पाठ और विष्णु भगवान की पूजा करना बहुत शुभ माना गया है। खरमास के दौरान दान, पुण्य, जप, और भगवान का ध्यान लगाने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस मास में भगवान शिव की आराधना करने से कष्टों का निवारण होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के लोटे में जल, रोली या लाल चंदन, शहद लाल पुष्प डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इस महीने में सूर्यदेव को अर्घ्य देना बहुत फलदाई है।

खरमास के दौरान क्या करें?

- सूर्य देव बृहस्पति की राशि में गोचर करेंगे इसलिए इस पूरे महीने भगवान सूर्य और श्री हरि विष्णु की पूजा का विधान है।
- खरमास के दौरान भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं और 'ओम घृणि सूर्याय नम:'का जाप करें।
- जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष है, वे अमावस्या के दिन घर पर ब्राह्मण भोज का आयोजन करें। उन्हें आदरपूर्ण भोजन कराएं और वस्त्र का दान करें।
- इस महीने सूर्यदेव को जल चढ़ाना बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।
- खरमास के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करें।

खरमास के दौरान क्या न करें?

-खरमास को शुभ समय नहीं माना जाता है, इसलिए इस समय शुभ कार्य करने की मनाही होती है।
- खरमास में शादी न करने की सलाह दी जाती है।
- इस महीने में नया घर खरीदना, कोई संपत्ति खरीदना, नया कारोबार शुरू करने से बचना चाहिए।
- इस माह में लोगों को नया वाहन नहीं खरीदना चाहिए।
- इस महीने में लोगों को तामसिक भोजन और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।

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