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हिन्दू वर्ष एवं मास महीने - सौर वर्ष, चंद्र वर्ष, सौरमास, चंद्रमास, नक्षत्रमास, मलमास

Hindu year and month Months - solar year, lunar year, solar month, lunar month, sidereal month

शुभ मुहूर्त एवं नक्षत्र विज्ञान

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हिन्दू वर्ष एवं मास महीने - सौर वर्ष, चंद्र वर्ष, सौरमास, चंद्रमास, नक्षत्रमास Hindu year and month Months - solar year, lunar year, solar month, lunar month, sidereal month
 

हिन्दू वर्ष एवं मास महीने - सौर वर्ष, चंद्र वर्ष, सौरमास, चंद्रमास, नक्षत्रमास, पुरुषोत्तम मास

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

हिन्दू वर्ष एवं मास (महीने) -

एक हिन्दू वर्ष में 12 मास (महीने) होते हैं। प्रत्येक महीने में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। 12 मास का एक वर्ष होता है और 7 दिन का एक सप्ताह। हिन्दुओं में चंद्र वर्ष और सौर वर्ष होते हैं जो चंद्रमा एवं सूर्य के गमन पर आधारित हैं। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है।

मास का निर्णय भी सूर्य व चंद्रमा की गति से होता है। 12 राशियाँ (मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन) बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस भी नक्षत्र में होता है उसी के आधार पर चंद्रमास का नामकरण हुआ है।

चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में एक अतिरिक्त महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं। इसके अनुसार एक साल को बारह महीनों में बांटा गया है और प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। महीने को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक होती है। दिन को चौबीस घंटों के साथ-साथ आठ पहरों में भी बांटा गया है। एक प्रहर कोई तीन घंटे का होता है। एक घंटे में ढाई घटी होती हैं, एक पल लगभग आधा मिनट के बराबर होता है और एक पल में चौबीस क्षण होते हैं। पहर के अनुसार देखा जाए तो चार पहर का दिन और चार पहर की रात होती है।

सौरमास किसे कहते हैं?

सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है। कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है। 60 घटी मिलकर एक अहोरात्र का निर्माण करती है उसी प्रकार 30 अहोरात्र मिलकर एक मास का निमार्ण करते हैं।

12 राशियों को बारह सौरमास माना जाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है (आभासिक भ्रमण) उसी दिन की संक्रांति होती है। इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना शुरू माना गया है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का।

सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन।

सूर्य धनुसंक्रमण से मकरसंक्रमण तक मकर राशी में रहता हे। इसे धनुर्मास कहते है। इस माह का धार्मिक जगत में विशेष महत्व है।

चंद्रमास किसे कहते हैं?

चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्‍ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला 'अमावस्यांत'(अमांत) मास मुख्‍य चंद्रमास है। कृष्‍ण प्रतिपदा से 'पूर्णिमांत' पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है।

एक चान्द्रमास लगभग 29 दिन 8 घण्टे 44 मिनट 2 सेकेण्ड का होता है।

पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चंद्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।

सूर्य चन्द्र के मध्य 12 अंशात्मक दूरी को तिथि कहते हैं। एक भचक्र में कुल 360 अंश होते हैं तो 12 अंशों की एक तिथि हुई तो हम कह सकते है = 30 अर्थात् कुल 30 तिथियां होती हैं जिन्हें हम एक चान्द्रमास के नाम से जानते हैं।

(नोट - प्रत्येक ग्रह-राशि का विस्तार 30 अंश निर्धारित किया गया है। इसी 360 अंश के क्रांतिवृत के दोनों और 9 9 अंश विस्तार की कुल 18 अंश की चौड़ी पट्टी है जिसे भचक्र कहते हैं। इस भचक्र पर सभी ग्रह और नक्षत्र बारी बारी से पूर्व में उदित होकर पश्चिम में अस्त होते हैं।)

मलमास या पुरुषोत्तम मास या अधिक मास किसे कहते हैं ?

सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 354 दिन का होने से प्रतिवर्ष 11 दिन का अंतर आ जाता है। सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष में सामंजस्यता बनाये रखने के लिये प्रत्येक तीसरे वर्ष में इन 11-11 दिनों को संयुक्त करने से जो 33 दिन बनता है इसका एक अतिरिक्त माह बनाकर चन्द्र मास में जोड़ दिया जाता है। इस मास को ही अधिक मास या पुरुषोत्तम मास या मलमास कहा जाता है इस कारण प्रत्येक तीसरे चन्द्र वर्ष में 12 की अपेक्षा 13 माह होते हैं |
दूसरे रूप में इसे ऐसे समझिये , जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है अधिमास अर्थात् अधिकमास वस्तुतः शुद्धमास में संक्रान्ति होती है परन्तु जिस मास में अर्थात् शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्यान्त तक कोई भी सौर संक्रान्ति नहीं आती हो उस मास को आधिमास कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो असंक्रान्तिमास को ही अधिमास कहते हैं। इस अधिमास के होने का सीधा सा तत्पर्य यह भी है कि उस सौर वर्ष में अबकी बार 12 के स्थान पर 13 चान्दमास होगे। यह अधिमास हर 32 माह बाद आता है अर्थात् हर तीसरे वर्ष यह अधिमास आता है।

चंद्रमास के नाम : चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन।

सावनमास किसे कहते हैं ?

एक सूर्योदय से अग्रिम सूर्योदय के मध्य के कालखण्ड को सावनदिन के नाम से जानते हैं। इसी प्रकार एक सूर्योदय से अग्रिम 30 सूर्योदयों वाले दिन अर्थात् 30 सावन दिनों से मिलकर एक सावन मास का निमार्ण होता है।

क्षयमास किसे कहते हैं?

द्वि संक्रान्तिमास को क्षय मास कहते हैं। अर्थात् एक चान्द्रमास में यदि दो सूर्य की संक्रान्तियों आ जाय तो वह क्षयमास होता है। प्रायः क्षय मास कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष मासों में आधिकर पड़ता है। जिस वर्ष क्षयमास होता है उस वर्ष अधिमास भी पड़ता है। अधिकतर यह स्थिति 141 वर्षों में पड़ती है।

नक्षत्रमास किसे कहते हैं?

चंद्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है।

छान्दोग्य उपनिषद् में यह वर्णन भी मिलता है, कि चन्द्रमा जिस मार्ग से आकाश में भ्रमण करता है, उस पर पड़ने वाले प्रमुख तारों को ज्योतिष में नक्षत्र कहा गया है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं। नक्षत्र में अपनी गति का अभाव होता है। नक्षत्रों में गति नहीं है, उनका घट्यादिक मान के लिए प्रवहवायु (आकाश में एक विशेष प्रकार की वायु जो समस्त ग्रह-नक्षत्र मण्डल को पूर्व से पश्चिम की ओर गमन करती है।) को कारण माना जाता है, जिसके कारण नक्षत्रों का मान ५४ घटी से ६७ घटी तक प्राप्त होता है। नक्षत्रों के सन्दर्भ में यह भी उल्लेख मिलता है कि २९ दिन चन्द्रमा के भ्रमण का निदर्शन २७ नक्षत्रों से होता है।

महीनों के नामकरण Naming of months -

इन बारह मासों के नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्रायः रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है उसी नक्षत्र का नाम उस मास को दिया गया है। पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है वही नक्षत्र आकाश में प्रायः रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है। चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून), आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर), अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्टूबर), कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर), मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर), पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी), मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।
  महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का नक्षत्र
  चैत्र :
चित्रा, स्वाति।
  वैशाख :
विशाखा, अनुराधा।
  ज्येष्ठ :
ज्येष्ठा, मूल।
  आषाढ़ : पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा।
  चैत्र :
चित्रा, स्वाति।
  वैशाख :
विशाखा, अनुराधा।
  ज्येष्ठ :
ज्येष्ठा, मूल।
  आषाढ़ :
पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा।
  श्रावण :
श्रवण, धनिष्ठा।
  भाद्रपद :
पूर्वाभाद्रपद , उत्तराभाद्रपद ।
  आश्विन :
अश्विनी, भरणी।
  कार्तिक :
कृतिका, रोहणी।
  मार्गशीर्ष :
मृगशिरा, आर्द्रा।
  पौष :
पुनर्वसु, पुष्य।
  माघ :
मघा, अश्लेशा।
  फाल्गुन : पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त।
  नक्षत्र नक्षत्र के गृह स्वामी ग्रह
  अश्विनी, मघा, मूल -

केतु
  भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा -

शुक्र
  कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा -

रवि
  रोहिणी, हस्त, श्रवण -

चंद्र
  मॄगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा -

मंगल
  आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा -

राहु
  पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद -

बृहस्पति
  पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपद -

शनि
  अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती -
बुध
 
 

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