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मकर संक्रांति पौष संक्रान्ति खिचड़ी ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल माघी संगरांद

Makar Sankranti Paush Sankranti Khichdi Tai Pongal, Uzhavar Tirunal Maghi Sangrand

शुभ मुहूर्त एवं नक्षत्र विज्ञान

विवाह शुभ मुहूर्त * वधूप्रवेश द्विरागमन मुहूर्त * नूतन वधु द्वारा पाकारंभ मुहूर्त * वर वरण वरीक्षा मुहूर्त * गृहप्रवेश मुहूर्त * उपनयन मुहूर्त * अन्नप्राशन मुहूर्त * नामकरण मुहूर्त * कर्णवेध मुहूर्त * मुंडन (चौल) मुहूर्त * अक्षरारंभ विद्यारंभ मुहूर्त * भूमि पूजन गृहारंभ मुहूर्त * वाहन मुहूर्त * सम्पत्ति क्रय मुहूर्त * व्यापार मुहूर्त * जलशयाराम देव प्रतिष्ठा मुहूर्त * हल प्रवहण बीजोप्ती मुहूर्त * कूपारम्भ बोरिंग मुहूर्त * स्वर्ण क्रय विक्रय मुहूर्त * मुहूर्त कितने प्रकार के होते हैं? * जानिए अपने सपनों का अर्थ * अंगों पर छिपकली गिरने का फल * हिंदू पंचांग एवं अयन * हिन्दू वर्ष एवं मास * भद्रा, तिथि,करण, योग, वार, पक्ष * खरमास, धनु संक्रान्ति क्या है? * मकर संक्रांति * कुंभ संक्रांति * मेष संक्रांति * कालसर्प योग एवं उसका निवारण
 
मकर संक्रांति पौष संक्रान्ति खिचड़ी ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल माघी संगरांद Makar Sankranti Paush Sankranti Khichdi Tai Pongal, Uzhavar Tirunal Maghi Sangrand
 

मकर संक्रांति क्या है?

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

मकर संक्रांति का समय

मकर संक्रांति का समय 14 जनवरी की रात 2 बजकर 54 मिनट पर है। इसी समय सूर्य धनु से मकर राशि में गमन करेंगे। सूर्य के संक्रमण के समय का नक्षत्र शतभिषा (चर संज्ञक) है, करण विष्टि है और चन्द्रराशि कुम्भ है।

जनवरी 15, 2024, सोमवार को मकर संक्रान्ति का पुण्य काल सुबह 6 बजकर 42 मिनट से शाम 5 बजकर 22 मिनट तक है। पुण्य काल की अवधि 10 घण्टे 40 मिनट की है। मकर संक्रान्ति महापुण्य काल सुबह 6 बजकर 42 मिनट से सुबह 8 बजकर 29 मिनट तक है। महापुण्य काल की अवधि 1 घण्टे 47 मिनट की है।

सूर्योदय के बाद 5 घटी अवधि (यदि संक्रांति पिछले दिन सूर्यास्त के बाद होती है) और संक्रांति क्षण के बाद 1 घटी अवधि (यदि संक्रांति दिन के समय होती है) अत्यधिक शुभ होती है। यदि यह मुहूर्त उपलब्ध है तो हम इसे महापुण्य काल मुहूर्त के रूप में सूचीबद्ध करते हैं। यदि उपलब्ध हो तो महापुण्य काल मुहूर्त को पुण्य काल मुहूर्त की तुलना में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यदि मकर संक्रांति सूर्यास्त के बाद होती है तो पुण्य काल की सभी गतिविधियाँ अगले दिन सूर्योदय तक के लिए स्थगित कर दी जाती हैं। इसलिए पुण्य काल के सभी कार्य दिन के समय ही करने चाहिए।

सूर्यभ्रमण के कारण होनेवाले अंतर की पूर्ति करने हेतु प्रत्‍येक अस्‍सी (80) वर्ष में संक्रांति का दिन एक दिन आगे बढ़ जाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल के नाम से जाना जाता है। सिंधी लोग इस पर्व को 'तिरमौरी', गुजरात और उत्तराखंड में 'उत्तरायण' नाम से, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में 'माघी', असम में माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। कश्‍मीर घाटी में इसे 'शिशुर सेंक्रात' नाम से, उत्तर प्रदेश और पश्‍चिमी बिहार में यह उत्‍सव 'खिचडी' पर्व के नाम से, पश्‍चिम बंगाल में इसे 'पौष संक्रान्‍ति', तो कर्नाटक में 'मकर संक्रमण' और पंजाब में यह उत्‍सव 'लोहडी' नाम से भी मनाया जाता है।

मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। यह त्यौहार सूर्य को समर्पित है। दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात्सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। चूंकि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है।

मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होते हैं इसी कारण भारत में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना प्रारंभ करते हैं, जिसके कारण इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है।

अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है| इसी कारणवश मकर संक्रान्ति के अवसर पर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोग विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं|

संक्रान्ति किसे कहते हैं?

सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 12 राशि हैं। सभी ग्रह बारी बारी से इन 12 राशियों में प्रवेश करते हैं। सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करता है और जब एक राशि से दूसरे राशि में जाता है तो वह राशि परिवर्तन संक्रान्ति कहलाता है। इसलिए पूरे साल में 12 संक्रांतियां होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस राशि में प्रवेश करते हैं, उसी के अनुसार संक्रांति का नामकरण किया जाता है।

संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का बहुत महत्व माना जाता है। प्रत्येक संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है।

मकर संक्रांति का महत्त्व

मकर संक्रांति का उत्सव भगवान सूर्य की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा कर आशीर्वाद मांगते हैं, इस दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत और नई फसलों की कटाई शुरू होती है। मकर संक्रांति पर नदी में पवित्र स्नान करते हैं और भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं, इस दिन यमुना स्नान और जरूरतमंद लोगों को भोजन, दालें, अनाज, गेहूं का आटा और ऊनी कपड़े दान करना शुभ माना जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि -
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है।

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है।

मकर संक्रांति पूजा विधि - संक्रान्ति व्रत

जिस दिन संक्रान्ति हो उस दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर यह संकल्प करें -

ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2080 पिंगल नाम संवत्सरे पौष मासे शुक्ल पक्षे पञ्चमी तिथौ ..वासरे (दिन का नाम जैसे सोमवार है तो "सोम वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् ज्ञाताज्ञातसमस्तपातकोपपातकदुरितक्षयपूर्वक श्रुतिस्मृति- पुराणोक्तपुण्यफलप्राप्तये श्रीसूर्यनारायणप्रीतये च अमुकसंक्रमण- कालीनमयनकालीनं वा स्नानदानजपहोमादिकर्माहं करिष्ये ।'

( उदहारण के लिए - ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो, द्वितीयपरार्धे, श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे, कलियुगे, कलिप्रथमचरणे, बौद्धावतारे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, पटना नगरे, विक्रम संवत 2080 पिंगल नाम संवत्सरे, पौष मासे, शुक्ल पक्षे, पञ्चमी तिथौ, सोम वासरे, वाशिष्ठ गोत्रोत्पन्न, साधक प्रभात शर्मोऽहम्, ज्ञाताज्ञात समस्तपातकोपपातक दुरितक्षयपूर्वक श्रुतिस्मृति- पुराणोक्तपुण्यफलप्राप्तये श्रीसूर्यनारायणप्रीतये च अमुकसंक्रमण- कालीनमयनकालीनं वा स्नानदानजपहोमादिकर्माहं करिष्ये ।' )

- यह संकल्प करके वेदी या चौकीपर लाल कपड़ा बिछाकर अक्षतों का अष्टदल लिखे और उसमें सुवर्णमय सूर्यनारायणकी मूर्ति-स्थापन करके उनका पञ्चोपचार (स्नान, गन्ध, पुष्प, धूप और नैवेद्य) से पूजन और तिराहार, साहार, अयाचित, नक्त या एकभुक्त व्रत करे तो सब प्रकारके पापों का क्षय, सब प्रकार की अधि-व्याधियों का निवारण और सब प्रकार की हीनता अथवा संकोच का निपात होता है तथा प्रत्येक प्रकार की सुख-सम्पत्ति, संतान और सहानुभूति की वृद्धि होती है।

आयुः संक्रान्ति व्रत -

स्कन्दपुराण में आयु की वृद्धि के लिया संक्रान्ति के दिन व्रत रखने का विधान बताया गया है। इसके अनुसार संक्रान्ति के दिन व्रत रखकर काँसा के पात्र में यथासामर्थ्य घी, दूध और सुवर्ण रखकर गन्धादि से पूजन करके उसका निम्न मंत्र से दान करना चाहिए -
क्षीरं च सुरभीजातं पीयूषममलं घृतम्।
आयुरारोग्यमैश्वर्यमतो देहि द्विजार्पितम् ॥

इससे व्यक्ति की आयु, तेज और आरोग्यता आदि की वृद्धि होती है।

मकर संक्रांति कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा सगर अपने परोपकार और पुण्य कर्मों से तीन लोकों में प्रसिद्ध हो गए थे। चारों ओर उनका ही गुणगान हो रहा था। इस बात से देवताओं के राजा इंद्र को चिंता होने लगी कि कहीं राजा सगर स्वर्ग के राजा न बन जाएं। इसी दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इंद्र देव ने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया।

अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चोरी होने की सूचना पर राजा सगर ने अपने सभी 60 हजार पुत्रों को उसकी खोज में लगा दिया। वे सभी पुत्र घोड़े को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंच गए। वहां पर उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा देखा। इस पर उन लोगों ने कपिल मुनि पर घोड़ा चोरी करने का आरोप लगा दिया। इससे क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों को श्राप से जलाकर भस्म कर दिया।

यह जानकर राजा सगर भागते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे और उनको पुत्रों को क्षमा दान देने का निवेदन किया। तब कपिल मुनि ने कहा कि सभी पुत्रों के मोक्ष के लिए एक ही मार्ग है, तुम मोक्षदायिनी गंगा को पृथ्वी पर लाओ। राजा सगर के पोते राजकुमार अंशुमान ने कपिल मुनि के सुझाव पर प्रण लिया कि जब तक मां गंगा को पृथ्वी पर नहीं लाते, तब तक उनके वंश का कोई राजा चैन से नहीं बैठेगा। वे तपस्या करने लगे। राजा अंशुमान की मृत्यु के बाद राजा भागीरथ ने कठिन तप से मां गंगा को प्रसन्न किया।

मां गंगा का वेग इतना तेज था कि वे पृथ्वी पर उतरतीं तो, सर्वनाश हो जाता। तब राजा भगीरथ ने भगवान शिव को अपने तप से प्रसन्न किया ताकि वे अपनी जटाओं से होकर मां गंगा को पृथ्वी पर उतरने दें, जिससे गंगा का वेग कम हो सके। भगवान शिव का आशीर्वाद पाकर राजा भगीरथ धन्य हुए। मां गंगा को अपनी जटाओं में रखकर भगवान शिव गंगाधर बने।

मां गंगा पृथ्वी पर उतरीं और आगे राजा भगीरथ और पीछे-पीछे मां गंगा पृथ्वी पर बहने लगी। राजा भगीरथ मां गंगा को कपिल मुनि के आश्रम तक लेकर आए, जहां पर मां गंगा ने राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया। जिस दिन मां गंगा ने राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष दिया, उस दिन मकर संक्रांति थी। वहां से मां गंगा आगे जाकर सागर में मिल गईं। जहां वे मिलती हैं, वह जगह गंगा सागर के नाम से प्रसिद्ध है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति को गंगासागर या गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सात जन्मों के भी पाप मिट जाते हैं।

मकर संक्रांति के दौरान क्या करें?

मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव की पूजन का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान को तिल और खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए और ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए। भगवान सूर्य का पूजन सम्पन्न होने के पश्चात तिल, उड़द दाल, चावल, गुड़, सब्जी कुछ धन – दक्षिणा एवं यथाशक्ति वस्त्र इत्यादि किसी ब्राह्मण को दान करें।

मकर संक्रांति के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान के जल में तिल मिलाकर स्नान करें।

तत्पश्चात लाल वस्त्र धरण करें तथा दाहिने हाथ में जल लेकर पूरे दिन बिना नमक खाए व्रत करने का संकल्प ग्रहण करें।

प्रातः सूर्य देव को तांबे के लोटे में शुद्ध जल, तिल, लाल चंदन, लाल पुष, अक्षत, गुड़ इत्यादि डालकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें। सूर्यदेव को जल अर्पित करते हुए नीचे एक तांबे का पात्र रख लें जिसमे सारा जल एकत्रित कर लें। तांबे के बर्तन में इकट्ठा किया जल मदार के पौधे में डाल दें।

जल चढ़ाते हुए निम्नलिखित मंत्र बोलें –

ऊं घृणि सूर्यआदित्याय नम:

इसके बाद निम्नलिखित मंत्रों के माध्यम से सूर्य देव की स्तुति करें और सूर्य देवता को नमस्कार करें –

1. ऊं सूर्याय नम:।
2. ऊं आदित्याय नम:।
3. ऊं सप्तार्चिषे नम:।
4. ऊं सवित्रे नम:।
5. ऊं मार्तण्डाय नम:।
6. ऊं विष्णवे नम:।
7. ऊं भास्कराय नम:।
8. ऊं भानवे नम:।
9. ऊं मरिचये नम:।

मकर संक्रांति के दिन श्रीनारायण कवच, आदित्य हृदय स्तोत्र और विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं इससे आपको विशेष शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

संक्रान्तिव्रत (वङ्गऋषिसम्मत) -

मेषादि किसी भी संक्रान्ति का जिस दिन संक्रमण हो उस दिन प्रातः स्नानादिसे निवृत्त होकर
मम ज्ञाताज्ञातसमस्तपातकोपपातकदुरितक्षयपूर्वक श्रुतिस्मृति- पुराणोक्तपुण्यफलप्राप्तये श्रीसूर्यनारायणप्रीतये च अमुकसंक्रमण- कालीनमयनकालीनं वा स्नानदानजपहोमादिकर्माहं करिष्ये ।'
यह संकल्प करके वेदी या चौकीपर लाल कपड़ा बिछाकर अक्षतोंका अष्टदल लिखे और उसमें सुवर्णमय सूर्यनारायणकी मूर्ति-स्थापन करके उनका पञ्चोपचार (स्नान, गन्ध, पुष्प, धूप और नैवेद्य) से पूजन और तिराहार, साहार, अयाचित, नक्त या एकभुक्त व्रत करे तो सब प्रकारके पापोंका क्षय, सब प्रकारकी अधि-व्याधियोंका निवारण और सब प्रकारकी हीनता अथवा संकोचका निपात होता है तथा प्रत्येक प्रकारकी सुख-सम्पत्ति, सं तान और - सहानुभूतिकी वृद्धि होती है।

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