× SanatanShakti.in About Us Home Founder Religion Education Health Contact Us Privacy Policy
indianStates.in

संकटनाशन गणेश चतुर्थी अधिकमास कृष्ण पक्ष व्रत कथा - चन्द्रसेन नामक राजा की कथा

Sankatnashan Ganesh Chaturthi Adhikamaas Krishna Paksha fast story Story of a king named Chandrasen

सङ्कटनाशन गणेश स्तोत्रम् * श्री गणपति स्तोत्रम् * श्री गणेश चालीसा * श्री गणेश आरती * विघ्नहर्ता गणेश जी की मूर्ति का स्वरूप और उसका फल * श्री मयूरेश स्तोत्र * संकटनाशन गणेश चतुर्थी चौदह व्रत कथा * गणेश चतुर्थी *भगवान गणेश और उनकी पूजा से जुड़े प्रश्न और उनके उत्तर * श्री गणेश सहस्त्रनामावली * श्री सिद्धिविनायक मंदिर गणपति आरती * विघ्ननाशक गणपति स्तोत्र * अथर्ववेदीय गणपति शान्ति पाठ * संतान प्राप्ति हेतु गणपति स्तोत्र * गणेश पुराण नारद पुराण संकटनाशन श्री गणपति स्तोत्र * श्री लक्ष्मी गणेश स्तोत्र * श्री गणेश के 108 नाम और मंत्र * श्री गणेश के 32 नाम और उनके स्वरूप * श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र * संकटनाशन गणेश चतुर्थी चैत्र कृष्ण पक्ष व्रत कथा - मकरध्वज नामक राजा की कथा * संकटनाशन वक्रतुंड गणेश चतुर्थी वैशाख कृष्ण पक्ष शत्रुतानाशक व्रत कथा - धर्मकेतु नामक ब्राह्मण की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष व्रत कथा - दयादेव नामक ब्राह्मण की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी आषाढ़ कृष्ण पक्ष व्रत कथा - राजा महीजित की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी श्रावण कृष्ण पक्ष व्रत कथा - सन्तानादि सर्वसिद्धिदायक कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी व्रत कथा -भाद्रपद शुक्ल पक्ष - स्यमन्तक मणि की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी आश्विन कृष्ण पक्ष व्रत कथा - श्रीकृष्ण तथा बाणासर की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी कार्तिक कृष्ण पक्ष व्रत कथा - दैत्यराज वृत्रासुर की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी व्रत कथा - मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष - महाराज दशरथ की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी पौष कृष्ण पक्ष व्रत कथा - राक्षसराज रावण की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी माघ कृष्ण पक्ष व्रत कथा - ऋषि शर्मा ब्राह्मण की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी फाल्गुन कृष्ण पक्ष व्रत कथा - विष्णु शर्मा नामक ब्राह्मण की कथा * संकटनाशन गणेश चतुर्थी अधिकमास कृष्ण पक्ष व्रत कथा - चन्द्रसेन नामक राजा की कथा
 
संकटनाशन गणेश चतुर्थी अधिकमास कृष्ण पक्ष व्रत कथा - चन्द्रसेन नामक राजा की कथा
 

संकटनाशन गणेश चतुर्थी अधिकमास कृष्ण पक्ष व्रत कथा - चन्द्रसेन नामक राजा की कथा

संकटनाशन गणेश चतुर्थी चौदस व्रत कथा के अंतर्गत सभी मास के गणेश चतुर्थी व्रत की कथा दी जा रही है जो व्रत के साथ श्रवण करने का विधान है -

इस दिन व्रत के साथ 'हेरम्ब्र' नामक गणेश जी के नाम का जप करना चाहिए। इस व्रत के करने से विद्यार्थियों को विद्या और धनार्थी को धन लाभ होता है।

संकटनाशन गणेश चतुर्थी अधिकमास कृष्ण पक्ष व्रत कथा - चन्द्रसेन नामक राजा की कथा

स्कन्द कुमार कहते हैं कि समस्त ऋषियों! आप लोग पुराण में वर्णित मंगलदायिनी कथा को सुनिये - जिसमें गणेश जी के व्रत के महात्म्य का जिस प्रकार वर्णन किया गया है। हे द्विजवरो! जिस समय पाण्डुपुत्रों को बनवास हुआ, वे सब धर्म परायण और कृष्ण की उपासना करते थे। एक समय की बात है कि अपनी इच्छा से भ्रमण करते हुए व्यासजी उन लोगे की कुटिया पर आये। व्यास मुनि को देखकर सभी करबद्ध हो, उनके सम्मुख खड़े हो गये और कहने लगे-आपके दर्शन कर हम लोग धन्य हुए साथ ही हमारी कुटिया भी आपके पदार्पण से हमारा जीवन आज धर हुआ, आज हम लोगों का सब कुछ सफल हुआ, क्योंकि आपका दर्शन सम्पूर्ण कष्टों का निवारक है। आपने मेरी कुटिया में पदार्पण किया है। अतः हम लोग आपका स्वागत करते हैं। हम लोग राज्यच्युत होकर भी आज अपने को धन्य मान रहे हैं। ऐसा कहकर पांचों पांडव - भीमसेन युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव उन्हें प्रणाम कर उनके सामने खड़े हो गये।

पाद्य, अर्घ्य, आचमन और आसन प्रदान कर द्रोपदी ने हाथ जोड़कर उनसे कहना प्रारम्भ किया। हे मुनिवर ! मैं राजरानी होकर भी दुर्योधन की भरी सभा में केश पकड़कर अपमानित हुई और वनवासिनी बनाई गयी। अब मैं क्या उपाय करूं? जिससे हमारे सभी क्लेशों का शमन हो तथा हमारे शत्रुओं की पराजय हो। इस प्रकार युधिष्ठिर, द्रोपदी के संकटनाशक उपाय पूछने पर सर्वज्ञ व्यासजी ने कृपापूर्वक उन्हें उपाय बतलाया। हे महाराज! इस समय सम्पूर्ण विश्व में आपके जैसा कोई दूसरा धर्मात्मा नहीं है। मैं आपसे ऐसे व्रत का वर्णन करूंगा जिससे आपके समस्त दुःखों और कष्टों का निवारण होगा। वह व्रत शुभदायक, फलदायक, दिव्य और पृथ्वी पर सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है। इस व्रत के करने से विद्यार्थियों को विद्या और धनार्थी को धन लाभ होता है। इस सम्बन्ध में एक प्राचीन उपाख्यान का वर्णन करता हूँ। हे युधिष्ठिर! आप सुनिए।

प्राचीन काल में सतयुग में चन्द्रसेन नामक एक राजा हुए। वे अपनी रानी के साथ दीक्षा लेकर परिवार के सहित रहते थे। वे अपने स्वजनों, उनके पुत्रों एवं कुटुम्बियों के साथ आनन्दपूर्वक निवास करते थे। सौभाग्य से उनकी रानी बहुत ही गुणवती तथा पतिव्रता थी। हे राजन युधिष्ठिर ! उनका नाम रत्नावली था। वह पतिव्रत का पालन करने वाली थीं। स्कन्द कुमार जी कहते हैं कि हे मुनिवरों! राजा और रानी में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था। एक समय दैवयोग से शत्रुओं ने उनके राज्य को हस्तगत कर लिया। शत्रुओं ने राजा के कोष पर अधिकार करने के साथ हीं पूरे राज्य पर भी आधिपत्य कर लिया। राजा अपने परिवार से भी गया। अब राज्य भ्रष्ट होकर राजा अपनी रानी रत्नावली के साथ वन में चले गये। एक ही वस्त्र में लिपटे वे दम्पत्ति भूख-प्यास से विकल हो गये। हे युधिष्ठिर! रानी रत्नावली के साथ राजा अकेले वन में भटकने लगे। क्षुधा पिपासा से पीड़ित होकर वन में चलते-चलते उन दोनों को सूर्यायास्त हो गया। उस भयंकर वन में शेर, बाघ, चकवा, बगुला, कोयल और सारस रहते थे। रानी के पैर में कांटा चुभ जाने से राजा को महान दुःख का अनुभव हुआ। उस वन में घूमते हुए राजा ने प्रातःकाल महान ऋषि मार्कण्डेय को दूर से ही देखा। राजा और रानी धीरे-धीरे चलकर वहां तक पहुँचे और उनको दण्डवत किया। राजा की पत्नी ने श्री मुनि को बारम्बार प्रणाम किया। वन में विराजमान तपस्वी एवं जितेन्द्रिय मुनि मार्कण्डेय जी से हाथ जोड़कर राजा ने कहा।

राजा ने पूछा कि हे पूज्यवर ! मैंने पूर्व जन्म में ऐसा कौन-सा पाप किया था जिससे मेरी राज्यलक्ष्मी शत्रुओं द्वारा छीन ली गई? मार्कण्डेय मुनि ने उत्तर दिया कि हे राजन! आप अपने पूर्वजन्म के वृतान्त को सुनिये, मैं बतला रहा हूँ। एक बार आखेट (शिकार) के लिए आप गहन वन में चले गए। हरिण, चीते और खरगोश का शिकार करते-करते उस वन में रात हो गई और अधिक मास की चतुर्थी आ गई। उस वन में आपने एक सुन्दर सरोवर देखा और उसके किनारे लाल रंग की साड़ी पहने हुए नाग कन्याओं को देखा। वे सब गणेश जी की पूजा कर रही थीं। यह देखकर आपको बड़ा आश्चर्य हुआ आपने वहां पहुंचकर बड़ी नम्रतापूर्वक पूछा कि हे स्वर्गगामिनी देवियों ? गणेश जी की पूजा कैसे करनी चाहिए, मुझे बतलाइए? हे ललनाओं! इसका प्रभाव बतलाइए, क्योंकि मैं भी पूजन करना चाहता हूँ।

नाग कन्याओं ने दिया कि आप गणेश जी की पूजा कीजिए। समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और नित्य ही शान्ति, पुष्टि, सुख, सन्तान एवं धन की वृद्धि होती है। राजा ने पूछा कि हे महिलाओ ! गणेश जी की पूजा किस महीने में और किस तिथि को करनी चाहिए? इसमें किस वस्तु का दान देना चाहिए? इस पूजन की क्या विधि है? आप मुझसे कहिए।

नाग कन्याओं ने उत्तर दिया कि हे राजाधिराज ! अधिकमास के कृष्ण पक्ष की को चन्द्रोदय होने पर विधि सहित विघ्न विनाशक गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार भक्तिभाव से पूजन करें। गणेश जी को पंचामृत से नहलाकर लाल पुष्प चढ़ावें। गन्ध, धूप, दीप, नैवेद्य, दूब, दो वस्त्र, सुगन्धित द्रव्य चढ़ावें। घी-चीनी से बने हुए पन्द्रह लड्डू भोग के लिए बनावें। उसमें लड्डू गणेश जी को अर्पण करें और पांच ब्राह्मण को दान में दे दें । कुमारी कन्याओं को पहले देकर बाद में स्वयं भोजन करें। गणेश जी की प्रसन्नता के निमित्त समस्त सामग्री गणेश जी को अर्पित करें। तत्पश्चात पुराणोक्त कथा को सुनें। ऐसा करने से मनुष्य की सभी वांछायें पूर्ण होती एवं समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। गणेश जी के पूजन की यही विधि है। नाग कन्याओं की बातें सुनकर राजा ने उन्हें बारम्बार नमस्कार किया। इस प्रकार राजा ने वहां गणेश जी के व्रत का मन में संकल्प करके सरोवर के तट पर जाकर गणेश जी का ध्यान किया और वहां से चले गये। इसके प्रभाव से गणेश जी आप पर प्रसन्न हो गये और आपको पुत्र, स्त्री, धन-धान्य आदि से पूर्ण कर दिया। आपके महल में रत्नों के हार, स्वर्ण, गौ, हाथी एवं घोड़ों का अभाव न रहा। परन्तु कुछ दिनों के बाद आप धनगर्वित होकर व्रत करना भूल गए। इसके अनन्तर आप उस जन्म में मृत्यु को प्राप्त हुये। हे राजन! उस जन्म में जो पूजन किया था उसके प्रभाव से आपका जन्म राजवंश में हुआ और सहृदय की मित्रता, सुन्दर नारी का समागम एवं सुन्दर शरीर की प्राप्ति होने से धनमद में आकर आपने व्रत करना छोड़ दिया जिसके कारण आपकी ऐसी दुर्गति हुई है।

राजा ने पूछा कि हे ब्राह्मण! अब मैं कौन-सा काम करूँ जिससे वर्तमान संकट से मुक्ति हो? जिस उपाय से हमारे विघ्नों और क्लेशों का नाश हो तथा मुझे शांति प्राप्त हो, वही बताइये।

मार्कण्डेय मुनि ने कहा कि हे महाराज! पूर्वोक्त रीति से आप गणेश जी की पूजा कीजिए और संकटनाशन चतुर्थी के व्रत को कीजिए इससे गणेश जी प्रसन्न होंगे और आपको पुनः राज्य वैभव प्राप्त होगा। इसलिए सम्पूर्ण कष्टों के शमनार्थ आप स्वयं गणेश जी की पूजा कीजिए।

व्यासजी कहते हैं कि मार्कण्डेय जी की बात सुनकर राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपने भवन चले आये। रानी के साथ राजा ने भक्ति पूर्वक विधिवत व्रत किया। व्रत के करने से उनके शत्रुओं का नाश हुआ। उन्होंने अपना खोया हुआ राज्य पुनः पाया। गणेश जी की पूजा करने से सभी वस्तुयें सुलभ हो जाती हैं और सभी कार्यों में सफलता मिलती है।

स्कन्दकुमार जी कहते हैं कि व्यासजी के वचन सुनकर महाराज युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर उनसे फिर पूछा। युधिष्ठिर ने कहा कि हे कष्टों को दूर करने वाले महर्षि ! इस चतुर्थ के व्रत की विधि बतलाइये? किस नाम से, किस मास में, किस प्रका गणेश जी की पूजा करनी चाहिए? तब इस व्रत में किस चीज का आहार करना चाहिए?

तब व्यास जी ने कहा कि हे राजन! अधिक मास में चतुर्थी को गणेश्वर के नाम से पूजा करनी चाहिए। लाल कनेर के फूल चढ़ाकर लड्डू आदि का भोग लगावें। लाल चंदन, रोली, अक्षत और दूब को एक-एक नाम से अलग-अलग चढ़ावें। तत्पश्चात 'विश्वप्रियाय नमः' कहकर (आचमन), ब्रह्मचारिणे नमः' (स्नान), 'गणेश्वराय नमः' से (वस्त्र), 'पुष्टिदाय नमः' से (चन्दन) चढ़ावें। 'विनायकाय नमः' से (पुष्प), 'उमासुताय नमः' से (धूप), रुद्रप्रियाय नमः' से (दीप), 'विघ्ननाशिने नमः' से (नैवेद्य) अर्पित करें। 'फलादात्रे नमः से (ताम्बूल), 'संकटनाशिने नमः' से (फल) चढ़ावें। इसके बाद विघ्नविनायक गणेश जी की प्रार्थना करें। हे सुन्दर मुखवाले गणेश जी ! मैं भव बाधा से ग्रस्त भय से पीड़ित और क्लेशों से सन्तप्त हूँ, आप मेरे पर प्रसन्न होइए। हे दुःख दारिद्रय के नाशक गणनायक जी आप मेरी रक्षा करें। हे विघ्नों के विनाशक! आपको बार-बार मेरा प्रणाम है। फिर निम्नांकित मंत्र से पुष्पांजलि देकर चन्द्रमा को अर्घ्य देवें हे क्षीरसागरसम्भूत हे द्विजराज हे षोडश कलाओं के अधिपति! शंख में सफेद फूल, चन्दन, जल, अक्षत और दक्षिणा लेकर, हे रोहिणी सहित चन्द्रमा! आप मेरे अर्ध्य को स्वीकार करें। मैं आपको प्रणाम करता हूँ। तदनन्तर ब्राह्मण को भोजन करावें लड्डू और दक्षिणा दें। देवता और ब्राह्मण से बचें। अन्न द्वारा स्वयं आहार ग्रहण करें। रात्रि में भूमि पर शयन करें। लालचविहीन होकर क्रोध से दूर रहें। हर महीने गणेश जी की प्रसन्नता के निमित्त व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन प्राप्ति एवं कुमारी कन्या को सुशील वर की प्राप्ति होती है और वह सौभाग्यवती रहकर दीर्घकाल तक पति का सुख भोग करती है। विधवा द्वारा व्रत करने पर अगले जन्म में वह सधवा होती है एवं ऐश्वर्यशालिनी बनकर पुत्र-पौत्रादि का सुख भोगती हुई अन्त में मोक्ष पाती है। पुत्रेच्छु को पुत्र लाभ एवं रोगी का रोग निवारण होता है। भयभीत व्यक्ति भयरहित होता एवं बन्ध में पड़ा हुआ मुक्त हो जाता है।

व्यासजी कहते हैं कि हे राजन! इस प्रकार आप भी व्रत कीजिए। इस संकटनाशक चतुर्थी व्रत करने से आप गणेश जी की कृपा से अपने राज को पुनः हस्तगत कर लेंगे। जो मनुष्य भक्तिभाव से इस मंगलदायिनी पौराणिक कथा को सुनते या पढ़ते हैं, उन्हें परमसिद्धि, सुख, लोकोस वैभव की उपलब्धि होती है। हे महाराजाधिराज! आपके प्रश्न के अनुसार मैंने सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाले इस संकट नाशक गणेश चतुर्थ का विवरण सुनाया है। इसे सुनकर राजा युधिष्ठिर ने इस व्रत को किया। इसके प्रभाव से उन्होंने सम्पूर्ण शत्रुओं को रणभूमि में परास्त करके भारतवर्ष का राज्य अपने अधीन कर लिया।

 

गणेश चतुर्थी पूजा विधि

चतुर्थी तिथि पर स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें।

गणेश जी को स्नान कराएं। इसके बाद को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं।

वस्त्र अर्पित करें। चावल चढ़ाएं। फूलों से श्रृंगार करें। गणेश मंत्र बोलते हुए दूर्वा चढ़ाएं।

भगवान को लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर जलाएं। धूप-दीप से आरती करें। पूजा के बाद भगवान से क्षमा याचना करें।

अंत में प्रसाद अन्य भक्तों को बांटें। अगर संभव हो सके तो घर में ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें।

भगवान् गणेश सब की मनोकामना पूर्ण करें

www.indianstates.in

***********

संकटनाशन गणेश चतुर्थी अधिकमास कृष्ण पक्ष व्रत कथा - चन्द्रसेन नामक राजा की कथा Sankatnashan Ganesh Chaturthi Adhikamaas Krishna Paksha fast story Story of a king named Chandrasen