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संकटनाशन गणेश चतुर्थी आश्विन कृष्ण पक्ष व्रत कथा - श्रीकृष्ण तथा बाणासर की कथा

Sankatnashan Ganesh Chaturthi Ashwin Krishna Paksha fast story - Story of Shri Krishna and Banasar

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संकटनाशन गणेश चतुर्थी आश्विन कृष्ण पक्ष व्रत कथा - श्रीकृष्ण तथा बाणासर की कथा Sankatnashan Ganesh Chaturthi Ashwin Krishna Paksha fast story - Story of Shri Krishna and Banasar
 

संकटनाशन गणेश चतुर्थी आश्विन कृष्ण पक्ष व्रत कथा - श्रीकृष्ण तथा बाणासर की कथा

संकटनाशन गणेश चतुर्थी चौदस व्रत कथा के अंतर्गत सभी मास के गणेश चतुर्थी व्रत की कथा दी जा रही है जो व्रत के साथ श्रवण करने का विधान है -

इस दिन व्रत के साथ कृष्ण नामक गणेश जी के नाम का जप करना चाहिए।

संकटनाशन गणेश चतुर्थी आश्विन कृष्ण पक्ष व्रत कथा - श्रीकृष्ण तथा बाणासर की कथा

युधिष्ठिर ने पूछा कि हे कृष्ण जी मैंने सुना है कि आश्विन कृष्ण चतुर्थी को संकटा चतुर्थी कहते हैं। उस दिन किस भांति गणेश की पूजा करनी चाहिए? हे जगदीश्वर आप कृपा करके मुझसे विस्तार पूर्वक कहिए।

श्रीकृष्ण जी ने उत्तर में कहा कि प्राचीन काल में यही प्रश्न पार्वती जी ने गणेश जी से किया था कि हे देव! क्वार मास में किस प्रकार गणेश जी की पूजा की जाती है? उसके करने का क्या फल होता है? मेरी जानने की इच्छा है -

यह सुनकर हँसते हुए गणेश जी ने कहा हे माता! सिद्धि की कामना रखने वाले व्यक्ति को चाहिए कि आश्विन मास में कृष्ण नामक गणेश की पूजा पूर्वोक्त विधि से करे।इस दिन भोजन न करें तथा क्रोध, पाखण्ड, लोभ आदि का परित्याग कर गणेश जी के स्वरूप का ध्यान करते हुए पूजन करें। आश्विन कृष्ण चतुर्थी का व्रत संकटनाशक है। इस दिन हल्दी और दूब का हवन करने से सप्तद्वीप वाली पृथ्वी का राज हस्तगत ( प्राप्त) होता है।

एक समय की बात है कि बाणासुर की कन्या उषा ने सुषुप्तावस्था में अनिरुद्ध का स्वप्न देखा, अनिरुद्ध के विरह से वह इतनी कामासक्त हो गई कि उसके चित्त को किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिल रही थी। उसने अपनी सहेली चित्रलेखा से त्रिभुवन के सम्पूर्ण प्राणियों के चित्र बनवाए। जब चित्र में अनिरुद्ध को देखा तो कहा-मैंने इसी व्यक्ति को स्वप्न में देखा था। इसी के साथ मेरा पाणिग्रहण भी हुआ था। हे सुजघने ! यह व्यक्ति जहाँ कहीं भी मिल सके, ढूँढ लाओ। अन्यथा इसके वियोग में मैं अपने प्राण छोड़ दूँगी।

अपनी सखी की बात सुनकर चित्रलेखा अनेक स्थानों में खोज करती हुई द्वारकापुरी में आ पहुँची। वहाँ अनिरुद्ध को पहचान कर उसने उसका अपहरण कर लिया, क्योंकि वह राक्षसी माया जानने वाली थी। रात्रि में सहित अनिरुद्ध को उठाकर वह गोधूलि वेला में बाणासुर की नगरी में प्रविष्ट हुई। इधर प्रद्युम्न को पुत्र शोक के कारण असाध्य रोग से ग्रसित होना पड़ा। अपने पुत्र प्रद्युम्न एवं पौत्र अनिरुद्ध की घटना से कृष्ण जी भी विकल हो उठे। रुक्मिनी भी पौत्र के दुख से दुखी होकर बिलखने लगी पतिव्रता रुक्मिणी खिन्न मन से कृष्ण जी से कहने लगी कि हे नाथ! हमारे प्रिय पौत्र का किसने हरण कर लिया? अथवा वह अपनी इच्छा से ही गया है। मैं आपके सामने शोकाकुल हो अपने प्राण छोड़ दूँगी । रुक्मिणी की ऐसी बात सुनकर श्रीकृष्ण जी यादवों की सभा में उपस्थित हुए। वहाँ उन्होंने परम तेजस्वी लोमश ऋषि के दर्शन किए। उन्हें प्रणाम कर श्रीकृष्ण ने सारी घटना कह सुनाई ।

श्रीकृष्ण ने लोमश ऋषि से पूछा कि मुनिवर ! हमारे पौत्र को कौन ले गया? वह कहीं स्वयं तो नहीं चला गया है? हमारे बुद्धिमान पौत्र का किसने अपहरण कर लिया, यह बात मैं नहीं जानता हूँ। उसकी माता पुत्र वियोग के कारण बहुत दुखी है। कृष्ण जी की बात सुनकर लोमश मुनि ने कहा- महर्षि लोमश जी ने कहा कि हे कृष्ण! बाणासुर की कन्या उषा की सहेली चित्रलेखा ने आपके पौत्र का हरण किया है और उसे बाणासुर के महल में छिपाकर रखा है। यह बात नारद जी ने बताई है। आप आश्विन मास के कृष्ण चतुर्थी संकटा का अनुष्ठान कीजिये। इस व्रत के करने से आपका पौत्र अवश्य ही आ जाएगा। ऐसा कहकर मुनिवर वन में चले गये। उन्होंने संकटा व्रत करने का उपदेश दिया। श्रीकृष्ण जी ने लोमश ऋषि के कथनानुसार व्रत किया। हे देवी! इस व्रत के प्रभाव से उन्होंने अपने शत्रु बाणासुर को पराजित कर दिया। यद्यपि उस भीषण युद्ध मे मेरे पिता (शिवजी) ने बाणासुर की बड़ी रक्षा की फिर भी वह परास्त हो गया। भगवान कृष्ण ने कुपित होकर बाणासुर की सहस्र भुजाओं को काट डाला। ऐसी सफलता मिलने का कारण व्रत का प्रभाव ही था । श्री गणेश जी को प्रसन्न करने तथा सम्पूर्ण विघ्न को शमन करने के लिए इस व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। विश्व भ्रमण तथा तीर्थ भ्रमण के निमित्त बढ़कर शुभदायक व्रत नहीं है। श्रीकृष्ण जी कहते है कि हे राजन! सम्पूर्ण विपत्तियों के विनाशार्थ इस व्रत को अवश्य ही करना चाहिए। इसके प्रभाव से शत्रुओं पर आप विजय लाभ करेंगे एवं राज्याधिकारी होंगे। इस व्रत के महात्म्य का वर्णन बड़े-बड़े विद्वान भी नहीं कर सकते। हे पृथा (कुन्ती) तनय! मैंने इसका स्वयं अनुभव किया है, यह मैं आपसे सत्य कह रहा हूँ।

गणेश चतुर्थी पूजा विधि

चतुर्थी तिथि पर स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें।

गणेश जी को स्नान कराएं। इसके बाद को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं।

वस्त्र अर्पित करें। चावल चढ़ाएं। फूलों से श्रृंगार करें। गणेश मंत्र बोलते हुए दूर्वा चढ़ाएं।

भगवान को लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर जलाएं। धूप-दीप से आरती करें। पूजा के बाद भगवान से क्षमा याचना करें।

अंत में प्रसाद अन्य भक्तों को बांटें। अगर संभव हो सके तो घर में ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें।

भगवान् गणेश सब की मनोकामना पूर्ण करें

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