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संकटनाशन गणेश चतुर्थी ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष व्रत कथा - दयादेव नामक ब्राह्मण की कथा

Sankatnashan Ganesh Chaturthi Jyeshtha Krishna Paksha fast story - Story of a Brahmin named Dayadev

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संकटनाशन गणेश चतुर्थी ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष व्रत कथा - दयादेव नामक ब्राह्मण की कथा Sankatnashan Ganesh Chaturthi Jyeshtha Krishna Paksha fast story Story of a Brahmin named Dayadev
 

संकटनाशन गणेश चतुर्थी ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष व्रत कथा - दयादेव नामक ब्राह्मण की कथा

संकटनाशन गणेश चतुर्थी चौदस व्रत कथा के अंतर्गत सभी मास के गणेश चतुर्थी व्रत की कथा दी जा रही है जो व्रत के साथ श्रवण करने का विधान है -

इस दिन व्रत के साथ आख्खु (मूषक) रथा नामक गणेश जी के नाम का जप करना चाहिए।

संकटनाशन गणेश चतुर्थी ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष व्रत कथा - दयादेव नामक ब्राह्मण की कथा

पार्वती जी ने पूछा कि हे पुत्र ! ज्येष्ठ मास की चतुर्थी का किस प्रकार पूजन करना चाहिए? इस महीने के गणेश जी का क्या नाम है? भोजन के रूप में कौन-सा पदार्थ ग्रहण करना चाहिए? इसकी विधि का आप संक्षेप में वर्णन कीजिए।

गणेश जी ने कहा-हे माता! ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी सौभाग्य एवं पति प्रदायिनी है। इस दिन आख्खु (मूषक) रथा नामक गणेश जी की पूजा भक्तिपूर्वक करनी चाएिए। इस दिन घी निर्मित भोज्य पदार्थ अर्थात हलुवा, लड्डू, पूड़ी आदि बनाकर गणेश जी को अर्पित करें। हे जननी! द्वापर युग में राजा युधिष्ठिर ने इस प्रश्न को पूछा था और उसके उत्तर में जो कुछ भगवान कृष्ण ने कहा था, मैं उसी इतिहास का वर्णन करता हूँ। आप श्रद्धायुक्त होकर सुनें।

श्रीकृष्ण बोले- हे राजा युधिष्ठिर! इस कल्याण दात्री चतुथीं का जिसने व्रत किया और उसे जो फल प्राप्त हुआ, मैं उस पूर्वकालीन इतिहास का वर्णन कर रहा हूँ, उसे सुनिए - सतयुग में सौ यज्ञ करनने वाले एक पृथु नामक राजा हुए। उनके राज्यान्तर्गत दयादेव नामक एक ब्राह्मण रहते थे। वेदों में निष्णात उनके चार पुत्र थे। पिता ने अपने पुत्रों का विवाह गृहसूत्र के वैदिक विधान से कर दिया। उन चारों बहुओं में बड़ी बहू अपनी सास से कहने लगी-हे सासूजी! मैं बचपन से ही संकटनाशन गणेश चतुर्थी का व्रत करती आई हूँ। मैंने पितृगृह में भी इस शुभदायक व्रत को किया है। अतः हे कल्याणी! आप मुझे यहाँ व्रतानुष्ठान करने (व्रत रहने) की अनुमति प्रदान करें। पुत्र वधू की बात सुनकर उसके ससुर ने कहा- हे बहू! तुम सभी बहुओं में श्रेष्ठ और बड़ी हो। तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं है और न तो तुम भिक्षुणी हो। ऐसी स्थिति में तुम किस लिए व्रत करना चाहती हो?हे सौभाग्यवती! अभी तुम्हारा समय उपभोग करने का है। ये गणेश जी कौन हैं? फिर तुम्हें करना ही क्या है?

कुछ समय के पश्चात बड़ी बहू गर्भिणी हो गई। दस मास के बाद उसने सुन्दर बालक का प्रसव किया। उसकी सास बराबर बहू को व्रत करने का निषेध करने लगी और व्रत छोड़ने के लिए बहू को बाध्य करने लगी। व्रत भंग होने के फलस्वरूप गणेश जी कुछ दिनों में कुपित हो गये और उसके पुत्र के विवाह-काल में वर-वधू के सुमंगली के समय उसके पुत्र का अपहरण कर लिया। इस अनहोनी घटना से मण्डप में खलबली मच गई। सब लोग व्याकुल होकर कहने लगे-लड़का कहाँ गया? किसने अपहरण कर लिया? बारातियों द्वारा ऐसा समाचार पाकर उसकी माता अपने ससुर दयादेव से रो-रोकर कहने लगी। हे ससुर जी! आपने मेरे गणेश चतुर्थी व्रत को छुड़वा दिया है, जिसके परिणाम स्वरूप ही मेरा पत्र विलुप्त (गायब) हो गया है। अपनी पुत्रवधू के मुख से ऐसी बात सुनकर ब्राह्मण दद्यादेव बहुत दुःखी हुए। साथ ही पुत्रवधू भी दुःखित हुई। पति के लिए दुःखित पुत्रवधू प्रति मास संकटनाशन गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी।

एक समय की बात है कि एक वेदज्ञ और दुर्बल ब्राह्मण भिक्षाटन के लिए इस मधुरभाषिणी के घर आया। ब्राह्मण ने कहा कि हे बेटी! मुझे भिक्षा स्वरूप इतना भोजन दो कि मेरी क्षुधा शान्त हो जाए। उस ब्राह्मण की बात सुनकर उस धर्मपरायण कन्या ने उस ब्राह्मण का विधिवत पूजन किया। भक्ति पूर्वक भोजन कराने के बाद उसने ब्राह्मण को वस्त्रादि दिए। कन्या की सेवा से सन्तुष्ट होकर ब्राह्मण कहने लगा-हे कल्याणी! हम तुम पर प्रसन्न हैं, तुम अपनी इच्छा के अनुकूल मुझसे वरदान प्राप्त कर लो। मैं ब्राह्मण वेशधारी गणेश हूँ और तुम्हारी प्रीति के कारण आया हूँ। ब्राह्मण की बात सुनकर कन्या हाथ जोड़कर निवेदन करने लगी- हे विघ्नेश्वर! यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे मेरे पति के दर्शन करा दीजिए। कन्या की बात सुनाकर गणेश जी ने उससे कहा कि हे सुन्दर विचार वाली, जो तुम चाहती हो वही होगा। तुम्हारा पति शीघ्र ही आवेगा। कन्या को इस प्रकार का वरदान देकर गणेश जी वहीं अन्तर्निहित हो गए।

उसी समय की बात है कि सोमशर्मा नामक ब्राह्मण एक वन में से उस द्विज बालक को नगर में लाये। अपने पौत्र को देखकर दयादेव नामक ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए। बालक की माता के हर्ष की तो सीमा ही न रही साथ ही सम्पूर्ण नगरवासी भी प्रमुदित हुए। बालक की माता ने पुत्र को छाती से लगा लिया और कहने लगी कि गणेश जी के प्रसाद से ही मैंने खोए हुए पुत्र को प्राप्त किया है। उसे नए वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया। दयादेव तो बारम्बार सोमशर्मा को प्रणाम कर कहने लगे कि हे द्विजराज! आपकी कृपा से मैंने खोये हुए पुत्र को प्राप्त किया है। खोया हुआ बालक घर में आ गया। सोमशमां को सुस्वादु भोजन कराकर, धोती दुपट्टा से विभूषित करके गोदान दिया। फिर से मण्डप का निर्माण करके विधिपूर्वक वैवाहिक कार्य सम्पन्न किया। इससे सभी पुरवासी प्रसन्न हुए वह भाग्यशालिनी कन्या अपने पति को पाकर धन्य हो उठी। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी मनुष्यों के मनोरथ को पूर्ण करती है। इस दिन नर-नारियों को 'एकदन्त' गणेश की पूजा करनी चाहिए। हे देवी पूर्वकथित रीति से भक्ति पूर्वक जो व्यक्ति इस व्रत एवं पूजन को करेंगे उनकी सम्पूर्ण इच्छाएँ पूरी होंगी। श्रीकृष्णजी कहते हैं। हे राजन युधिष्ठिर! भगवान गणेश जी के व्रत का ऐसा ही महात्य है। हे महाराज! अपने शत्रुओं के विनाशार्थ आप भी इस व्रत को अवश्य कीजिए।

गणेश चतुर्थी पूजा विधि

चतुर्थी तिथि पर स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें।

गणेश जी को स्नान कराएं। इसके बाद को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं।

वस्त्र अर्पित करें। चावल चढ़ाएं। फूलों से श्रृंगार करें। गणेश मंत्र बोलते हुए दूर्वा चढ़ाएं।

भगवान को लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर जलाएं। धूप-दीप से आरती करें। पूजा के बाद भगवान से क्षमा याचना करें।

अंत में प्रसाद अन्य भक्तों को बांटें। अगर संभव हो सके तो घर में ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें।

भगवान् गणेश सब की मनोकामना पूर्ण करें

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