माघ कृष्ण पक्ष संकट चौथ संकटनाशन गणेश चतुर्थी
Story of Sankatnashan Ganesh Chaturthi Magh Krishna Paksha Vrat - Story of Rishi Sharma Brahmin
माघ माह की सकट चतुर्थी 29 जनवरी 2024 को है।
माघ कृष्ण पक्ष संकट चौथ संकटनाशन गणेश चतुर्थी
माघ माह की सकट चतुर्थी 29 जनवरी 2024 को है।
29 जनवरी को चतुर्थी तिथि प्रारम्भ सुबह 6 बजकर 10 मिनट से होगा एवं समाप्ति 30 जनवरी को सुबह 8 बजकर 54 मिनट पर है। माघ माह की सकट चतुर्थी के दिन 29 जनवरी को चंद्रोदय रात 09 बजकर 10 मिनट पर होगा। (देश के अलग-अलग हिस्सों में चंद्रोदय का समय अलग होता है)
संकटनाशन गणेश चतुर्थी चौदस व्रत कथा के अंतर्गत सभी मास के गणेश चतुर्थी व्रत की कथा दी जा रही है जो व्रत के साथ श्रवण करने का विधान है -
इस दिन व्रत के साथ 'भालचन्द्र' नामक गणेश जी के नाम का जप करना चाहिए।
माघ माह की सकट चतुर्थी पूजा-विधि
1. सुबह स्नान ध्यान करके भगवान गणेश की पूजा करें।
2. इसके बाद सूर्यास्त के बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
3. गणेश जी की मूर्ति के पास एक कलश में जल भर कर रखें।
4. धूप-दीप, नैवेद्य, तिल, लड्डू, शकरकंद, अमरूद, गुड़ और घी अर्पित करें।
5. तिलकूट का बकरा भी कहीं-कहीं बनाया जाता है।
6. पूजन के बाद तिल से बने बकरे की गर्दन घर का कोई सदस्य काटता है।
सकट चौथ पूजा सामग्री लिस्ट-
सकट चौथ की पूजा के लिए लकड़ी की चौकी, पीला जनेऊ, सुपारी, पान का पत्ता, गंगाजल, लौंग, इलायची, सिंदूर, अक्षत, मौली, इत्र, रोली, मेहंदी, 21 गांठ दूर्वा, लाल पुष्प, भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा या मूर्ति, गुलाल, गाय का घी, दीप, धूप, तिल के लड्डू, फल, सकट चौथ व्रत कथा की पुस्तक, चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए दूध, गंगाजल, कलश, चीनी आदि।
सकट चौथ व्रत में पान के प्रयोग का महत्व-
शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्रीगणेश की पूजा में पान का प्रयोग सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माना गया है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी को भी पान अति प्रिय है। कहते हैं कि सकट चौथ पूजन में भगवान गणेश को पान अर्पित करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ॐ गणपतए नमः का करें जाप- सकट चौथ के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके भगवान गणेश की पुष्प, दूर्वा, लड्डू आदि से विधि-विधान पूर्वक पूजा करनी चाहिए। विघ्नों को हरने वाले भगवान गणेश के मंत्र ॐ गणपतए नमः का जाप करना चाहिए। संतान की लंबी आयु के लिए सकट चौथ व्रत की कथा सुननी चाहिए। रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न करना चाहिए।
संकटनाशन गणेश चतुर्थी माघ कृष्ण पक्ष व्रत कथा - ऋषि शर्मा ब्राह्मण की कथा
पार्वती जी ने पूछा कि हे वत्स! माघ महीने में किस गणेश की पूजा करनी चाहिए तथा इसका क्या नाम है? उस दिन पूजन में किस वस्तु का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए? और क्या आहार ग्रहण करना चाहिए। इसे आप सविस्तार बतलाने की कृपा करें।
गणेश जी ने कहा कि हे माता! माघ में 'भालचन्द्र' नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। इनका पूजन षोडशोपचार विधि से करना चाहिए। हे माता पार्वती! इस दिन तिल के दस लड्डू बना लें। पांच लड्डू देवता को चढ़ावें और शेष पांच ब्राह्मण को दान दे देवें। ब्राह्मण की पूजा भक्तिपूर्वक करके, उन्हें दक्षिणा देने के बाद उन पांच लड्डुओं को उन्हें प्रदान कर दें। हे देवी! तिल के दस लड्डुओं का स्वयं आहार करें। इस सम्बन्ध में मैं आप को राजा हरिश्चन्द्र का वृतान्त सुनाता हूँ ।
सतयुग में हरिश्चन्द्र नामक एक प्रतापी राजा हुए थे। वे सरल स्वभाव, सत्यनिष्ठ और विद्वान ब्राह्मणों के पूजक थे । हे देवी! उनके शासन काल में अधर्म नाम की कोई वस्तु नहीं थी। उनके राज्य में कोई अपाहिज दरिद्र या दुःखी नहीं था। सभी लोग आधि व्याधि से रहित एवं दीर्घायु होते थे। उन्हीं के राज्य में एक ऋषि शर्मा नामक तपस्वी ब्राह्मण रहते थे। एक पुत्र की प्राप्ति होने के बाद ही वे स्वर्गवासी हुए। पुत्र का भरण-पोषण उनकी पत्नी करने लगी। वह विधवा ब्राह्मणी भिक्षाटन के द्वारा पुत्र का पालन-पोषण करती थी। उस ब्राह्मणी ने माघ मास की संकटा चतुर्थी का व्रत किया।
वह पतिव्रता ब्राह्मणी गोबर से गणेश जी की प्रतिमा बनाकर सदैव पूजन किया करती थी। हे पार्वती! भिक्षाटन के द्वारा ही उसने पूर्वोक्त रीति से तिल के दस लड्डू बनाये। इसी बीच उसका पुत्र गणेश जी क मूर्ति अपने गले में बांधकर स्वेच्छा से खेलने के लिए बाहर चला गया। तब एक नर पिशाच कुम्हार ने उस ब्राह्मणी के पांच वर्षीय बालक को जबरन पकड़कर अपने आंवों में छोड़कर मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए उसमें आग लगा दी। इधर उसकी माता अपने बच्चों को ढूंढने लगी। उसे न पाकर वह बड़ी व्याकुल हुई। वह ब्राह्मणी विलाप करती हुई गणेश जी की प्रार्थना करने लगी। हे गणेश जी ! विशाल शरीर वाले! हे सूर्यनारायण की लाली के सदृश कान्तिशाली ! हे सुन्दर जटा समूह को धारण करने वाले ! आप इस दुःखिनी की रक्षा कीजिए। हे गजानन ! हे चार भुजाधारी! हे मस्तक में चन्द्रमा को धारण करने वाले! हे विनायक ! हे अनाथों के नाथ! हे वरदायक! मैं पुत्र के वियोग में व्यथित हूँ। आप मेरी रक्षा कीजिए। वह ब्राह्मणी इसी प्रकार आधी रात तक विलाप करती रही। प्रातः काल होने पर कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों को देखने के लिए आया जब उसने आंवां खोल के देखा तो उसमें जांघ भर पानी जमा हुआ पाया और इससे भी अधिक आश्चर्य उसे जब हुआ कि उसमें बैठे एक खेलते हुए बालक को देखा। ऐसी अद्भुत घटना देखकर वह भयवश कांपने लगा और इस बात की सूचना उसने राज दरबार में दी। उसने राज्य सभा में अपने कुकृत्य का वर्णन किया।
कुम्हार ने कहा कि हे महाबाहु! हे प्रज्जवलित अग्नि के समान तेजवान ! हे महाराज हरिश्चन्द्र ! मैं अपने दुष्कर्म के लिए वध के योग्य हूँ। उसने आगे कहा- हे महाराज! कन्या के विवाह के लिए मैंने कई बार मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आंवां लगाया। परन्तु मेरे बर्तन कभी भी नहीं पके और सदैव कच्चे ही रह गये। तब मैंने भयभीत होकर एक तांत्रिक से कारण पूछा। उसने कहा कि चुपचाप किसी लड़के की तुम बलि चढ़ा दो, तुम्हारा आंवां पक जायेगा। मैंने सोचा कि मैं किसके बालक की बलि दूँ? जिसके बालक की बलि दूंगा वह मुझे क्योंकर जीवित छोड़ेगा? इसी भय से हे महाराज! मैंने दृढ़ निश्चय किया कि इसे ही बैठाकर आग लगा दूंगा। मैंने अपनी पत्नी से परामर्श किया कि ऋषिशर्मा ब्राह्मण मृत हो गये हैं। उनकी विधवा पत्नी भीख माँगकर अपना गुजारा करती है। अरी! वह लड़के को लेकर क्या करेगी? मैं यदि उसके पुत्र को बलि दे दूं तो मेरे बर्तन पक जायेंगे। मैं इस जघन्य कर्म को करके रात में निश्चिन्त होकर सो गया। प्रातः जब मैंने आंवां खोलकर देखा तो क्या देखता हूँ कि उस लड़के को मैं जिस स्थिति में बैठा गया था, वह उसी तरह निर्भय भाव से बैठा है और उसमें जाँघ भर पारी भरा हुआ है। इस भयावह दृश्य से मैं कांप उठा और इसकी सूचना देने आपके पास आया हूँ।
कुम्हार की बात सुनकर राजा बहुत ही विस्मित हुए और उस लड़के को देखने के लिए आए। बालक को प्रसन्नता पूर्वक खेलते देखकर मंत्री से राजा ने कहा कि यह क्या बात है? यह किसका लड़का है? इस बात का पता लगाओ। इस आंवे में जांघ भर जल कहां से आया? इसमें कमल के फूल कहां से खिल गये? इस दरिद्र कुम्हार के आंवे में वैदूर्य मणि के •समान हरी-हरी दूब कहां से उग आई। बालक को न तो आग की जलन हुई न तो इसे भूख प्यास ही है। यह आंवे में भी वैसा ही खेल रहा है, मानो अपने घर में खेल रहा हो। राजा इस तरह की बात कह ही रहे थे कि वह ब्राह्मणी वहां बिलखती हुई आ पहुँची। वह कुम्हार को कोसने लगी। जिस प्रकार गाय अपने बछड़े को देखकर रंभाती है, ठीक वही अवस्था उस बुढ़िया की थी। वह बुढ़िया बालक को गोद में लेकर प्यार करने लगी और कांपती हुई राजा के सामने बैठ गई । राजा हरिश्चन्द्र ने पूछा कि हे ब्राह्मणी! इस बालक के न जलने का क्या कारण है? क्या तू कोई जादू जानती है अथवा तूने कोई धर्माचरण किया है। जिसके कारण बच्चे को आंच तक न आई?
राजा की बात सुनकर ब्राह्मणी ने कहा कि हे महाराज! मैं कोई जादू नहीं जानती और न तो कोई धर्माचरण, तपस्या, योग, दान आदि की प्रक्रिया ही जानती हूँ। हे राजन! मैं तो संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करती हूँ। उसी व्रत के प्रभाव से मेरा पुत्र जीता-जागता बच गया। ब्राह्मणी की बात सुनकर राजा ने कहा कि मेरे राज्य की सम्पूर्ण जनता इस संकटनाशक गणेश का व्रत करे, इसमें मेरी पूर्ण सम्मति है। राजा उसकी परिक्रमा करते हुए कहा कि हे पतिव्रते! तू धन्य है । राजा ने सम्पूर्ण नगरवासियों को गणेश जी का व्रत करने का आदेश दिया। इस आश्चर्यजनक घटना के कारण सभी लोग उस दिन से प्रत्येक मास की गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणी ने अपने पुत्र के जीवन को पुनः पाया था।
इतना कहने के बाद श्रीकृष्ण ने कहा कि हे युधिष्ठिर! आप भी सर्वोत्तम व्रत को कीजिए इस व्रत के प्रभाव से आपकी सभी कामनाएँ पूर्ण होंगी। आप मित्रों, पुत्रों और पौत्रों को सुख देने वाले साम्राज्य को प्राप्त करेंगे। हे महाराज! जो लोग इस व्रत को करेंगे उन्हें पूर्ण सफलता मिलेगी। भगवान कृष्ण की बात से युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए और माघ कृष्ण गणेश चतुर्थी का व्रत करके निष्कण्टक राज्य भोगने लगे।
गणेश चतुर्थी पूजा विधि
चतुर्थी तिथि पर स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें।
गणेश जी को स्नान कराएं। इसके बाद को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं।
वस्त्र अर्पित करें। चावल चढ़ाएं। फूलों से श्रृंगार करें। गणेश मंत्र बोलते हुए दूर्वा चढ़ाएं।
भगवान को लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर जलाएं। धूप-दीप से आरती करें। पूजा के बाद भगवान से क्षमा याचना करें।
अंत में प्रसाद अन्य भक्तों को बांटें। अगर संभव हो सके तो घर में ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें।
भगवान् गणेश सब की मनोकामना पूर्ण करें
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