हरि वासर और दूजी एकादशी क्या होता है?
What is Hari Vasar and Duji Ekadashi?
॥ श्रीहरिः ॥
एकादशी व्रत का पारण, हरि वासर में करना चाहिए या नहीं ?
हरि वासर क्या होता है ?
द्वादशी तिथि का पहला चौथाई समय हरि वासर कहा जाता है। पंचांग में हर तिथि की पूर्ण अवधि है, उसके चार भाग करने पर जो प्रथम भाग मिलता है वही प्रथम भाग का समय हरि वासर हुआ।
शास्त्रों में एकादशी को "हरि वासर" भी कहा गया है। वेद में बताया गया है कि सर्वोच्च ईश्वर को समर्पित प्रति वर्ष में कुछ विशिष्ट दिन होते हैं। इन्हीं दिनों को "हरि वासर" के नाम से जाना जाता है। "हरि" भगवान श्रीविष्णु के नामों में से एक है और "वसर" जो संकृत शब्द है उसका अर्थ है 'दिन' । इसलिए, हरि वासर का अर्थ है, "भगवान विष्णु का दिन"।
एकादशी व्रत का पारण, हरि वासर में करना चाहिए या नहीं?
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर में नहीं किया जाता। हरि वासर का समय बिताने के बाद ही पारण करना चाहिए। इसलिए व्रती को पारण के लिए इसके खत्म होने का इंतजार करना होता है। एकादशी व्रत पारण के लिए सबसे अच्छा समय प्रात:काल है, बस यह देख लेना है कि हरि वासर का समय बीत गया हो। व्रती को मध्यान्ह काल के दौरान व्रत खोलने से बचना चाहिए। मध्यान्हकाल अर्थात दोपहर में 11 से दोपहर 1 बजे तक व्रत नहीं खोलना चाहिए। किसी कारण आप प्रात:काल व्रत नहीं खोल पाए हैं तो मध्यान्हकाल बीतने पर ही व्रत खोलना चाहिए।
दूजी एकादशी किसे कहते हैं?
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं। स्मार्त-परिवार पहले दिन एकादशी व्रत करते हैं।