भीष्मपञ्चक व्रत की विधि एवं महिमा
Method and glory of Bhishma Panchak Vrat
॥ श्रीहरिः ॥
भीष्मपञ्चक व्रत की विधि एवं महिमा
Method and glory of Bhishma Panchak Vrat
कार्तिक शुक्लपक्ष में एकादशी को भीष्मपञ्चक व्रत शुरू किया जाता है। इस दिन प्रातःकाल विधिपूर्वक स्नान करके पाँच दिन का व्रत ग्रहण शुरू किया जाता है। सबसे पहले यह व्रत अयोध्यापुरी में के अतिथि नाम के राजा ने वसिष्ठजी के वचन से इस परम दुर्लभ व्रत का अनुष्ठान किया था, जिससे इस लोक में सम्पूर्ण भोगों का उपभोग करके अन्त में वे भगवान् विष्णु के परम धाम में गये थे। ऐसा महाभारत में बाणशय्या पर सोये हुए महात्मा भीष्म ने पांडवों और श्रीकृष्ण जी को उपदेश किया है। महाभारत के अनुसार बाणशय्या पर सोये हुए महात्मा भीष्म ने राजधर्म, मोक्षधर्म और दानधर्म का वर्णन किया, जिसे पाण्डवों के साथ ही भगवान् श्रीकृष्ण ने भी सुना। उससे प्रसन्न होकर भगवान् वासुदेव ने कहा- 'भीष्म ! तुम धन्य हो, धन्य हो, तुमने धर्मों का स्वरूप अच्छी तरह श्रवण कराया है। कार्तिक की एकादशी को तुमने जलके लिये याचना की और अर्जुनने बाणके वेग से गङ्गाजल प्रस्तुत किया, जिससे तुम्हारे तन, मन, प्राण सन्तुष्ट हुए। इसलिये आज से लेकर पूर्णिमा तक तुम्हें सब लोग अर्घ्यदान से तृप्त करें और मुझको सन्तुष्ट करनेवाले इस भीष्मपञ्चक नामक व्रत का पालन प्रतिवर्ष करते रहें।' देवउठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक मृत्यु शैया पर लेटे हुए पितामह भीष्म ने पांडवों को उपदेश दिए थे और उन्हें पापों से छुटकारा पाने का रास्ता दिखाया था। इसी कारण इस पांच दिन को भीष्म पंचक कहा जाता है।
भीष्म पंचक के 5 दिन बहुत पुण्यफलदायी माने गए हैं। व्रत करने वाले धन सहित समस्त सुख भोगकर स्वर्ग में स्थान प्राप्त करता है। इस दौरान व्रत रखने वालों को पाप कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। जो मनुष्य पुत्रकी कामना से स्त्री-सहित भीष्मपञ्चक व्रत का पालन करता है, वह वर्ष के भीतर ही पुत्र प्राप्त करता है। जो भीष्मपञ्चक व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभकृत्यों का पालन हो जाता है। यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करने वाला है। अतः मनुष्यों को प्रयत्नपूर्वक इसका अनुष्ठान करना चाहिये।
भीष्म पंचक व्रत के निमय (Bhishma Panchak Niyam)
एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पाँच दिनों का भीष्मपञ्चकव्रत समस्त भूमण्डलमें प्रसिद्ध है। भीष्म पंचक के 5 दिन तक व्रतधारी को अन्न का त्याग कर सिर्फ फलाहार करना चाहिए। इस प्रकार नियम, उपवास और पञ्चगव्य से तथा दूध, फल, मूल एवं हविष्य के आहार से निर्वाह करते हुए भीष्मपञ्चकव्रत का पालन करे। अन्न भोजन करने वाले पुरुष के लिये यह व्रत नहीं कहा गया है, इसमें अनका निषेध है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यानी समापन के दिन पहले दिन के समान पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन करावें और फिर बछड़े सहित गौ का दान करने का विधान है। इस व्रत का पालन करनेपर भगवान् विष्णु शुभ फल प्रदान करते हैं। इस व्रत की शुरुआत में अखंड ज्योति जलाएं और चौकी पर भीष्म और श्रीकृष्ण की तस्वीर स्थापित कर निम्राङ्कित मन्त्र पढ़कर महात्मा भीष्म के लिये तर्पण करना चाहिये।
भीष्मतर्पण का मन्त्र -
सत्यव्रताय शुचये गाङ्गेयाय महात्मने।
भीष्मायैतद् ददाम्ययमाजन्मन्ब्रह्मचारिणे ।।
आजन्म ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले परम पवित्र सत्यव्रतपरायण गङ्गानन्दन महात्मा भीष्मको मैं यह अर्घ्य देता हूँ।
भीष्म जी के लिये अर्घ्यदान का मंत्र -
भीष्मजी के लिये जलदान और अर्घ्यदान विशेष यत्न से करना चाहिये। जो नीचे लिखे मन्त्र से भीष्म जी के लिये अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है।
अर्घ्य-मन्त्र -
वैयाघ्रपदगोत्राय साङ्कतप्रवराय च।
अपुत्राय ददाम्येतदुदर्क भीष्मवर्मणे ॥
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च।
अर्घ्य ददामि भीष्माय आजन्मन्ब्रह्मचारिणे ॥
जिनका व्याघ्रपद गोत्र और साडूत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्माको मैं यह जल देता हूँ। वसुओंके अवतार, शन्तनुके पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्मको मैं अर्घ्य देता हूँ।
अब पञ्चगव्य, सुगन्धित चन्दन के जल, चन्दन, उत्तम गन्ध और कुङ्कुम के द्वारा भक्तिपूर्वक सर्वपापहारी श्रीहरि का पूजन करें । कर्पूर और खस मिले हुए कुङ्कुम से भगवान् गरुडध्वज के अङ्गों में लेप करें । सुन्दर पुष्प एवं गन्ध, धूप आदि के द्वारा भगवान्की अर्चना करें । पाँच दिनों तक भगवान् के समीप दिन-रात दीपक जलाता रहना चाहिए । देवाधिदेव भगवान् को नैवेद्य निवेदन करें।
अब भगवान् की इस प्रकार पूजा-अर्चाना, ध्यान और नमस्कार के पश्चात् 'ॐ नमो वासुदेवाय' इस मन्त्र का एक सौ आठ बार जप करें । फिर घी मिलाये हुए तिल, चावल और जौ आदि के द्वारा स्वाहा विशिष्ट षडक्षर ( ॐ रामाय नमः) मन्त्र से आहुति दे। इसके बाद सायं-सन्ध्या करके भगवान् विष्णु को प्रणाम करे तथा पूर्ववत् मन्त्र जप कर धरती पर ही शयन करे। भक्तिपूर्वक भगवान् में मन को लगावें । व्रत के समय बुद्धिमान् पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पापपूर्ण विचार का परित्याग करें तथा मैथुन का भी परित्याग करें । शाकाहार तथा मुनियों के अन्न से निर्वाह करते हुए सदा भगवान् विष्णु के पूजन में तत्पर रहे। रोजाना गीता का पाठ जरुर करें। भीष्म पंचक व्रत के आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा पर हवन करें और श्रीहरि की पूजा कर व्रत संपन्न करें। रात्रि में पञ्चगव्य लेकर भोजन करें । इस प्रकार भली भाँति व्रत को समाप्त करे।
ऐसा करनेसे मनुष्य शास्त्रोक्त फल को पाता है। स्त्रियों को अपने पति की आज्ञा लेकर पुण्य की वृद्धि करनी चाहिये। विधवाओं को भी मोक्षसुख की वृद्धि के लिये व्रत का अनुष्ठान करना चाहिये।