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कृष्ण जन्माष्टमी

Krishna Janmashtami

विष्णु का ध्यान - पंचदेव पूजन विधि * विष्णुस्मरण * श्री विष्णु सहस्र नाम स्तोत्रम् * कृष्ण जन्माष्टमी * श्री राधाष्टमी * श्री राधाष्टकम * मधुराष्टकम् * युगलाष्टकम् * गोपाल सहस्त्रनाम पाठ * एकादशी * सम्पूर्ण एकादशी व्रत सूची * भगवान विष्णु के 108 नाम * ओम जय जगदीश हरे आरती * तुलसी विवाह व्रत * भीष्मपञ्चक व्रत * क्या एकादशी को तुलसी में जल देना चाहिए? * विष्णु के पूजन में चढ़ने वाले और न चढ़ने वाले पत्र-पुष्प * श्री विष्णु शत नामावलि (विष्णु पुराण) * विष्णुरूपा गायत्री का ध्यान * अनंत चतुर्दशी * दशावतार व्रत * सप्तश्लोकी गीता हिंदी अर्थ सहित * महाद्वादशी व्रत * हरि वासर और दूजी एकादशी क्या होता है? * विष्णु पुराण * पद्म पुराण * पापमोचिनी एकादशी * कामदा एकादशी * वरुथिनी एकादशी * मोहिनी एकादशी * अपरा एकादशी * निर्जला एकादशी * योगिनी एकादशी * देवशयनी एकादशी * कामिका एकादशी * पुत्रदा पवित्रा एकादशी * अजा अन्नदा एकादशी * इंदिरा एकादशी * पापांकुशा एकादशी * रमा एकादशी * देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी * उत्पन्ना एकादशी * मोक्षदा एकादशी * सफला एकादशी * पुत्रदा एकादशी * षटतिला एकादशी * जया एकादशी * विजया एकादशी * आमलकी एकादशी * परम एकादशी * पद्मिनी कमला एकादशी * त्रिस्पृशा एकादशी
 
Krishna-Janmashtami

॥ श्रीहरिः ॥

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत

वर्ष 2024 में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत 26 अगस्त 2024 , दिन सोमवार को सर्वत्र मनाया जायेगा और 27 अगस्त 2024 , दिन मंगलवार को वैषण्व संप्रदाय के लोग मनाएंगे।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के माहात्म्य का वर्णन विष्णु पुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, वह्नि पुराण, भविष्य पुराण आदि ग्रंथों में मिलता है। यह व्रत भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। भगवान् श्रीकृष्णका जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय में हुआ था। उस समय चन्द्रमा वृष राशि में था।

शास्त्र में इस अभीष्ट योग का शुद्धा और विद्धा दो भेद हैं। उदय से उदयपर्यन्त शुद्धा और तद्गत सप्तमी या नवमी से विद्धा होती है। शुद्धा या विद्धा भी- समा, न्यूना या अधिका के भेद से तीन प्रकार की हो जाती हैं और इस प्रकार अठारह भेद बन जाते हैं, परंतु सिद्धान्त रूप में अर्धरात्रि में रहनेवाली भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि अधिक मान्य होती है। वह यदि दो दिन हो-या दोनों ही दिन न हो तो (सप्तमीविद्धा को सर्वथा त्यागकर) नवमी- विद्धा का ग्रहण करना चाहिये।

यह सर्वमान्य और पापन्नव्रत बाल, कुमार, युवा और वृद्ध-सभी अवस्थावाले नर-नारियों के करने योग्य है। इससे उनके पापों की निवृत्ति और सुखादि की वृद्धि होती है। इसमें अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के (तिथिमात्र) पारणा से व्रत की पूर्ति होती है।

व्रत करने वाले को चाहिये कि उपवास के पहले दिन थोड़ा भोजन करे। रात्रि में संयम पूर्वक रहे और उपवास के दिन प्रातः स्त्रानादि नित्यकर्म करके सूर्य, सोम, यम, काल, सन्धि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्म आदि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठे; हाथ में जल, फल, कुश, फूल और गन्ध लेकर यह संकल्प करे -

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का संकल्प

ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2081 पिंगल नाम संवत्सरे भादौ मासे कृष्ण पक्षे अष्टमी तिथौ ... वासरे (दिन का नाम जैसे सोमवार है तो "सोम वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भादौ मासे अष्टमी तिथौ ममाखिलपापप्रशमनपूर्वकसर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमी- व्रतमहं करिष्ये।

फिर मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान करके देवकीजी के लिये 'सूतिकागृह' नियत करे। उसे स्वच्छ और सुशोभित करके उसमें सूतिका के उपयोगी सब सामग्री यथाक्रम रखे। सामर्थ्य हो तो गाने-बजानेका भी आयोजन करे। प्रसूतिगृह के सुखद विभाग में सुन्दर और सुकोमल बिछौने के सुदृढ़ मंच पर अक्षत आदि का मण्डल बनवाकर उस पर शुभ कलश स्थापन करे और उसी पर सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल, मणि, वृक्ष, मिट्टी या चित्ररूप की मूर्ति स्थापित करे। मूर्ति में सद्यः प्रसूत कृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किये हुए हों- ऐसा भाव प्रकट रहे। इसके बाद यथासमय भगवान्‌के प्रकट होने की भावना करके वैदिक विधि से, पौराणिक प्रकार से अथवा अपने सम्प्रदायकी पद्धति से पञ्चोपचार, दशोपचार, षोडशोपचार या आवरणपूजा आदि में जो बन सके वही प्रीतिपूर्वक करे।

पूजन में देवकी, वसुदेव, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी- इन सबका क्रमशः नाम निर्दिष्ट करना चाहिये। अन्त में इन मन्त्रों से देवकी को अर्घ्य दे -

प्रणमे देवजननीं त्वया जातस्तु वामनः ।
वसुदेवात् तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः ।।
सपुत्रार्ध्वं प्रदत्तं मे गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।।

इसके बाद निम्न मंत्र से श्रीकृष्ण को 'पुष्पाञ्जलि' अर्पण करें -

धर्माय धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नमः ।

इसके बाद जातकर्म, नालच्छेदन, षष्ठीपूजन और नामकरणादि करके निम्न मंत्र से चन्द्रमाका पूजन करे -

सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसम्भवाय सोमाय नमो नमः ।

शङ्ख में जल, फल, कुश, कुसुम और गन्ध डालकर दोनों घुटने जमीन में लगावे और निम्न मंत्र से चन्द्रमा को अर्घ्य दें -

क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिनेत्र-समुद्भव ।
गृहाणार्ध्वं शशाङ्केमं रोहिण्या सहितो मम ।।
ज्योत्स्त्रापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते।
नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्य मे प्रतिगृह्यताम् ।।

इसके बाद रात्रि के शेष भाग को स्तोत्र-पाठादि करते हुए बितावें ।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का पारणा -

दूसरे दिन पूर्वाह्न में (प्रात:काल ) पुनः स्नानादि करके जिस तिथि या नक्षत्रादि के योग में व्रत किया हो उसका अन्त होने पर पारणा करे। यदि अभीष्ट तिथि या नक्षत्रादि के समाप्त होने में विलम्ब हो तो जल पीकर पारणा की पूर्ति करे।

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