विष्णु पुराण
Vishnu Puran - what is its importance in Hinduism
विष्णु पुराण क्या है और हिंदू धर्म में इसका क्या महत्व है?
विष्णु पुराण सभी 18 पुराण में सबसे छोटा है। अष्टादश महापुराणों में श्री विष्णुपुराण का स्थान बहुत ऊँचा है। विष्णु पुराण में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। शिव ऊर्जा के प्रतीक हैं एवं विष्णु जल के प्रतीक हैं। जल में स्थित होने के कारण हीं इन्हें नारायण कहा गया है। विष्णु पुराण की अलग से रचना के पीछे मानव समाज को इस जगत की वैज्ञानिक समझ देनी है। जल में निवास के कारण ही ईश्वर को नारायण कहा जाता है जो विष्णु रूप है। इसलिए विष्णु त्रिदेव में पालनहार हैं और सकल संसार के रचयिता हैं। विष्णु पुराण इसी विष्णु को समर्पित है जो जल में जीवन उद्भव का कारण है। विष्णु पुराण ऋषि मैत्री और उनके गुरु पराशर ऋषि के बीच बातचीत के रूप में शुरू होता है। इसमें ऋषि मैत्री अपने गुरु पराशर से पूछते हैं कि इस ब्रह्मांड का स्वरूप क्या है और उसमें क्या सब कुछ है? यानि मैटर जिससे यह बना है। अभी जो विष्णु पुराण का संस्करण उपलब्ध है उसमें कुल 7000 श्लोक हैं। कहीं-कहीं यह मान्यता है कि प्राचीन काल में जो संस्करण उपलब्ध थी उसमें करीब 23000 श्लोक थे। इसमें भूगोल, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, राजवंश और श्रीकृष्ण-चरित्र आदि कई प्रंसगों का बड़ा ही अनूठा और विशद वर्णन किया गया है। श्री विष्णु पुराण में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की सर्वव्यापकता, ध्रुव, प्रह्लाद, वेनु, आदि राजाओं के वर्णन एवं उनकी जीवन गाथा, विकास की परम्परा, कृषि गोरक्षा आदि कार्यों का संचालन, भारत आदि नौ खण्ड मेदिनी, सप्त सागरों के वर्णन, अद्यः एवं अर्द्ध लोकों का वर्णन, चौदह विद्याओं, वैवस्वत मनु, इक्ष्वाकु, कश्यप, पुरुवंश, कुरुवंश, यदुवंश के वर्णन, कल्पान्त के महाप्रलय का वर्णन आदि विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है। भक्ति और ज्ञान की प्रशान्त धारा तो इसमें सर्वत्र ही प्रच्छन्न रूप से बह रही है।
विष्णु पुराण कथा समीक्षा :
आरंभ
यह एक वैष्णव महापुराण है, यह सब पातकों का नाश करने वाला है। विष्णु पुराण में 6 अध्याय (भाग) हैं जो इस प्रकार वर्णित हैं -
पूर्व भाग - प्रथम अंश :
इसके पूर्वभाग में शक्ति नन्दन पराशर ने मैत्रेय को छ: अंश सुनाये है, उनमें प्रथम अंश में इस पुराण की अवतरणिका दी गयी है। ब्रह्मांड की रचना, देवताओं और राक्षसों के जन्म, प्रलय, समुद्र मन्थन की कथा, दक्ष आदि के वंश का वर्णन, भक्त ध्रुव की कहानियों तथा पृथु का चरित्र, प्राचेतस का उपाख्यान, प्रहलाद की कथा और हिरण्यकश्यप आदि का वध, ब्रह्माजी के द्वारा देव, मनुष्य आदि वर्गों के प्रधान-प्रधान व्यक्तियो को पृथक-पृथक राज्याधिकार दिये जाने का वर्णन प्रथम अंश में है।
पूर्व भाग-द्वितीय अंश :
इसमें प्रियव्रत के पुत्रों और भरत वंश का वर्णन है। जम्बू द्वीप, भारतवर्ष, शतद्वीप और वर्षों का वर्णन, पाताल, सूर्य और सूर्य का रथ, ग्रह, गंगा की उत्पत्ति आदि का भौगोलिक विवरण, पाताल और नरकों का वर्णन, सात स्वर्गों का निरूपण, अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन है। भरत चरित्र, मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद, ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं।
पूर्व भाग-तीसरा अंश :
इसमें मन्वन्तर, कल्प, धर्म और जाति व्यवस्था आदि का विस्तृत विवरण है। मन्वन्तरों का वर्णन, वेदव्यास का अवतार का वर्णन है। सगर और और्ब के संवाद में सब धर्मों का निरूपण श्राद्धकल्प तथा वर्णाश्रम धर्म सदाचार निरूपण, माहामोह की कथा, यह सब तीसरे अंश में बताया गया है।
पूर्व भाग-चतुर्थ अंश :
सूर्यवंश की पवित्र कथा, चन्द्रवंश का वर्णन तथा नाना प्रकार के राजाओं का वृतान्त चतुर्थ अंश के अन्दर है। इसमें ब्रह्मानंद दक्ष की उत्पत्ति, पुरुरवा का जन्म, बलराम का रेवती के साथ विवाह, इक्ष्वाकु का जन्म, कुकुष्ठ वंश, युवानाश्व और सौभरी की कहानी, सर्पविनाशा मंत्र, एक नारायण वंश, सागर का जन्म, सागर द्वारा अश्वमेध यज्ञ की कथा, भगीरथ की तपस्या से गंगा का अवतरण, भगवान राम का जन्म, विश्वामित्र का यज्ञ, सीता का जन्म, चंद्र वंश की कथाएं, तारा का अपहरण, अग्नित्रयो की उत्पत्ति, धन्वंतरि और उनके वंश का जन्म, देवताओं का राक्षसों के साथ युद्ध, नहुष का वंश, ययाति की कथा, कार्तवीर्य अर्जुन का जन्म, यदु वंश के बारे में, कृष्ण के जन्म के किस्से, जाम्बवंती और सत्यभामा के साथ कृष्ण का विवाह, शिशुपाल का उद्धार का वर्णन है। कर्ण का जन्म और अधिरथ द्वारा उसकी खोज, जनमेजय वंश और भारत की उत्पत्ति, जाह्नु और पांडु के वंश, परीक्षित का कुल और भविष्य के शाही राजवंश, इक्ष्वाकु वंश की भावी पीढ़ी, बृहद वंश की भावी पीढ़ी, प्रद्योत वंश की भावी पीढ़ी, नंद का साम्राज्य, कलियुग का आगमन और कलियुग के शाही राजवंशों का वर्णन है।
पूर्व भाग-पंचम अंश :
यह भाग कृष्ण एवं उनकी लीला को समर्पित है। श्रीकृष्णावतार विषयक प्रश्न, गोकुल की कथा, बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण द्वारा पूतना आदि का वध, कुमारावस्था में अघासुर आदि की हिंसा, किशोरावस्था में कंस का वध, मथुरापुरी की लीला, तदनन्तर युवावस्था में द्वारका की लीलायें, समस्त दैत्यों का वध, भगवान के विवाह, द्वारका में रहकर योगीश्वर ईश्वर जगन्नाथ श्रीकृष्ण के द्वारा शत्रुओं के वध के द्वारा पृथ्वी का भार उतारा जाना और अष्टावक्र जी का उपाख्यान ये सब बातें पांचवें अंश के अन्तर्गत हैं। इसमें में वासुदेव और देवकी का विवाह का, कंस को मारने के लिए भगवान विष्णु का अवतार का, यशोदा के गर्भ में यज्ञमाया का और देवकी के गर्भ में भगवान का आगमन का वर्णन है। भगवान कृष्ण का जन्म, कृष्ण को गोकुल ले जाना, कंस के साथ महामाया का संवाद, कंस द्वारा रक्षात्मक रुख हासिल करना तथा वासुदेव और देवकी की रिहाई, पूतना का वध, शकत की हत्या, कृष्ण और बलराम का नामकरण, कालिया नाग का अपमान, धेनुकासुर का वध, प्रलम्ब का वध, इन्द्र को समर्पित पर्व का वर्णन, गोवर्धन की उपासना, इन्द्र का आगमन, अरिष्टकासुर का वध, कंस के दरबार में नारद का आगमन, केशी का वध, वृंदावन में अक्रूर का आगमन, भगवान कृष्ण का मथुरा आगमन, कुब्जा पर भगवान कृष्ण की कृपा का वर्णन है। कंस की हत्या, उग्रसेन का राज्याभिषेक, मथुरा में सुधार को लाना, जरासंध की पराजय, कालयवन का जन्म, कालयवन का वध, बलराम द्वारा वृंदावन यात्रा, बलराम द्वारा वरुणी को प्राप्त करना, रुक्मणी का अपहरण, बलराम द्वारा रुक्मी का वध, प्रद्युम्न का अपहरण, मायावती द्वारा प्रद्युम्न की प्राप्ति, प्रद्युम्न द्वारा शंबर का वध, भगवान कृष्ण द्वारा सोलह हजार रानियों की प्राप्ति, पारिजात का अपहरण, द्वारका में प्रवास, उषा द्वारा स्वप्न बताना, अनिरुद्ध का अपहरण, भगवान शिव से युद्ध, भगवान कृष्ण द्वारा बाण का विच्छेदन, काशीराज पौंड्राका का वध, वाराणसी को आग की लपटों में डालना, मूसल की उत्पत्ति। यदु वंश का विनाश। भगवान कृष्ण का स्वर्गारोहण, कलियुग की शुरुआत, व्यास द्वारा अर्जुन का उपदेश, परीक्षित का राज्याभिषेक आदि का वर्णन है।
पूर्व भाग-छठा अंश :
कलियुग का चरित्र, चार प्रकार के महाप्रलय तथा केशिध्वज के द्वारा खाण्डिक्य जनक को ब्रह्मज्ञान का उपदेश इत्यादि छठा अंश कहा गया है। इस भाग में कलियुग में धर्म के स्वरूप का वर्णन, व्यास द्वारा कलियुग, शूद्र और नारी लोक के महत्व का वर्णन, कल्प का वर्णन, ब्रह्मा के एक दिन का वर्णन, प्रलय में ब्रह्मा की स्थिति, ब्रह्मा का जागरण, योग का उपदेश। केशिध्वज की कथा। धर्म और गाय की हत्या। खांडिक्य द्वारा आत्म ज्ञान, भगवान के मूर्त-अमूर्त प्रकटन की अवधारणाएँ आदि का वर्णन है।
उत्तरभाग :
इसके बाद विष्णु पुराण का उत्तरभाग प्रारम्भ होता है, जिसमें विष्णु पुराण की श्रेष्ठता के विषय में बतलाया गया है। शौनक आदि के द्वारा आदरपूर्वक पूछे जाने पर सूतजी ने सनातन विष्णुधर्मोत्तर नामसे प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मों कथायें कही है। अनेकानेक पुण्यव्रत यम नियम धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र वेदान्त ज्योतिष वंशवर्णन के प्रकरण स्तोत्र मन्त्र तथा सब लोगों का उपकार करने वाली नाना प्रकार की विद्यायें सुनायी गयीं है। विष्णुपुराण में सब शास्त्रों के सिद्धान्त का संग्रह हुआ है। इसमे वेदव्यासजी ने वाराकल्प का वृतान्त कहा है। जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है वे मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।
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