श्रीराधाष्टमी भगवती श्रीराधा का जन्म दिवस एवं श्री राधा-ध्यान मंत्र
Sri Radha Ashtami - Birthday of Goddess Sri Radha and Sri Radha-Dhyan Mantra
॥ श्रीहरिः ॥
श्री राधाष्टमी भाद्रपद शुक्ला अष्टमी भगवती श्रीराधा का जन्म दिवस
भगवती श्रीराधा का जन्म बृहत्रारदीय पुराण पू० अध्याय 117 के अनुसार भाद्रपद शुक्ला अष्टमी को हुआ था, अतएव इस दिन राधा रानी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसलिए इस दिन राधा अष्टमी-व्रत करना चाहिये। यह कृष्ण जन्मोत्सव के 15 दिन बाद आता है। मान्यता के अनुसार राधा अष्टमी के दिन राधा रानी की उपासना करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन खासकर ब्रज के सभी मंदिर सजते हैं और राधा रानी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। राधा रानी श्रीकृष्ण की प्रियसी थीं, इन्हें देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। इस दिन राधा रानी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन खुशहाल बना रहता है। पति- पत्नी के बीच के रिश्ते मजबूत होते हैं। साथ ही जीनव में धन- ऐश्वर्य की कमी नहीं रहती है, मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं ।
राधा अष्टमी तिथि 2024 (Radha Ashtami 2024 Tithi)
वैदिक पंचांग के मुताबाक भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 सितंबर को रात 11 बजकर 12 मिनट पर आरंभ होगी। वहीं इसका अंत अगले दिन यानी 11 सितंबर को रात 11 बजकर 45 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि को आधार मानते हुए राधा अष्टमी 11 सितंबर को मनाई जाएगी।
राधा अष्टमी शुभ मुहूर्त 2024 (Radha Ashtami 2024 Shubh Muhurat 2024)
वहीं इस दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 02 मिनट से शुरू होकर दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। इस समय में आप राधा रानी की पूजा- अर्चना कर सकते हैं।
राधा अष्टमी व्रत विधान -
राधा अष्टमी पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तरह सी व्रत रखा जाता है। स्नानादि के उपरान्त मण्डप के भीतर मण्डल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या ताँबे का कलश स्थापित करे। उसके ऊपर ताँबे का पात्र रखे। उस पात्र के ऊपर दो वस्त्रों से ढकी हुई श्रीराधा की सुवर्णमयी सुन्दर प्रतिमा स्थापित करे। फिर वाद्यसंयुक्त षोडशोपचार द्वारा स्नेहपूर्ण हृदय से उसकी पूजा करे। पूजा ठीक मध्याह्न में ही करनी चाहिये। शक्ति हो तो पूरा उपवास करे अन्यथा एकभुक्त व्रत करे। फिर दूसरे दिन भक्तिपूर्वक सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराकर आचार्य को प्रतिमा दान करे। तत्पश्चात् स्वयं भी भोजन करे। इस प्रकार इस व्रत को समाप्त करना चाहिये। विधिपूर्वक राधाष्टमीव्रत के करनेसे मनुष्य व्रजभूमि का रहस्य जान लेता तथा राधा-परिकरों में निवास करता है।
श्रीराधा का ध्यान मंत्र
हेमाभां द्विभुजां वराभयकरां नीलाम्बरेणावृतां
श्यामक्रोडविलासिनीं भगवतीं सिन्दूरपुञ्जोज्ज्वलाम् ।
लोलाक्षीं नवयौवनां स्मितमुखीं विम्बाधरां राधिकां
नित्यानन्दमयीं विलासनिलयां दिव्याङ्गभूषां भजे ॥
हिंदी भावार्थ - जिनके गोरे-गोरे अंगों की हेममयी आभा है, जो दो भुजाओंसे युक्त हैं और दोनों हाथों में क्रमशः वर एवं अभय की मुद्रा धारण करती हैं, नीले रंग की रेशमी साड़ी जिनके श्रीअंगों का आवरण बनी हुई है, जो श्यामसुन्दर के अंक में विलास करती हैं, सीमन्तगत सिन्दूरपुंज से जिनकी सौन्दर्यश्री और भी उद्भासित हो उठी है; चपल नयन, नित्य नूतन यौवन, मुखपर मन्द- हास की छटा तथा विम्बफल की अरुणिमा को भी तिरस्कृत करनेवाला अधर-राग जिनका अनन्य साधारण वैशिष्ट्य है, जो नित्य आनन्दमयी तथा विलास की आवासभूमि हैं, जिनके अंगों के आभूषण दिव्य (अलौकिक) हैं, उन भगवती श्रीराधिका का मैं चिन्तन करता हूँ।
राधारससुधानिधि से लिया गया श्रीराधा-ध्यान
श्यामामण्डलमौलिमण्डनमणिः श्यामानुरागस्फुर-
द्रोमोद्भेदविभाविताकृतिरहो काश्मीरगौरच्छविः ।
सातीवोन्मदकामकेलितरला मां पातु मन्दस्मिता
मन्दारद्रुमकुञ्जमन्दिरगता गोविन्दपट्टेश्वरी ॥
हिंदी भावार्थ - अहो ! जो श्यामा गोपांगनागण की शिरोभूषणमणि- स्वरूपा हैं, जिनके अंग श्यामानुराग हेतु विकसित रोमांच द्वारा विभावित हैं, जिनकी कान्ति कुंकुम गौर है एवं जो उन्मादिनी विलासलीला से विह्वल-सी हो रही हैं, कल्पकुंजमन्दिरगता वे मन्द मुसकानवाली गोविन्द- पट्टेश्वरी श्रीराधा मेरी रक्षा करें।
राधा रानी की विशेष उपासना पूजा के दौरान निम्न मंत्रों का जप करें -
ओम ह्रीं श्री राधिकायै नम:।
नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।
ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।।
नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।
रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।
मंत्रैर्बहुभिर्विन्श्वर्फलैरायाससाधयैर्मखै:,
किंचिल्लेपविधानमात्रविफलै: संसारदु:खावहै।
एक: सन्तपि सर्वमंत्रफलदो लोपादिदोषोंझित:,
श्रीकृष्ण शरणं ममेति परमो मन्त्रोड्यमष्टाक्षर।।