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श्री विष्णु के पूजन में चढ़ने वाले और न चढ़ने वाले पत्र-पुष्प

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विष्णु भगवान की पूजा में चढ़ने वाले और न चढ़ने वाले पत्र-पुष्प

विष्णु भगवान के पूजन में विहित और निषिद्ध पत्र-पुष्प


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

भगवान्‌ विष्णु को सभी पत्र -पुष्पों में गौरी तुलसी पत्र, तुलसी मंजरी सर्वाधिक प्रिय है। स्कंद पुराण में भगवान् विष्णु का कथन है कि यदि तुलसीदल न हो तो कनेर, बेला, चम्पा, कमल और मणि आदिसे निर्मित फूल भी मुझे नहीं सुह्यते।

॥ श्रीहरिः ॥

पद्मपुराण में वर्णित है कि भगवान् विष्णु को तुलसी बहुत ही प्रिय हैं। स्कंद पुराण के अनुसार एक ओर रत्न, मणि तथा स्वर्णनिर्मित बहुत-से फूल चढ़ाये जायँ और दूसरी ओर तुलसीदल चढ़ाया जाय तो भगवान् तुलसीदलको ही पसंद करेंगे। ये रत्न, मणि तथा स्वर्णनिर्मित बहुत-से फूल तुलसीदलकी सोलहवीं कलाकी भी समता नहीं कर सकते। भगवान्‌ को कौस्तुभ भी उतना प्रिय नहीं है, जितना कि तुलसीपत्र- मंजरी'। काली तुलसी तो प्रिय है ही किंतु गौरी तुलसी तो और भी अधिक प्रिय है'। स्कंद पुराण में भगवान् विष्णु का कथन है कि यदि तुलसीदल न हो तो कनेर, बेला, चम्पा, कमल और मणि आदिसे निर्मित फूल भी मुझे नहीं सुह्यते।ब्रह्म पुराण के अनुसार तुलसी से पूजित शिवलिङ्ग या विष्णु की प्रतिमाके दर्शन मात्रसे ब्रह्महत्या भी दूर हो जाती है। पदम् पुराण के अनुसार एक ओर मालती आदिकी ताजी मालाएँ हों और दूसरी ओर बासी तुलसी हो तो भगवान् बासी तुलसीको ही अपनायेंगे'।

नरसिंहपुराण में फूलों का तारतम्य बतलाया गया है। कहा गया है कि दस स्वर्ण-सुमनोंका दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह एक गूमा के फूल चढ़ाने से प्राप्त हो जाता है। इसके बाद उन फूलों के नाम गिनाये गये हैं, जिनमें पहले की अपेक्षा अगला उत्तरोत्तर हजार गुना अधिक फलप्रद होता जाता है, जैसे-गूमा के फूलसे हजार गुना बढ़कर एक खैर, हजारों खैर के फूलोंसे बढ़कर एक शमी का फूल, हजारों शमी के फूलोंसे बढ़कर एक मौलसिरी का फूल, हजारों मौलसिरी पुष्पों से बढ़कर एक नन्द्यावर्त, हजारों नन्द्यावर्तों से बढ़कर एक कनेर, हजारों कनेर के फूलों से बढ़कर एक सफेद कनेर, हजारों सफेद कनेर से बढ़कर एक कुश का फूल, हजारों कुश के फूलों से बढ़कर वनवेला, हजारों वनवेला के फूलों से एक चम्पा, हजारों चम्पाओं से बढ़कर एक अशोक, हजारों अशोक के पुष्पों से बढ़कर एक माधवी, हजारों वासन्तियों से बढ़कर एक गोजटा, हजारों गोजटाओं के फूलों से बढ़कर एक मालती, हजारों मालती फूलों से बढ़कर एक लाल त्रिसंधि (फगुनिया), हजारों लाल त्रिसंधि फूलों से बढ़कर एक सफेद त्रिसंधि, हजारों सफेद त्रिसंधि फूलों से बढ़कर एक कुन्द का फूल, हजारों कुन्द- पुष्पों से बढ़कर एक कमल-फूल, हजारों कमल-पुष्पों से बढ़कर एक बेला और हजारों बेला-फूलों से बढ़कर एक चमेली का फूल होता है।

विष्णुधर्मोत्तर ग्रंथ में स्वयं प्रभु ने अपने श्रीमुखसे कहा है कि मालती, मौलसिरी, अशोक, कालीनेवारी (शेफालिका), बसंतीनेवारी (नवमल्लिका), आम्रात (आमड़ा), तगर, आस्फोत, बेल, मधुमल्लिका, जूही (यूथिका), अष्टपद, स्कन्द, कदम्ब, मधुपिंगल, पाटला, चम्पा, हृद्य, लवंग, अतिमुक्तक (माधवी), केवड़ा, कुरब, बेल, सायंकाल में फूलनेवाला श्वेत कमल (कह्लार) और अडूसा फूल मुझे लक्ष्मी की तरह हीं प्रिय हैं।विष्णुधर्मोत्तर ग्रन्थ में यह भी बतलाया गया है कि भगवान् विष्णु की श्वेत ' पीले' फूल की प्रियता प्रसिद्ध है, फिर भी लाल फूलों में दोपहरिया (बन्धूक), केसर, कुंकुम और अड़हुलके फूल उन्हें प्रिय हैं, अतः इन्हें अर्पित करना चाहिये। लाल कनेर और बर्रे भी भगवान्‌को प्रिय हैं"। बर्रे का फूल पीला- लाल होता है । इसी तरह कुछ सफेद फूलोंको वृक्षायुर्वेद लाल उगा देता है। लाल रंग होनेमात्रसे वे अप्रिय नहीं हो जाते, उन्हें भगवान्‌को अर्पण करना चाहिये। इसी प्रकार कुछ सफेद फूलोंके बीच भिन्न-भिन्न वर्ण होते हैं। जैसे पारिजातके बीचमें लाल वर्ण । बीचमें भिन्न वर्ण होनेसे भी उन्हें सफेद फूल माना जाना चाहिये और वे भगवान्‌के अर्पण योग्य हैं"। विष्णुधर्मोत्तरके द्वारा प्रस्तुत फूलों के नये नाम ये हैं- तीसी', भूचम्पक', पुरन्ध्रि, गोकर्ण" और नागकर्ण । अन्तमें विष्णुधर्मोत्तरने पुष्पोंके चयनके लिये एक उपाय बतलाया । कहा है कि जो फूल शास्त्रसे निषिद्ध न हों और गन्ध तथा रंग-रूपसे संयुक्त हों उन्हें विष्णुभगवान्‌को अर्पण करना चाहिये'

विष्णुरहस्य नामक ग्रन्थ में बतलाया गया है कि कमलका एक फूल चढ़ा देनेसे करोड़ों वर्ष के पापों का भगवान् नाश कर देते हैं । कमल के अनेक भेद हैं। उन भेदों के फल भी भिन्न-भिन्न हैं । सौ लाल कमल चढ़ाने का फल एक श्वेत कमल के चढ़ाने से मिल जाता है तथा लाखों श्वेत कमलोंका फल एक नीलकमल से और करोड़ों नीलकमलों का फल एक पद्म से प्राप्त हो जाता है। यदि कोई भी किसी प्रकार एक भी पद्म चढ़ा दे, तो उसके लिये विष्णुपुरी की प्राप्ति सुनिश्चित है।

बलिके द्वारा पूछे जानेपर भक्तराज प्रह्लादने विष्णुके प्रिय कुछ फूलोंके नाम बतलाये हैं-'सुवर्णजाती (जाती), शतपुष्पा (शताह्वा), चमेली (सुमनाः), कुंद, कठचंपा (चारुपुट), बाण, चम्पा, अशोक, कनेर, जूही, पारिभद्र, पाटला, मौलसिरी, अपराजिता (गिरिशालिनी), तिलक, अड़हुल, पीले रंगके समस्त फूल (पीतक) और तगर'। पुराणोंने कुछ नाम और गिनाये हैं, जो नाम पहले आ गये हैं, उनको छोड़कर शेष नाम इस प्रकार हैं- अगस्त्य' आमकी मंजरी, मालती, बेला, जूही, (माधवी) अतिमुक्तक, यावन्ति, कुब्जई, करण्टक (पीली कटसरैया), धव (धातक), वाण (काली कटसरैया), बर्बरमल्लिका (बेलाका भेद) और अडूसा।

भगवान विष्णु के लिये निषिद्ध फूल -

विष्णुधर्मेतर और विष्णुरहस्य नामक ग्रंथ के अनुसार भगवान् विष्णु पर नीचे लिखे फूलों को चढ़ाना मना है— आक, धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकटैया, कुरैया, सेमल, शिरीष, चिचिड़ा (कोशातकी), कैथ, लांगुली, सहिजन, कचनार, बरगद, गूलर, पाकर, पीपर और अमड़ा (कपीतन)। घर पर रोपे गये कनेर और दोपहरिया के फूल का भी निषेध है।

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विष्णु भगवान की पूजा में चढ़ने वाले और न चढ़ने वाले पत्र-पुष्प