विष्णुरूपा गायत्री का ध्यान
विष्णुरूपा गायत्री का ध्यान
संध्या पूजन के मध्याह्न काल में विष्णु रूपा गायत्री का ध्यान किया जाता है।
॥ श्रीहरिः ॥
संध्या पूजन में प्रात: काल में ब्रह्मरूपा गायत्री, मध्याह्न काल में विष्णु रूपा गायत्री तथा सायंकाल शिवरूपा गायत्री का ध्यान किया जाता है। संध्या का शाब्दिक अर्थ संधि का समय है अर्थात जहां दिन का समापन और रात शुरू होती है, उसे संधिकाल कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार दिनमान यानी पूरे दिन को तीन भागों में बांटा गया है- प्रात:काल, मध्याह्न् और सायंकाल। संध्या पूजन के लिए प्रात:काल का समय सूर्योदय से छह घटी तक, मध्याह्न् 12 घटी तक तथा सायंकाल 20 घटी तक जाना जाता है। एक घटी में 24 मिनट होते हैं। प्रात:काल में तारों के रहते हुए, मध्याह्न् में जब सूर्य मध्य में हो तथा शाम में सूर्यास्त के पहले संध्या करने का विधान है।
गायत्री मंत्र को परम सर्वोच्च शक्ति के रूप में दिनमान के आरम्भ, तरुणाई और परिपक्वता—इन तीन भेदों के आधार पर एक ही गायत्री शक्ति के तीन नाम रखे गए हैं। गायत्री शक्ति के आरम्भिक अवस्था गायत्री में इसकी आभा अरुण की होती है और इसमें प्रात: काल में ब्रह्मरूपा गायत्री की ध्यान - आराधना की जाती है। मध्य अवस्था जिसे सावित्री कहते हैं जो मध्याह्न की श्वेत शुभ्रवस्था है , उसमें विष्णु रूपा गायत्री की ध्यान - आराधना की जाती है। दिनमान की अन्तिम अवस्था जिसे सरस्वती कहते हैं एवं जो कृष्णवर्ण-धुंधली है उसमें शिवरूपा गायत्री का ध्यान किया जाता है।
गायत्री की मध्य अवस्था सावित्री जो दिनमान का यौवन काल है, यह सर्वाधिक क्रियाशील काल होती है। इसी लिये मध्यकालीन विष्णुरूपा गायत्री को पीले वस्त्र, शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण कर गरुड़ पर बैठी हुई युवती के रूप में ध्यान है जो अपनी पूर्णावस्था के तेज से झिलमिलाती हुई प्रकाशवती, आलोकमय और क्रियाशील हैं।
विष्णुरूपा गायत्री का ध्यान मंत्र
ॐ मध्याह्ने विष्णुरूपां च तार्क्ष्यस्थां पीतवाससाम् ।
युवतीं च यजुर्वेदां सूर्यमण्डल संस्थिताम् ।।
अर्थात्—सूर्यमण्डल में स्थित युवावस्था वाली, पीले वस्त्र, शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण कर गरुड़ पर बैठी हुई यजुर्वेदस्वरूपा गायत्री का ध्यान करें ।