अष्टलक्ष्मी स्तोत्र Ashtalakshmi Stotra
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र में देवी महालक्ष्मी को आठ रूपों आद्य लक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, धैर्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी, धनलक्ष्मी की पूजा की जाती है। देवी महालक्ष्मी के इन रूपों को अष्टलक्ष्मी कहते है। लक्ष्मी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वह भगवान विष्णु की पत्नी हैं। पार्वती और सरस्वती के साथ, वह त्रिदेवियाँ में से एक है और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। जिनका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्त में मिलता है। पुराणों में मां लक्ष्मी के 8 स्वरूपों का वर्णन है जिन्हें अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है। श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम में इन्हीं 8 स्वरूपों का वर्णन है जो संस्कृत भाषा में है। हिंदी भाषियों के लिए के समझने के लिए आठों श्लोकों के नीचे हिंदी भावार्थ भी साथ में हीं दे रहा।
॥ श्रीहरिः ॥
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम
अष्टलक्ष्मी माँ लक्ष्मी के आठ दिव्य पहलुओं को दर्शाती हैं जहाँ "अष्ट" का अर्थ आठ और "लक्ष्मी" का अर्थ धन की देवी है। लक्ष्मी के आठ रूप ये हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, भाग्य लक्ष्मी , विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
1. आद्य लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,
चन्द्र सहोदरि हेममये,
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि,
मंजुल भाषिणी वेदनुते ।
पंकजवासिनी देव सुपूजित,
सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
आद्य लक्ष्मी परिपालय माम् ॥1॥
अर्थ आद्य लक्ष्मी : देवी तुम सभी भले मनुष्यों (सु-मनस) के द्वारा वन्दित, सुंदरी, माधवी (माधव की पत्नी), चन्द्र की बहन, स्वर्ण (सोना) की मूर्त रूप, मुनिगणों से घिरी हुई, मोक्ष देने वाली, मृदु और मधुर शब्द कहने वाली, वेदों के द्वारा प्रशंसित हो।
कमल के पुष्प में निवास करने वाली और सभी देवों के द्वारा पूजित, अपने भक्तों पर सद्गुणों की वर्षा करने वाली, शान्ति से परिपूर्ण और मधुसूदन की प्रिय हे देवी आदि लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो ।
श्रीमद्भागवत पुराण में आदि लक्ष्मी को मां लक्ष्मी का पहला स्वरूप कहा गया है। इन्हें मूल लक्ष्मी या महालक्ष्मी भी कहा गया है। मान्यता है कि आदि लक्ष्मी मां ने ही श्रृष्टि की उत्पत्ति की है तथा भगवान विष्णु के साथ जगत का संचालन करती हैं। आदि लक्ष्मी की साधना से भक्त को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. धान्यलक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी,
वैदिक रूपिणि वेदमये,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि,
मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते ।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि,
देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्॥2॥
अर्थ: धान्य लक्ष्मी - हे धान्यलक्ष्मी, तुम प्रभु की प्रिय हो, कलि युग के दोषों का नाश करती हो, तुम वेदों का साक्षात् रूप हो, तुम क्षीरसमुद्र से जन्मी हो, तुम्हारा रूप मंगल करने वाला है, मंत्रो में तुम्हारा निवास है और तुम मन्त्रों से ही पूजित हो।
तुम सभी को मंगल प्रदान करती हो, तुम अम्बुज (कमल) में निवास करती हो, सभी देवगण तुहारे चरणों में आश्रय पाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी धान्य लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो ।
धान्य लक्ष्मी मां का दूसरा रूप है, ये संसार में धान्य यानि अन्न या अनाज के रूप में वास करती हैं। धान्य लक्ष्मी को मां अन्नपूर्णा का ही एक रूप माना जाता है। इनको प्रसन्न करने के लिए कभी भी अनाज या खाने का अनादर नहीं करना चाहिए। धान्य का अर्थ अनाज है। जीवन को बनाए रखने के लिए भोजन हमारी सबसे बुनियादी आवश्यकता है। भोजन की अधिकता से शरीर और मन दोनों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है
3. धैर्य लक्ष्मी (वीर लक्ष्मी)
जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि,
मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद,
ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी,
साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥3॥
अर्थ: धैर्यलक्ष्मी - हे वैष्णवी, तुम विजय का वरदान देती हो, तुमने भार्गव ऋषि की कन्या के रूप में अवतार लिया, तुम मंत्रस्वरुपिणी हो मन्त्रों बसती हो, देवताओं के द्वारा पूजित हे देवी तुम शीघ्र ही पूजा का फल देती हो, तुम ज्ञान में वृद्धि करती हो, शास्त्र तुम्हारा गुणगान करते हैं।
तुम सांसारिक भय को हरने वाली, पापों से मुक्ति देने वाली हो, साधू जन तुम्हारे चरणों में आश्रय पाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी धैर्य लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
धैर्य लक्ष्मी , जिसे वीर लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है, वह देवी हैं जो जीवन में कठिनाइयों पर काबू पाने के लिए साहस और शक्ति का वादा करती हैं। आत्मविश्वास में सुधार के लिए इनकी पूजा की जाती है। धैर्य लक्ष्मी को बहादुर लक्ष्मी या साहस लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है । वीरा लक्ष्मी की पूजा युद्ध में दुर्जेय विरोधियों पर काबू पाने या जीवन की कठिनाइयों को दूर करने और स्थिरता का जीवन सुनिश्चित करने के लिए की जाती है। उन्होंने ही मां दुर्गा का अवतार लिया था। कहा जाता है कि देवी वीरा लक्ष्मी से प्रार्थना करने से भय नष्ट होता है और संचित पापों से मुक्ति मिलती है। यह भी कहा जाता है कि वह भक्तों की इच्छाओं और वरदानों को प्रदान करती हैं।
देवी धैर्य लक्ष्मी मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गांभीर्यलक्ष्म्यै नमः
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं धैर्यलक्ष्मये नमः
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं वीरश्रियै नमः
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं वीरश्रीये नमः
पूजा करने का दिन: शुक्रवार षष्ठी तिथि - चंद्रमा के घटने या घटने के चरण का छठा दिन। पूर्णिमा (पूर्णिमा) या अमावस्या (अमावस्या) के बाद छठा दिन।
जब चंद्र मास में मूल या मूलम नक्षत्रम हो। शुक्रवार के दिन मूल या मूलम का योग होने पर पूजा दोगुनी शुभ होती है। षष्ठी तिथि और मूल नक्षत्र का एक साथ होना भी शुभ होता है। माता की पूजा में गुलाबी रंग का इस्तेमाल करें। माता का आसनी भी गुलाबी, साधक का कपड़ा भी गुलाबी, फूल भी गुलाबी।
4. गजलक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि,
सर्वफलप्रद शास्त्रमये,
रथगज तुरगपदाति समावृत,
परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,
ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम् ॥4॥
अर्थ गजलक्ष्मी :- हे दुर्गति का नाश करने वाली विष्णु प्रिया, सभी प्रकार के फल (वर) देने वाली, शास्त्रों में निवास करने वाली देवी तुम जय-जयकार हो, तुम रथों, हाथी-घोड़ों और सेनाओं से घिरी हुई हो, सभी लोकों में तुम पूजित हो।
तुम हरि, हर (शिव) और ब्रह्मा के द्वारा पूजित हो, तुम्हारे चरणों में आकर सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी गज लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो ।
गज लक्ष्मी हाथी के ऊपर कमल के आसन पर विराजमान हैं। मां गज लक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी के रूप में पूजा जाता है। इनकी आराधना से संतान की प्राप्ति होती है। राजा को समृद्धि प्रदान करने के कारण इन्हें राज लक्ष्मी भी कहा जाता है।
5. संतानलक्ष्मी
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि,
राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,
सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,
मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ॥5॥
अर्थ संतानलक्ष्मी :-गरुड़ तुम्हारा वाहन है, मोह में डालने वाली, चक्र धारण करने वाली, राग (संगीत) से तुम्हारी पूजा होती है, तुम ज्ञानमयी हो, तुम सभी शुभ गुणों का समावेश हो, तुम समस्त लोक का हित करती हो, सप्त स्वरों के गान से तुम प्रशंसित हो।
सभी सुर (देवता), असुर, मुनि और मनुष्य तुम्हारे चरणों की वंदना करते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी संतान लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो ।
संतान लक्ष्मी को स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है। इनके चार हाथ हैं तथा अपनी गोद में कुमार स्कंद को बालक रूप में लेकर बैठी हुई हैं। माना जाता है कि संतान लक्ष्मी भक्तों की रक्षा अपनी संतान के रूप में करती हैं।
6. विजयलक्ष्मी
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि,
ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर,
भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,
शंकरदेशिक मान्यपदे,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ॥6॥
अर्थ विजयलक्ष्मी :- कमल के आसन पर विराजित देवी तुम्हारी जय हो, तुम भक्तों के ब्रह्मज्ञान को बढाकर उन्हें सद्गति प्रदान करती हो, तुम मंगलगान के रूप में व्याप्त हो, प्रतिदिन तुम्हारी अर्चना होने से तुम कुंकुम से ढकी हुई हो, मधुर वाद्यों से तुम्हारी पूजा होती है। तुम्हारे चरणों के वैभव की प्रशंसा आचार्य शंकर और देशिक ने कनकधारा स्तोत्र में की है, मधुसूदन की प्रिय हे देवी विजय लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो ।
माता लक्ष्मी के इस रूप को जय लक्ष्मी या विजय लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। मां के इस रूप की साधना से भक्तों की जीवन के हर क्षेत्र में जय–विजय की प्राप्ति होती है। जय लक्ष्मी मां यश, कीर्ति तथा सम्मान प्रदान करती हैं।
7. विद्यालक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि,
शोकविनाशिनि रत्नमये,
मणिमय भूषित कर्णविभूषण,
शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि,
कामित फलप्रद हस्तयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥7॥
अर्थ: विद्यालक्ष्मी - [भक्तों!] सुरेश्वरि को, भारति, भार्गवी, शोक का विनाश करने वाली, रत्नों से शोभित देवी को प्रणाम करो, विद्यालक्ष्मी के कर्ण (कान) मणियों से विभूषित हैं, उनके चेहरे का भाव शांत और मुख पर मुस्कान है।
देवी तुम नव निधि प्रदान करती हो, कलि युग के दोष हरती हो, अपने वरद हस्त से मनचाहा वर देती हो, मधुसूदन की प्रिय हे देवी विद्या लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
मां के अष्ट लक्ष्मी स्वरूप का सातवां रूप विद्या लक्ष्मी है। ये ज्ञान, कला तथा कौशल प्रदान करती हैं। इनका रूप ब्रह्मचारिणी देवी के जैसा है। इनकी साधना से शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
8. धनलक्ष्मी
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि,
दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम,
शंख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित,
वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम् ॥8॥
अर्थ: धनलक्ष्मी - दुन्दुभी (ढोल) के धिमि-धिमि स्वर से तुम परिपूर्ण हो, घुम-घुम-घुंघुम की ध्वनि करते हुए शंखनाद से तुम्हारी पूजा होती है, वेद, पुराण और इतिहास के द्वारा पूजित देवी तुम भक्तों को वैदिक मार्ग दिखाती हो, मधुसूदन की प्रिय हे देवी विद्या लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
मां लक्ष्मी के आठवां स्वरूप को धन लक्ष्मी कहा जाता है। इनके एक हाथ में धन से भरा कलश है तथा दूसरे हाथ में कमल का फूल है। धन लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं तथा कर्ज से मुक्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार, मां लक्ष्मी ने ये रूप भगवान विष्णु को कुबेर के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिया था।
फ़लशृति
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी॥
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय: ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्॥
॥ इति श्रीअष्टलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
अष्ट लक्ष्मी तांत्रिक पूजा
अष्टलक्ष्मी (उपरोक्त में से कोई भी) तांत्रिक पूजा में श्री कलश स्थापन पूजनम, प्राणप्रतिष्ठा, सोडासूपचर पूजनम, लक्ष्मी माता श्री सूक्तम पथ, 1008 नामावली, वृहद श्री अष्टलक्ष्मी माता मंत्रजाप, पूर्णाहुत, होमम और विसर्जन शामिल हैं।
धन के लिए वामाचार तांत्रिक लक्ष्मी पूजा की तंत्र परंपरा में समृद्धि और धन प्राप्त करने के लिए भगवान गणेश के साथ माता लक्ष्मी के उग्र रूपों की पूजा करने के लिए विशेष रूप से किया जाता है। लक्ष्मी पूजा प्रतिदिन की जाती है या गुरुवार या शुक्रवार को शुरू की जाती है। लेकिन तंत्र शास्त्र में धन के लिए लक्ष्मी पूजा किसी भी समय और किसी भी दिन बिना किसी योग या मुहूर्त के की जा सकती है। भगवान गणेश के साथ माता लक्ष्मी के इस तंत्र रूप की पूजा भक्त को शांति, समृद्धि, प्रचुर धन, प्रधानता, सफलता, कार्य में पदोन्नति और जीवन में श्रेष्ठता प्रदान करती है। इस विशेष तांत्रिक पूजा के लिए अक्टूबर और नवंबर के महीने सबसे उपयुक्त हैं। पंद्रह दिन की महालक्ष्मी पूजा के अलावा दीवाली और कोजागिरी पूर्णिमा के त्योहार उनके सम्मान में मनाए जाते हैं, जो भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर अश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी और कार्तिक के पूरे महीने तक होते हैं।
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ASHTA LAKSHMI STOTRAM
Adilakṣmi
sumanasa vandita sundari mādhavi, chandra sahodari hēmamayē
munigaṇa vandita mōkṣapradāyani, mañjula bhāṣiṇi vēdanutē ।
paṅkajavāsini dēva supūjita, sadguṇa varṣiṇi śāntiyutē
jaya jayahē madhusūdana kāmini, ādilakṣmi paripālaya mām ॥ 1 ॥
Dhānyalakṣmi
ayikali kalmaṣa nāśini kāmini, vaidika rūpiṇi vēdamayē
kṣīra samudbhava maṅgaḻa rūpiṇi, mantranivāsini mantranutē ।
maṅgaḻadāyini ambujavāsini, dēvagaṇāśrita pādayutē
jaya jayahē madhusūdana kāmini, dhānyalakṣmi paripālaya mām ॥ 2 ॥
Dhairyalakṣmi
jayavaravarṣiṇi vaiṣṇavi bhārgavi, mantra svarūpiṇi mantramayē
suragaṇa pūjita śīghra phalaprada, jñāna vikāsini śāstranutē ।
bhavabhayahāriṇi pāpavimōchani, sādhu janāśrita pādayutē
jaya jayahē madhu sūdhana kāmini, dhairyalakṣmī paripālaya mām ॥ 3 ॥
Gajalakṣmi
jaya jaya durgati nāśini kāmini, sarvaphalaprada śāstramayē
radhagaja turagapadāti samāvṛta, parijana maṇḍita lōkanutē ।
harihara brahma supūjita sēvita, tāpa nivāriṇi pādayutē
jaya jayahē madhusūdana kāmini, gajalakṣmī rūpēṇa pālaya mām ॥ 4 ॥
Santānalakṣmi
ayikhaga vāhini mōhini chakriṇi, rāgavivardhini jñānamayē
guṇagaṇavāradhi lōkahitaiṣiṇi, saptasvara bhūṣita gānanutē ।
sakala surāsura dēva munīśvara, mānava vandita pādayutē
jaya jayahē madhusūdana kāmini, santānalakṣmī paripālaya mām ॥ 5 ॥
vijayalakṣmi
jaya kamalāsini sadgati dāyini, jñānavikāsini gānamayē
anudina marchita kuṅkuma dhūsara, bhūṣita vāsita vādyanutē ।
kanakadharāstuti vaibhava vandita, śaṅkaradēśika mānyapadē
jaya jayahē madhusūdana kāmini, vijayalakṣmī paripālaya mām ॥ 6 ॥
Vidyālakṣmi
praṇata surēśvari bhārati bhārgavi, śōkavināśini ratnamayē
maṇimaya bhūṣita karṇavibhūṣaṇa, śānti samāvṛta hāsyamukhē ।
navanidhi dāyini kalimalahāriṇi, kāmita phalaprada hastayutē
jaya jayahē madhusūdana kāmini, vidyālakṣmī sadā pālaya mām ॥ 7 ॥
Dhanalakṣmi
dhimidhimi dhindhimi dhindhimi-dindhimi, dundhubhi nāda supūrṇamayē
ghumaghuma ghuṅghuma ghuṅghuma ghuṅghuma, śaṅkha nināda suvādyanutē ।
vēda pūrāṇētihāsa supūjita, vaidika mārga pradarśayutē
jaya jayahē madhusūdana kāmini, dhanalakṣmi rūpēṇā pālaya mām ॥ 8 ॥
Phalaśṛti
ślō॥ aṣṭalakṣmī namastubhyaṃ varadē kāmarūpiṇi ।
viṣṇuvakṣaḥ sthalā rūḍhē bhakta mōkṣa pradāyini ॥
ślō॥ śaṅkha chakragadāhastē viśvarūpiṇitē jayaḥ ।
jaganmātrē cha mōhinyai maṅgaḻaṃ śubha maṅgaḻam ॥