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दिवाली धनतेरस 2024 तिथि एवं पूजन मुहूर्त

Diwali Dhanteras 2024

29 अक्टूबर 2024 , मंगलवार को धनतेरस है एवं 31 अक्टूबर 2024 , बृहस्पतिवार को दीपावली है।

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दिवाली धनतेरस तिथि एवं पूजन मुहूर्त
आलेख © कॉपीराइट तकसाधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

दीपावली महालक्ष्मी पूजा मुहूर्त -

काशी में 31 अक्टूबर 2024 को अमावस्या तिथि दोपहर में 3 बजकर 12 मिनट से शुरू होकर 1 नवंबर को शाम 5 बजकर 14 मिनट पर सूर्यास्त से पहले हीं समाप्त हो रहा है। इसी कारण 31 अक्टूबर 2024 को दीपावली है।

काशी में 31 अक्टूबर 2024 को सूर्यास्त 5 बजकर 33 मिनट पर है। प्रदोष काल तथा स्थिर लग्न में लक्ष्मी गणेश कुबेर आदि देवताओं का दीपावली पूजन होगा। निशिथकाल मुहूर्त में महाकाली का पूजन होगा भारत के बाकी शहरों का मुहूर्त काशी के मुहूर्त से उतना मिनट आगे या पीछे होगा जितना मिनट आगे या पीछे वहाँ सूर्यास्त होगा।

दिन का स्थिर लग्न कुंभ का मुहूर्त - दोपहर 1 बजकर 52 मिनट से 3 बजकर 23 मिनट तक है।

प्रदोष काल का मुहूर्त - शाम 5 बजकर 33 मिनट से रात्रि 7 बजकर 57 मिनट तक है। इसमें वृष लग्न की प्रधानता है ।

स्थिर लग्न वृष का मुहूर्त - रात 6 बजकर 28 मिनट से रात्रि 8 बजकर 24 मिनट तक है। यह सबसे उत्तम है।

निशिथकाल मध्य रात्रि का मुहूर्त - रात 11 बजकर 34 मिनट से रात्रि 12 बजकर 26 मिनट तक है।

धनतेरस पूजा मुहूर्त, धनत्रयोदशी पूजा -

सम्पूर्ण भारत में शाम 7 बजकर 10 मिनट से 8 बजकर 43 मिनट तक। कुल अवधि तक। 1 घण्टा 34 मिनट्स।

यम दीपम 29 अक्टूबर 2024, मंगलवार, को हीं पड़ेगा। कुछ जगह वंश परंपरा से 30 अक्टूबर 2024, बुधवार को भी देवता के दिया के साथ पड़ेगा।

प्रदोष काल -6 बजकर 12 बजकर से 8 बजकर 43 मिनट

भारत के अन्य शहरों में धनत्रयोदशी मुहूर्त -

पटना में 6 बजकर 5 मिनट से 7 बजकर 43 मिनट तक।
लखनऊ में 6 बजकर 20 मिनट से 7 बजकर 59 मिनट तक।
भोपाल में 6 बजकर 40 मिनट से 8 बजकर 16 मिनट तक।
इंदौर में 6 बजकर 47 मिनट से 8 बजकर 23 मिनट तक।
नई दिल्ली में में 6 बजकर 31 मिनट से 8 बजकर 13 मिनट तक।
नोएडा में 6 बजकर 31 मिनट से 8 बजकर 12 मिनट तक।
गुरुग्राम में में 6 बजकर 32 मिनट से 8 बजकर 14 मिनट तक।
मुम्बई में 07 04 मिनट से 8 बजकर 37 मिनट तक।
पुणे में 07 01 मिनट से 8 बजकर 33 मिनट तक।
चेन्नई में 6 बजकर 44 मिनट से 8 बजकर 11 मिनट तक।
जयपुर में 6 बजकर 40 मिनट से 8 बजकर 20 मिनट तक।
हैदराबाद 6 बजकर 45 मिनट से 8 बजकर 15 मिनट तक।
चण्डीगढ़ 6 बजकर 29 मिनट से 8 बजकर 13 मिनट तक।
कोलकाता 5 बजकर 57 मिनट से 7 बजकर 33 मिनट तक।
बेंगलूरु 6 बजकर 55 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट तक।
अहमदाबाद 6 बजकर 59 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट तक।

(ध्यान दें तकलक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान ही होता है, जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है । ऐसा माना जाता है, कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त माना जाता है । वृषभ लग्न को स्थिर माना जाता है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है ।)

धनतेरस को धन त्रयोदशी भी कहते हैं| कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धन के देवता कुबेर और मृत्यु देवता यमराज की पूजा का विशेष महत्व है । इसी दिन देवताओं के वैद्य धनवंतरि ऋषि अमृत कलश सहित सागर मंथन से प्रकट हुए थे । अतः इस दिन धनवंतरी जयंती मनायी जाती है । निरोग रहते हेतु उनका पूजन किया जाता है । इस दिन अपने सामथ्र्य अनुसार किसी भी रुप मे चादी एवं अन्य धातु खरीदना अति शुभ है । धन संपति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं मृत्यु देवता यमराज ( जो अकाल मृत्यु से करता है ) के लिए मुख्य द्वार पर भी दीप दान करें ।आज के दिन घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर रखा जाता है। आज के दिन नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन यमराज और भगवान धनवन्तरि की पूजा का महत्व है।

दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है। 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात (हे भगवान!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है।

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