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दीपावली महालक्ष्मी पूजन सामान्य सरल पूजा

Deepawali Mahalakshmi Pujan Basic Method Mantra in Sanskrit and Hindi

महालक्ष्‍मी व्रत * दिवाली धनतेरस तिथि एवं पूजन मुहूर्त * दीपावली महालक्ष्मी पूजन मूल विधि सामान्य सरल पूजा * श्री महालक्ष्मी दिवाली विशेष पूजा * दीपावली दीपमालिका पूजन * द्वार पूजन * दवात श्रीमहाकाली पूजन * लेखनी पूजन * बही खाता सरस्वती पूजन * तिजोरी-कुबेर पूजन * तुला-पूजन * श्री कुबेर उपासना विधि * दीपावली एवं धनतेरस में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए * नरक चतुर्दशी * महालक्ष्मी अष्टक * लक्ष्मी चालीसा * लक्ष्मी आरती * अष्टलक्ष्मी स्तोत्र * श्री वैभव लक्ष्मी व्रत * श्री महालक्ष्मी 108 नाम * श्री लक्ष्मी सहस्रनामावलिः (1008 नाम) * श्री लक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्रं * कनकधारा स्तोत्रम् * सर्वदेव कृत श्री लक्ष्मी स्तोत्रम् * इन्द्रकृत लक्ष्मी स्तोत्रम् * राशि के अनुसार माता लक्ष्मी के बीज मंत्र * राशि के अनुसार दीपावली पूजन * धन-लक्ष्मी को बुलाने के लिये वास्तु उपाय * श्राद्ध पक्ष में महालक्ष्मी व्रत * धन प्राप्त करने के तांत्रिक लक्ष्मी मंत्र उपाय * धन प्राप्ति में बाधक वास्तुदोष कैसे दूर करें * धन पाने के आसान उपाय सबसे कारगर लक्ष्मी मंत्र क्या है?
 
महालक्ष्मी पूजा मूल विधि मंत्र संस्कृत और हिंदी में Mahalakshmi puja original method mantra in Sanskrit and Hindi

॥ श्रीहरिः ॥

महालक्ष्मी पूजा सामान्य सरल पूजा

Mahalakshmi puja original method mantra in Sanskrit and Hindi


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

दीपावली महालक्ष्मी पूजा मूल विधि मंत्र संस्कृत और हिंदी में

दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन श्री महालक्ष्मी, गणेश, महासरस्वती एवं कुबेर जी की पूजा की जाती है। पूजन की पूर्ण विधि विधान, मंत्र एवं संकल्प सहित दे रहे हैं। पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें । इस हेतु शुभ आसन पर उत्तर, ईशान या पूर्वकी ओर मुख करके पूजन करें। पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजास्थल पर रख लें । श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं श्री महालक्ष्मी की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बांधकर कुमकुम लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर स्थापित करें व उसके दाहिनी ओर श्री महालक्ष्मी के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।

सबसे पहले अपना पवित्रीकरण करें - पवित्रीकरण से शरीर की मानसिक शुद्धि होती है ताकि आप में आपके भीतर दिव्य शक्ति का आवाहन हो सके। दिव्य शक्ति के आवाहन हेतु आपके भीतर भी दिव्यता होना चाहिये तभी उस शक्ति के संवेग को आपका शरीर सह सकेगा।

पवित्रीकरण

बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से (कुश की ब्रह्मदण्डी से) निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें –

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।

अतिनील् घनश्यामं नलिनायतलोचनं|
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम् ।।

आसन :

निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-

ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना घृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम् ॥

(हिंदी में - हे धरती माता ! वही जीव जगत को धारण किया है और विष्णु जी ने आपको धारण किया है। हे देवी ! तुम मुझे भी धारण करो एवं मेरे आसन को पवित्र करो।)

आचमन :

प्रत्येक कार्यमें आचमनका विधान है। आचमनसे हम केवल अपनी ही शुद्धि नहीं करते, अपितु ब्रह्मासे लेकर तृणतकको तृप्त कर देते हैं। आचमन न करनेपर हमारे समस्त कृत्य व्यर्थ हो जाते हैं। लाँग लगाकर, शिखा बाँधकर उपवीती होकर और बैठकर तीन 'बार आचमन करना चाहिये। उत्तर, ईशान या पूर्वकी ओर मुख करके बैठ हाथ घुटनों के भीतर रखे। दक्षिण और पश्चिमकी ओर मुख करके आचमन न करें। दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-

ॐ केशवाय नमः स्वाहा ।
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा ।
ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।

इसके बाद अब यह बोलकर हाथ धो लें -

ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

दीपक :

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसम्पदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते ॥

दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते ॥

(मैं प्रकाश (दीपक) को प्रणाम करता हूँ जो शुभता लाता है, समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य लाने के साथ साथ अशुभ शक्तियों,प्रवृत्तियों (शत्रु-बुद्धि)का भी विनाश करता है॥ दीपक का प्रकाश ही परब्रह्म है और दीपक का प्रकाश ही जनार्दन है। यह दीपक मेरे पापों को दूर कर दे। हे दीप्तिमान दीपक, मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं॥)

पुजन कर प्रणाम करें।

स्वस्तिवाचन :

जिस प्रकार स्वास्तिक सभी प्रकार के वास्तु दोष समाप्त कर देता है, वैसे ही स्वस्ति वाचन से सभी प्रकार के पूजन दोष समाप्त हो जाते हैं।
निम्न मंगल मंत्र बोले-

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
यतो यतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरु ।
शन्नः कुरु प्राजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः । सुशान्तिर्भवतु ॥

(महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है, ऐसे गरुड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो। त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में, अन्तरिक्ष में, अग्नि - पवन में, औषधियों, वनस्पतियों, वन और उपवन में, सकल विश्व में अवचेतन में, शान्ति राष्ट्र-निर्माण और सृजन में, नगर , ग्राम और भवन में प्रत्येक जीव के तन, मन और जगत के कण - कण में, शान्ति कीजिए ! हे परमपिता अपने ओज, शौर्य,दर्शन-श्रवण-परिपालन,रिपु विनाशक तेज की कृपा मुझपर कर निर्भय कीजिये।)

अब अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें -

संकल्प :

ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2080 पिंगल नाम संवत्सरे कार्तिकमासे, शुभ कृष्णपक्ष, अमावस्यां शुभ पुण्यतिथौ ..वासरे (दिन का नाम जैसे रविवार है तो "रवि वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् मम अस्मिन् प्रचलित व्यापारे आयुरारोग्यैश्वर्याधभिवृद्धयर्थम् व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थम् च दीपावली महोत्सवे गणेश- अम्बिका श्रीमहालक्ष्मी, महासरस्वती-महाकाली लेखनी मषीपात्र कुबेरादि देवानाम् पूजनम् च करिष्ये ।

( उदहारण के लिए - ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो, द्वितीयपरार्धे, श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे, कलियुगे, कलिप्रथमचरणे, बौद्धावतारे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, पटना नगरे, विक्रम संवत 2080 पिंगल नाम संवत्सरे, कार्तिकमासे, शुभ कृष्णपक्ष, अमावस्यां शुभ पुण्यतिथौ, रवि वासरे, वाशिष्ठ गोत्रोत्पन्न, साधक प्रभात शर्मोऽहम्, मम अस्मिन् प्रचलित व्यापारेआयुरारोग्यैश्वर्याधभिवृद्धयर्थम् व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थम् च दीपावली महोत्सवे गणेश- अम्बिका श्रीमहालक्ष्मी, महासरस्वती-महाकाली लेखनी मषीपात्र कुबेरादि देवानाम् पूजनम् च करिष्ये ।)

अथ श्रीगणेशांम्बिका पूजन

हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं अंबिका का ध्यान करें।

श्रीगणेश का ध्यान :

गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ॥

श्री अंबिका का ध्यान :

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै प्रणताः स्मताम् ॥
श्रीगणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि ।

- श्री गणेश मूर्ति अथवा मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ, नमस्कार करें।

अब भगवान गणेशाम्बिका का आह्वान करें-

ॐ गणांना त्वा गणपतिं हवामहे
कविं कवीनामुपमश्रवस्तम्
जेष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पतआ नः
शृण्वत्रूतिभिः सीद सादनम् ||

(ऋग्वेद)

ॐ गणांना त्वा गणपतिं हवामहे
प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे
निधिनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम
आह्मजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ||

(शुक्लयजुवेद)

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।
ससस्त्यश्चकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च ।

श्रीगणेश व सुपारी पर अक्षत चढ़ाएं।

प्रतिष्ठा हेतु निम्न मंत्र बोलकर गणेश व सुपारी पर पुनः अक्षत चढ़ाएँ-

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञँ समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो 3 म्प्रतिष्ठ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
गणेशाम्बिके ! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्।
प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः।

(आसन के लिए अक्षत समर्पित करे)।

पाद्य, अर्घ्य. आचमनीय, स्नानीय और पुनराचमनीय हेतु जल अर्पण करें

ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।।
एतानि पाद्यार्घ्याचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः।

पञ्चामृत स्नान :

पञ्चामृत (दूध, दही, शकर, घी, शहद के मिश्रण) स्नान कराएं।

पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु ।
शर्करया समायुक्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।

- पञ्चामृत से स्नान कराएं।

शुद्धोदक स्नानं :

शुद्ध जल से स्नान निम्न मंत्र बोलते हुए कराएँ ।

गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोदकस्नान समर्पयामि ।

-शुद्ध जल से स्नान कराएं।

अब आचमन हेतु जल दें ।

शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।

वस्त्र एवं उपवस्त्र :

निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित करें:

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् ।
देहालंकरणं वस्त्रमतः शांतिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः वस्त्रं समर्पयामि ।

-श्री गणेश-अम्बिका को वस्त्र समर्पित करें।

यस्या भावेन शास्त्रोक्तं कर्म किंचिन्न सिध्यति ।
उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि ।

- श्री गणेशाम्बिका को उपवस्त्र समर्पित करें।

आचमन के लिए जल अर्पित करें।

वस्त्र उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥

यज्ञोपवीत :

यज्ञोपवीत अर्पित करें -

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् ।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीतान्ते आचमनीय जल समर्पयामि ।

- यज्ञोपवीत अर्पित करें एवं आचमन के लिए जल दें।

नानापरिमल द्रव्य :

अबीर, गुलाल इत्यादि अर्पित करें :-

अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् ।
नाना परिमल द्रव्यं गृहाण परमेश्वरः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।

-अबीर, गुलाल, पुष्प इत्यादि अर्पित करें।

धूप :

धूप बत्ती जलाएं-हाथ धो लें व निम्न मंत्र से धूप दिखाएँ-

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गंध उत्तमः ।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, धूप आघ्रापयामि ।

-धूप दिखाएँ व पुनः हाथ धो लें।

दीप :

एक दीपक जलाएं। हाथ धो लें व निम्न मंत्र से दीप दिखाएं

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजतं मया ।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्व. गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दीप दर्शयामि ।

-दीप दिखाएं व हाथ धो लें।

नैवेद्य :

मालापुए व अन्य मिष्ठान्न यथाशक्ति अर्पित करें :-

शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।
आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्य निवेदयामि ॥

इसके पश्चात जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें -

ॐ प्राणाय स्वाहा ।
ॐ अपानाय स्वाहा ।
ॐ समानाय स्वाहा ।
ॐ उदानाय स्वाहा ।
ॐ व्यानाय स्वाहा ।

नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि |

-नैवेद्य निवेदित करें व जल अर्पित करें।

तांबूल :

इसके पश्चात इलायची, लौंग, सुपारी, तांबूल इत्यादि अर्पित करें :-

पूगीफलं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम् ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मुखवासार्थम् एलालवंग ताम्बूलं समर्पयामि ॥

- इलायची, लौंग, ताम्बूल आदि अर्पित करें।

इसके पश्चात गणेश अम्बिका की प्रार्थना करें-

प्रार्थना

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषताय गौरीसुताय नमो नमस्ते ॥
लम्बोदर नमस्तुभ्यं मोदकप्रिय ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सर्वेश्वरी सर्वमाता शर्वाणी हरवल्लभा सर्वज्ञा ।
सिद्धिदा सिद्धा भव्या भाव्या भयापहा नमो नमस्ते ॥

अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम्' कहकर जल छोड़ दें।

(हे सभी विघ्नों को हरने वाले स्वामी, वरदानों के दाता, देवताओं के प्रिय, हे लम्बोदर, हे संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याणकर्ता, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित आप पार्वतीपुत्र को नमस्कार है। हे लंबे पेट वाले मोदकवंता, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं, हे देव, मेरे सभी कार्य आपके आशीर्वाद से सभी विघ्न बाधाओं से मुक्ति हों। हे सर्वेश्वरी, सबों की माता, कर्णप्रिय, सर्वज्ञ, सबको परिपूर्ण करने वाली, सबोंकी भविष्य निर्माता, भय का नाश करने वाली, मैं आपको नमस्कार करता हूं। )

अब इसके पश्चात - षोडश मातृका पूजन, कलश पूजन तथा नवग्रह पूजन किया जाता है।

इसके बाद अब जिसे श्री महालक्ष्मी की श्रीसूक्त की ऋचाओं के साथ विशिष्ट पूजन करना है तो इस इस लिक पर क्लिक कर जाएं श्री महालक्ष्मी की श्रीसूक्त अगर श्री महालक्ष्मी की श्रीसूक्त से पूजा नहीं करनी है तो अब पुष्पांजलि, क्षमा प्राथना करें फिर आरती करें।

अभी हीं देहली, दवात, बही-खाता, तिजोरी व दीपावली दीपमालिका पूजा करनी है

मंत्र-पुष्पांजलि :

( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ ।

तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।

स मे कामान्‌ कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।

(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)

प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-

क्षमा प्रार्थना :

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ ॥

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ।

पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।

त्राहि माम्‌ परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥

अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥

 

पूजन समर्पण :

हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-

'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः'

(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)

 

विसर्जन :

अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्‌ ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥

सभी देवगण मेरे द्वारा की गई पूजा को स्वीकार कर अभीष्ट कामनाओं की समृद्धि के लिए पुनः आने के लिए यहाँ से विदा हों।

श्री महालक्ष्मी माई की जय

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