श्री महालक्ष्मी दिवाली विशेष पूजा श्रीसूक्त की ऋचाओं के साथ
Shree Mahalaxmi Diwali Special Pooja with verses from Shri Sukta
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॥ श्रीहरिः ॥
श्री महालक्ष्मी दिवाली विशेष पूजा श्रीसूक्त की ऋचाओं के साथ
Shree Mahalaxmi Diwali Special Pooja with verses from Shri Sukta
आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
सबसे पहले अपना पवित्रीकरण करें - पवित्रीकरण से शरीर की मानसिक शुद्धि होती है ताकि आप में आपके भीतर दिव्य शक्ति का आवाहन हो सके। दिव्य शक्ति के आवाहन हेतु आपके भीतर भी दिव्यता होना चाहिये तभी उस शक्ति के संवेग को आपका शरीर सह सकेगा।
पवित्रीकरण
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से (कुश की ब्रह्मदण्डी से) निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें –
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
अतिनील् घनश्यामं नलिनायतलोचनं|
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम् ।।
आसन :
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना घृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम् ॥
(हिंदी में - हे धरती माता ! वही जीव जगत को धारण किया है और विष्णु जी ने आपको धारण किया है। हे देवी ! तुम मुझे भी धारण करो एवं मेरे आसन को पवित्र करो।)
आचमन :
प्रत्येक कार्यमें आचमनका विधान है। आचमनसे हम केवल अपनी ही शुद्धि नहीं करते, अपितु ब्रह्मासे लेकर तृणतकको तृप्त कर देते हैं। आचमन न करनेपर हमारे समस्त कृत्य व्यर्थ हो जाते हैं। लाँग लगाकर, शिखा बाँधकर उपवीती होकर और बैठकर तीन 'बार आचमन करना चाहिये। उत्तर, ईशान या पूर्वकी ओर मुख करके बैठ हाथ घुटनों के भीतर रखे। दक्षिण और पश्चिमकी ओर मुख करके आचमन न करें। दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-
ॐ केशवाय नमः स्वाहा ।
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा ।
ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।
इसके बाद अब यह बोलकर हाथ धो लें -
ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।
दीपक :
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसम्पदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते ॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते ॥
(मैं प्रकाश (दीपक) को प्रणाम करता हूँ जो शुभता लाता है, समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य लाने के साथ साथ अशुभ शक्तियों,प्रवृत्तियों (शत्रु-बुद्धि)का भी विनाश करता है॥ दीपक का प्रकाश ही परब्रह्म है और दीपक का प्रकाश ही जनार्दन है। यह दीपक मेरे पापों को दूर कर दे। हे दीप्तिमान दीपक, मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं॥)
पुजन कर प्रणाम करें।
स्वस्तिवाचन :
जिस प्रकार स्वास्तिक सभी प्रकार के वास्तु दोष समाप्त कर देता है, वैसे ही स्वस्ति वाचन से सभी प्रकार के पूजन दोष समाप्त हो जाते हैं।
निम्न मंगल मंत्र बोले-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
यतो यतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरु ।
शन्नः कुरु प्राजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः । सुशान्तिर्भवतु ॥
(महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है, ऐसे गरुड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो। त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में, अन्तरिक्ष में, अग्नि - पवन में, औषधियों, वनस्पतियों, वन और उपवन में, सकल विश्व में अवचेतन में, शान्ति राष्ट्र-निर्माण और सृजन में, नगर , ग्राम और भवन में प्रत्येक जीव के तन, मन और जगत के कण - कण में, शान्ति कीजिए ! हे परमपिता अपने ओज, शौर्य,दर्शन-श्रवण-परिपालन,रिपु विनाशक तेज की कृपा मुझपर कर निर्भय कीजिये।)
अब अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें -
संकल्प :
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2080 पिंगल नाम संवत्सरे कार्तिकमासे, शुभ कृष्णपक्ष, अमावस्यां शुभ पुण्यतिथौ ..वासरे (दिन का नाम जैसे रविवार है तो "रवि वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् मम अस्मिन् प्रचलित व्यापारे आयुरारोग्यैश्वर्याधभिवृद्धयर्थम् व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थम् च दीपावली महोत्सवे गणेश- अम्बिका श्रीमहालक्ष्मी, महासरस्वती-महाकाली लेखनी मषीपात्र कुबेरादि देवानाम् पूजनम् च करिष्ये ।
( उदहारण के लिए - ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो, द्वितीयपरार्धे, श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे, कलियुगे, कलिप्रथमचरणे, बौद्धावतारे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, पटना नगरे, विक्रम संवत 2080 पिंगल नाम संवत्सरे, कार्तिकमासे, शुभ कृष्णपक्ष, अमावस्यां शुभ पुण्यतिथौ, रवि वासरे, वाशिष्ठ गोत्रोत्पन्न, साधक प्रभात शर्मोऽहम्, मम अस्मिन् प्रचलित व्यापारेआयुरारोग्यैश्वर्याधभिवृद्धयर्थम् व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थम् च दीपावली महोत्सवे गणेश- अम्बिका श्रीमहालक्ष्मी, महासरस्वती-महाकाली लेखनी मषीपात्र कुबेरादि देवानाम् पूजनम् च करिष्ये ।)
अथ श्रीगणेशांम्बिका पूजन
हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं अंबिका का ध्यान करें।
श्रीगणेश का ध्यान :
गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ॥
श्री अंबिका का ध्यान :
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै प्रणताः स्मताम् ॥
श्रीगणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि ।
- श्री गणेश मूर्ति अथवा मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ, नमस्कार करें।
अब भगवान गणेशाम्बिका का आह्वान करें-
ॐ गणांना त्वा गणपतिं हवामहे
कविं कवीनामुपमश्रवस्तम्
जेष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पतआ नः
शृण्वत्रूतिभिः सीद सादनम् ||
(ऋग्वेद)
ॐ गणांना त्वा गणपतिं हवामहे
प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे
निधिनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम
आह्मजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ||
(शुक्लयजुवेद)
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।
ससस्त्यश्चकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च ।
श्रीगणेश व सुपारी पर अक्षत चढ़ाएं।
प्रतिष्ठा हेतु निम्न मंत्र बोलकर गणेश व सुपारी पर पुनः अक्षत चढ़ाएँ-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञँ समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो 3 म्प्रतिष्ठ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
गणेशाम्बिके ! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्।
प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः।
(आसन के लिए अक्षत समर्पित करे)।
पाद्य, अर्घ्य. आचमनीय, स्नानीय और पुनराचमनीय हेतु जल अर्पण करें
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।।
एतानि पाद्यार्घ्याचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः।
पञ्चामृत स्नान :
पञ्चामृत (दूध, दही, शकर, घी, शहद के मिश्रण) स्नान कराएं।
पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु ।
शर्करया समायुक्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।
- पञ्चामृत से स्नान कराएं।
शुद्धोदक स्नानं :
शुद्ध जल से स्नान निम्न मंत्र बोलते हुए कराएँ ।
गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोदकस्नान समर्पयामि ।
-शुद्ध जल से स्नान कराएं।
अब आचमन हेतु जल दें ।
शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र एवं उपवस्त्र :
निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित करें:
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् ।
देहालंकरणं वस्त्रमतः शांतिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः वस्त्रं समर्पयामि ।
-श्री गणेश-अम्बिका को वस्त्र समर्पित करें।
यस्या भावेन शास्त्रोक्तं कर्म किंचिन्न सिध्यति ।
उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि ।
- श्री गणेशाम्बिका को उपवस्त्र समर्पित करें।
आचमन के लिए जल अर्पित करें।
वस्त्र उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥
यज्ञोपवीत :
यज्ञोपवीत अर्पित करें -
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् ।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीतान्ते आचमनीय जल समर्पयामि ।
- यज्ञोपवीत अर्पित करें एवं आचमन के लिए जल दें।
नानापरिमल द्रव्य :
अबीर, गुलाल इत्यादि अर्पित करें :-
अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् ।
नाना परिमल द्रव्यं गृहाण परमेश्वरः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।
-अबीर, गुलाल, पुष्प इत्यादि अर्पित करें।
धूप :
धूप बत्ती जलाएं-हाथ धो लें व निम्न मंत्र से धूप दिखाएँ-
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गंध उत्तमः ।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, धूप आघ्रापयामि ।
-धूप दिखाएँ व पुनः हाथ धो लें।
दीप :
एक दीपक जलाएं। हाथ धो लें व निम्न मंत्र से दीप दिखाएं
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजतं मया ।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्व. गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दीप दर्शयामि ।
-दीप दिखाएं व हाथ धो लें।
नैवेद्य :
मालापुए व अन्य मिष्ठान्न यथाशक्ति अर्पित करें :-
शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।
आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्य निवेदयामि ॥
इसके पश्चात जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें -
ॐ प्राणाय स्वाहा ।
ॐ अपानाय स्वाहा ।
ॐ समानाय स्वाहा ।
ॐ उदानाय स्वाहा ।
ॐ व्यानाय स्वाहा ।
नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि |
-नैवेद्य निवेदित करें व जल अर्पित करें।
तांबूल :
इसके पश्चात इलायची, लौंग, सुपारी, तांबूल इत्यादि अर्पित करें :-
पूगीफलं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम् ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मुखवासार्थम् एलालवंग ताम्बूलं समर्पयामि ॥
- इलायची, लौंग, ताम्बूल आदि अर्पित करें।
इसके पश्चात गणेश अम्बिका की प्रार्थना करें-
प्रार्थना
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषताय गौरीसुताय नमो नमस्ते ॥
लम्बोदर नमस्तुभ्यं मोदकप्रिय ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सर्वेश्वरी सर्वमाता शर्वाणी हरवल्लभा सर्वज्ञा ।
सिद्धिदा सिद्धा भव्या भाव्या भयापहा नमो नमस्ते ॥
अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम्' कहकर जल छोड़ दें।
(हे सभी विघ्नों को हरने वाले स्वामी, वरदानों के दाता, देवताओं के प्रिय, हे लम्बोदर, हे संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याणकर्ता, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित आप पार्वतीपुत्र को नमस्कार है। हे लंबे पेट वाले मोदकवंता, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं, हे देव, मेरे सभी कार्य आपके आशीर्वाद से सभी विघ्न बाधाओं से मुक्ति हों। हे सर्वेश्वरी, सबों की माता, कर्णप्रिय, सर्वज्ञ, सबको परिपूर्ण करने वाली, सबोंकी भविष्य निर्माता, भय का नाश करने वाली, मैं आपको नमस्कार करता हूं। )
अब इसके पश्चात - षोडश मातृका पूजन, कलश पूजन तथा नवग्रह पूजन किया जाता है।
ध्यान :
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्ष
गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।
या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता ॥
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।
- पुष्प अर्पित करें।
आह्वान :-
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम् ।
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।
-आह्वान के लिए पुष्प अर्पित करें।
आसन :
तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् ।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ अर्श्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि ।
-पुष्प अर्पित करें।
पाद्य :
गंगादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।
पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥
ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्रीं ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
-पाद्य अर्पित करें।
अर्घ्य
अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम् ।
अघ्यं गृहाणमद्यतं महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, हस्तयोरघ्यं समर्पयामि ।
-चन्दन मिश्रित जल अध्यपात्र से देवी के हाथों में दें।
आचमन :
सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्ण्वादिभिः स्तुता ।
ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीय जलं समर्पयामि ।
- जल चढाएँ ।
स्नान :
मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।
स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, स्नानं समर्पयामि ।
- स्नानीय जल अर्पित करें।
स्नानान्ते आचमनीय जल समर्पयामि।
- ॐ महालक्ष्म्यै नमः' बोलकर आचमन हेतु जल दें।
दुग्ध स्नान :
कामधेनुसमुत्पन्नां सर्वेषां जीवनं परम् ।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ॥
ॐ पयः पृथिव्यां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः।
पयस्वती: प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः पयः स्नानं समर्पयामि ।
पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
- कच्चे दूध से स्नान कराएं, पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
दधिस्नान :
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।
दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयूँषि तारिषत् ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दधिस्तान समर्पयामि । दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
- दधि से स्नान कराएं, फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
घृत स्नान :
नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ घृतं घृतपावनः पिबत वसां वसापावनः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा ।
दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः घृतस्नानं समर्पयामि । घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
-घृत स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
मधु स्नान :
तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव - गुं रजः। मधु चौरस्तु नः पिता॥
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ - गुँ अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवंतु नः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मधुस्नानं समर्पयामि ।
मधुस्नानन्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
- शहद स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं।
शर्करा स्नान :
इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ अपा गुँ रसमुद्वयस गुँ सूर्ये सन्त गुँ समाहित्म।
अपा गुँ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्याम्युत्तममुपयामगृहीतो
सीन्द्राय त्वा जुष्टं गुणाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करा स्नानान्ते पुनः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
शर्करा स्नान कराकर जल से स्नान कराएं।
पञ्चामृत स्नान :
-दूध, दही, घी, शकर एवं शहद मिलाकर पञ्चामृत बनाएं व निम्न मंत्र से स्नान कराएँ ।
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् ।
पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।
सरवस्ती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत् सरित् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
पञ्चामृत से स्नान कराएं।
गन्धोदक स्नान :
मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम् ।
चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
चंदनयुक्त जल से स्नान कराएं।
नोट :- जो व्यक्ति श्री सूक्त, पुरुष सूक्त अथवा सहस्रनाम आदि से पुष्पार्चन अथवा जल अभिषेककरना चाहते हैं, वे अर्चन अथवा अभिषेक करें फिर शुद्धोदक स्नान कराएं अथवा सीधे शुद्धोदक स्नान कराएं।
शुद्धोदक स्नान :
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
- गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएं।
आचमन :
ॐ महालक्ष्म्यै नमः' से आचमन कराएं।
वस्त्र :
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे मे ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
- वस्त्र अर्पित करें, आचमनीय जल दें ।
उपवस्त्र :
कञ्चुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम् ।
गृहाण त्वं मया दत्तं मंगले जगदीश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि,
आचमनीय जल च समर्पयामि ।
- उपवस्त्र चढ़ाएँ, और आचमन के लिए जल दें।
यज्ञोपवीत :
ॐ तस्मादस्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।
गावोह यज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्य मग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तुतेजः॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः । यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
आभूषण :
रत्नकंकणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च ।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥
ॐ क्षुत्विपासामलां ज्येष्ठाम् - अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नानाविधानि कुंडलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि।
- आभूषण समर्पित करें।
गन्ध :
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धं समर्पयामि ।
- केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।
रक्त चन्दन :
रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्।
मया दत्तं महालक्ष्मी चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, रक्तचन्दनं समर्पयामि।
- रक्त चंदन चढ़ाएँ।
सिन्दूर :
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।
भक्तया दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यवाः ।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सिन्दूरं समर्पयामि।
- सिन्दूर चढ़ाएं।
कुंकुम :
कुंकुमं कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम्।
अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, कुंकुम समर्पयामि ।
- कुंकुम अर्पित करें।
पुष्पसार इत्र :
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पसारं च समर्पयामि।
- इत्र चढ़ाएँ।
अक्षत :
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अक्षतान् समर्पयामि।
- कुंकुमाक्त अक्षत चढ़ाएं।
पुष्पमाला :
माल्यादीनि सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नास्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पं पुष्पमाला च समर्पयामि।
- लाल कमल के पुष्प तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें।
दूर्वा :
विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम्।
क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरु सर्वदा ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दूर्वांकुरान् समर्पयामि।
- दूर्वांकुर अर्पित करें।
अङ्ग पुजन :
महालक्ष्मी के विभिन्न अंगों का कुंकुम एवं अक्षत से पूजन करें :-
पूर्वादि क्रम से आग्नेय कोण, दक्षिण, नैरुत, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान दिशा में निम्न आठ सिद्धियों का पूजन करें।
अष्टसिद्धिपूजन :
अष्टलक्ष्मी पूजन :
पूर्वादि क्रम से आठों दिशाओं में अष्ट लक्ष्मीयों का पूजन करें ।
धूप :
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।
आधेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि ।
- धूप आघापित करें - निवेदन करे।
दीप :
कार्पास वर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम् ।
तमो नाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दीप दर्शयामि ।
दीपक दिखाकर हाथ धो लें।
नैवेद्य :
मालपुए सहित पञ्चमिष्ठान्न व सूखे मेवे निवेदन करे।
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्य समन्वितम्।
षड्रसैन्वितं दिव्यं लक्ष्मी देवि नमोऽस्तु ते ॥
ॐ आद्रीं पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ॥
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
नैवेद्य :
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नैवेद्य निवेदयामि ।
बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :-
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्ति मे ह्यचलां कुरु।
ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गतिम् ॥
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँर अकल्पयन् ॥
ॐ प्राणाय स्वाहा ॐ अपानाय स्वाहा ॐ समानाय स्वाहा ॐ उदानाय स्वाहा ॐ व्यानाय स्वाहा ।
मध्ये पानीयम्, उत्तरापोशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ।
नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें।
करोद्वर्तन :
ॐ महालक्ष्म्यै नमः' यह कहकर करोद्वर्तन के लिए हाथों में चन्दन उपलेपित करें।
आचमन :
शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरण सुवासितम्।
आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीय जलं समर्पयामि ।
- आचमन के लिए जल दें।
ऋतुफल :
सीताफल, गन्ना, सिंघाड़े व अन्य फल अर्पण करे।
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तस्मात् फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
- ऋतुफल अर्पित करें तथा आचमन के लिए जल दें।
ताम्बूल :
पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आद्रीं यः करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मुखवासार्थे ताम्बूल समर्पयामि।
लवंग, इलायची एवं ताम्बूल अर्पित करें।
दक्षिणा :
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि।
- दक्षिणा चढ़ाएं।
आरती :
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि।
- जल छोड़ें व हाथ धोए।
प्रदक्षिणा :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे ॥
- प्रदक्षिणा करें।
प्रार्थना :
हाथ जोड़कर बोलें :-
विशालाक्षी महामाया कौमारी शंखिनी शिवा ।
चक्रिणी जयदात्री चरणमत्ता रणाप्रिया ॥
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥
नमस्ते साधक प्रचुर आनंद सम्पत्ति सुखदायिनी ।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वक नमस्कारम् समर्पयामि ।
- प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।
समर्पण :
कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मी देवी प्रीयताम् न मम ।
हाथ में जल लेकर छोड़ दें ।
अभी हीं देहली, दवात, बही-खाता, तिजोरी व दीपावली दीपमालिका पूजा करनी है
मंत्र-पुष्पांजलि :
( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)
प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-
क्षमा प्रार्थना :
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ॥
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वम् मम देवदेव ।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि माम् परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥
पूजन समर्पण :
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-
'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः'
(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)
विसर्जन :
अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥
सभी देवगण मेरे द्वारा की गई पूजा को स्वीकार कर अभीष्ट कामनाओं की समृद्धि के लिए पुनः आने के लिए यहाँ से विदा हों।