जातकर्म संस्कार
Jaatkaram Sanskar
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आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
जातकर्म संस्कार
जातकर्म संस्कार प्रसव से जुड़ा हुआ संस्कार है जिसमें शीघ्र प्रसव उपाय तथा नवजात से जुड़े कर्म हैं।
शीघ्र प्रसव उपाय- जब प्रसव करने वाली पत्नी को प्रसव वेदना हो तभी तिल का तेल दूर्वा के द्वारा १०८ मंत्र पढ़कर दूर्वा दक्षिणावर्ती घुमाता रहे-
शीघ्र प्रसव मंत्र -
ॐ हिमवत्युत्तरे पार्श्वे शबरीनाम यक्षिणी।
तस्या नूपुर शब्देन विशल्या स्यात्तु गर्भिणी स्वाहा ॥
इस मंत्र से तिल तेल अभिमंत्रित कर कुछ गर्भिणी को पिला देवे। शेष उसके पेट पर लेपन कर देवे। इससे शीघ्र प्रसव होता है।
जातकर्म - पारिजात के अनुसार अगर पिता अपने संतान के जन्म के पश्चात् उसके रोदन के पूर्व पुत्र का मुख देखे ऐसा करने से वह पितृऋण से मुक्त हो जाता है।
नाल छेदन के पूर्व ही जातकर्म संस्कार होना चाहिये क्योंकि नाल छेदन के पश्चात् सूतक लग जाता है।
जातकर्म संस्कार विधि -
जातकर्म संस्कार हेतु पिता निम्न मन्त्रों से संकल्प करे -
ममास्य बालस्य गर्भाम्बुपान जनित सकल दोष निबर्हणायु मेधा बुद्धि वीजगर्भ समुद्भवै नो निबर्हण द्वारा श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं जातकर्म करिष्ये ।
अब इसके पश्चातृ गणपति पूजन, पुण्याहवाचन, मातृका पूजन-नांदीश्राद्ध जातकर्म करे।
निर्णय सिंधु का मत है कि यदि जन्म के समय कोई मृत्यु सूतक हो या पिता परदेश में हो तो जब घर में आ जावे या मृत सूतक समाप्त हो जावे, तब मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, रेवती या रोहिणी तीनों उत्तरा या पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा अथवा अश्विनी, पुष्यु, हस्त नक्षत्रों में व सूतक (जननाशौच) के पश्चात् जातकर्म करे। रिक्ता तथा शनिवार या मंगलवार का दिन नहीं होना चाहिए।
बच्चे का जन्म अगर ग्रहण काल में हुआ हो तो उसका संस्कार -
यदि बच्चे के जन्म काल में सूर्य ग्रहण या चंद्रग्रहण हो तो उस देवता की चाँदी की मूर्ति बनाकर जातकर्म में ही उसका पूजन करना चाहिए। राहु के लिए नाग की मूर्ति सीसा की बनावे एवं उसकी भी पूजा करे। यह मूर्तियाँ ब्राह्मणों को दान कर दें।
जन्म होते ही बालक को शंखपुष्पी-ब्राह्मी शतावरी को पीसकर शहद और गोधृत की विषम मात्रा में मिला कर दें । इसको स्वर्ण से घिस दें या कणमात्र स्वर्ण भस्म डाल दें । लोक परंपरा में घर की कोई वृद्धा माता यह मिश्रण ले जावे तथा हाथ धोकर दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली शिशु को चटा दें ।
गोभिल ग्रह्य सूत्र में वर्णन है कि चावल तथा जौं का दाना पीसकर घृत मिश्रित कर स्वर्ण शलाका से बालक को चटादें । आश्वलायन स्मृति में लिखा कि पिता ही यह स्वर्ण घर्षित मधु घृत को चटावे तथा स्वर्ण से ही उसके मुख में डाले। फिर दोनों कानों पर सोना रखकर पवित्र मंत्रों का उच्चारण करें। शिशु के दोनों कन्धा पिता छूवें। अब पिता या या ब्राह्मण इन तीन मंत्रों 'अश्मा भव इन्द्रः श्रेष्ठानि' और 'यस्मै प्रयन्धिः' को पढ़े।
अगर संतान पुत्री है तो भी जातकर्म ऐसे ही करे पर मंत्र न पढ़े।
आपस्तंब ग्रह्य सूत्रकार ने लिखा है कि घी और मधु का मिश्रण स्वर्ण से चटावे उसमें दर्भ भी पड़ा हो। तथा कांसे के पात्र में दही और घृत मिलाकर पृष्दाज्य उसे बालक को तीनों व्याहृति से चटावे। चौथा ओम शब्द से चटावे। शेष बचे हुए भाग में जल मिश्रित करके गो शाला में डाल देवे।
ब्राह्मी-शंखपुष्पी-शहद और घृत लेकर पिता अनामिका से मुंह में जिव्हा पर निम्न मन्त्रों द्वारा लगाये -
ॐ भूस्त्वयि दधामि। ॐ भुवस्तत्वयि दधामि। ॐ स्वस्त्वयि दधामि। ॐ भूर्भुवः स्वः सर्वं त्वयि दधामि।
फिर आयुष्य मंत्रों का पाठ करे -
आयुष्य मंत्र जाप -
मार्कंडेय महाभाग सप्तकल्पान्तजीवन |
आयुरारोग्यं ऐश्वर्यं देहि मे मुनिपुंगव ||
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः |
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ||
क्षित्यब्वायुवियत्तेजो ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः |
मामेव हि सदा पान्तु मार्कंडेयो भवाम्यहम् ||
ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम् |
जन्ममृत्यु जराव्याधि पीडितं कर्मबन्धनैः ||
|| अस्तु ||
फिर 3 बार पिता 'ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेः' इस मंत्र को पढ़े। फिर 'पश्येम शरदः शतं जीवेम' का पाठ करे। पहिले बालक पर कुश का जल भी छिड़के तभी सब संस्कार करे।
अब जन्मदात्री माता का मार्जन करे। फिर यह मंत्र पढ़ें-
ॐ इदासी मैत्रावरुणी वीरे वीरमजी जनथाः सा त्वं वीरवती भव यास्मान्वीर वतोऽकरत।
इस मंत्र से दाहिना स्तन जल से धोकर बालक को पिलावे।
फिर मंत्र पढ़े-
ॐ इम गुंग स्तन मूर्जस्वन्तन्धयायां प्रपीनमग्ने सरिरस्य मध्ये। उत्सञ्जुषस्व मधुमन्तमर्वन्त्समुद्रिय सदन माविशस्व।
यह मंत्र पढ़कर वामस्तन जल से प्रोक्षण कर बालक को पिलावे एवं ' ॐ स्तनः शशयो' इस मंत्र का पाठ करे। अब नालच्छेद करे। फिर पिता या कोई ब्राह्मण चावल और सरसों को मिलाकर सूतिकागार के बाहर अग्नि में दो आहुति डाले। दस दिनों तक प्रातः सायं दो-दो आहूतियाँ नित्य डाली जाना चाहिये।
षष्ठी पूजन -
जन्म के छठवें दिन, रात्रि में षष्ठी देवी का पूजन करे। निर्णय सिंधु के अनुसार पुत्रजन्म के प्रथम दिवस-छटवें दिन तथा दशवें दिन सूतक नहीं रहती। दानादि देने लेने में दोष नहीं है।
छटवें दिन रात्रि के प्रथम प्रहर में पिता स्नानादि करके संकल्प करे कि इस बालक की आयु माता सहित संपूर्ण अनिष्ट शांति के लिए विघ्नेश, जन्मदा षष्ठी देवी और जीवन्ती भगवती का पूजन कर रहा हूँ ।
फिर अक्षत पुज्जों पर तीनों देवताओं का आवाहन कर पूजन करें। चिरकाल पर्यन्त बालक की भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी योगिनी-चतुष्पाद-सर्पादि से बालक की रक्षा करने की प्रार्थना करे। रात्रि में स्त्रियाँ मंगलगान कर जागरण करें। पुरुष शस्त्र लेकर जागते रहे। ब्राह्मण स्वस्त्ययन करें। इस दिन दान लेने में दोष नहीं है।
लोकाचार में प्रसूता के हाथ से प्रसव के पूर्व ही कागज पर तेल के छापे लगवा लेते हैं फिर दीवाल पर पष्ठी देवी की पुतली बनाकर वही प्रसूता के हाथ का तेल छापा लगा कागज चिपका देते है। फिर पुतली बनाना संभव न हो तो षष्ठी देवी की चाँदी की प्रतिमा बनाकर घी गुड़ से उसी तेल लगे छापे वाले कागज पर चिपका देते है। पूजा पूर्व सभी देवों की प्राणप्रतिष्ठा होनी चाहिये।
माँ षष्ठी देवी पूजा विधि ||
माँ षष्ठी देवी प्रजा पिता ब्रह्मा जी की मानसपुत्री हैं और कार्तिकेय की प्राणप्रिया हैं । ये देवसेना के नाम से भी जानी जाती हैं । इन्हें विष्णुमाया तथा बालदा अर्थात पुत्र देने वाली भी कहा गया है । भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रुप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं । वह उनकी रक्षा करने के साथ उनका भरण-पोषण भी करती हैं । बच्चों को स्वप्न में कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं, कभी खिलाती हैं तो कभी दुलार करती हैं । कहा जाता है कि जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं वो इन्हीं षष्ठी देवी की पूजा की जाती है । यह अपना अभूतपूर्व वात्सल्य छोटे बच्चों को प्रदान करती है ।
माँ षष्ठी देवी पूजा विधि
ऐसे दंपत्ति जिनकों संतान सुख नहीं मिलने में बाधा आती हो उन्हें
दंपत्ति को नवरात्र काल में दोनों संध्याओं (सुबह+शाम) में माता षष्ठी के स्तोत्र का पाठ करना चाहिए । नवरात्र के पहले दिन संतान प्राप्ति की कामना से शालिग्राम शिला, कलश, वटवृक्ष का मूल अथवा दीवार पर लाल चंदन से षष्ठी देवी की आकृति बनाकर उनका पूजन ९ दिनों तक श्रद्धा विश्वास से करना चाहिए ।
माता का आवाहनम और ध्यान इस प्रकार से कीजिए-
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम् ।
सुपुत्रदां च शुभदां दया रूपां जगत्-प्रसूम् ।।
श्वेत चम्पक-वर्णाभां रत्न-भूषण-भूषिताम् ।
पवित्र-रुपां परमां देव-सेनां परां भजे ।।
आवाहन तथा ध्यान के बाद ।।
" ऊँ ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा "।।
इस अष्टाक्षर मंत्र का नौ दिनों तक ११०० बार तुलसी या लाल चंदन की माला से जप करें । जप से पूर्व, आवाहन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्राभूषण, पुष्प, धूप, दीप, कर हल्दी, कुमकुम, पुष्प, अक्षत, नैवेद्य आदि से माता का पूजन करें । जब मंत्र का जप पूरा हो जाए तो उसके बाद माता षष्ठीदेवी के नीचे दिये स्तोत्र का पाठ करें । माता की कृपा से नि:संदेह संतान की प्राप्ति होगी ।
षष्ठी देवी स्तोत्र
नमो देव्यै महा-देव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नम:।
शुभायै देव-सेनायै षष्ठी देव्यै नमो नम: ।।
वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:।
सुखदायै मोक्षदायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
शक्ते: षष्ठांश-रुपायै सिद्धायै च नमो नम: ।
मायायै सिद्ध-योगिन्यै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
पारायै पारदायै च षष्ठी देव्यै नमो नम:।
सारायै सारदायै च पारायै सर्व कर्मणाम।।
बालाधिष्ठात्री देव्यै च षष्ठी देव्यै नमो नम:।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम।
प्रत्यक्षायै च भक्तानां षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
पूज्यायै स्कन्दकांतायै सर्वेषां सर्वकर्मसु।
देवरक्षणकारिण्यै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
शुद्ध सत्त्व स्वरुपायै वन्दितायै नृणां सदा ।
हिंसा क्रोध वर्जितायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि ।
धर्मं देहि यशो देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
भूमिं देहि प्रजां देहि देहि विद्यां सुपूजिते ।
कल्याणं च जयं देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
।। इति षष्ठी देवी स्तोत्र समाप्त ।।