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वेदारंभ संस्कार

Vedarambha Sanskar

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Vedarambh-Sanskar

आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

वेदारंभ संस्कार

वेदारम्भ संस्कार में आचार्य के द्वारा ब्रह्मचारी को अपनी वेदशाखा का ज्ञान और मंत्र का उपदेश दिया जाता है। यह संस्कार उपनयन संस्कार के बाद होता है। योगियाज्ञवल्क्य स्मृति में कहा गया है कि आचार्य कुमार का उपनयन करके उसे महाव्याहृतियों के साथ वेद का अध्ययन कराये और शौचाचारकी शिक्षा भी प्रदान करे-

उपनीय गुरुः शिष्यं महाव्याहृतिपूर्वकम् ।
वेदमध्यापयेदेनं शौचाचाराँश्च शिक्षयेत् ।।

इस संस्कार में प्रारम्भ में वेदारम्भवेदी में पंचभू-संस्कार पूर्वक अग्नि-स्थापन तथा हवनकर्म होता है। फिर ब्रह्मचारी कुमार प्रारम्भ में गणेश आदि का पूजनकर वाग्देवी सरस्वती, गुरु का पूजन करके और उन्हें प्रणाम करके वेदमाता गायत्री का पाठ करता है और उसके बाद वेदों की शिक्षा प्राप्त करता है। अपने वेद का सम्पूर्ण स्वाध्याय करके अनन्तर अन्य वेदों की भी शिक्षा आचार्य से प्राप्त करता है। अन्त में प्रणवपूर्वक पुनः गायत्री का पाठ करके गुरु के द्वारा 'ॐ विरामोऽस्तु' ऐसा कहनेपर शिष्य गुरु के चरणों में प्रणाम करके विराम करता है और आचार्य से अध्ययन के नियमों का ज्ञान प्राप्त करता है।

वेद के अध्ययन के सन्दर्भ में वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश में महर्षि वसिष्ठ के वचनसे बताया गया है कि 'अधीत्य शाखामात्मीयां परशाखां ततः पठेत्' अर्थात् सर्वप्रथम अपनी वेदशाखा का सांगोपांग अध्ययन करने के अनन्तर दूसरी शाखाओं का अध्ययन करे।

वेदारम्भ विधि -

आचार्य उपनयन के ही नक्षत्र दिनों में संकल्प करे -

ॐ - अमुकोऽहं अमुकगोत्रस्य कमुकनाम शर्मणः सर्व ब्रह्मता सिद्ध ये वेदारंभाहं करिष्ये।

फिर वटु से आचार्य गणपति-मातृका-नान्दी मुख श्राद्ध सम्पन्न करावे। पुनः वेदारंभार्थ अग्नि प्रतिष्ठा करे। हवन करे। वटु संक्षेप में सरस्वती-यजुर्वेद तथा गुरु का पूजन करे।

फिर वटु आग्रह करे पश्चात् आचार्य वेद पढ़ावे। गायत्री वेद माता है गायत्री के उपदेश के पश्चात् चारों वेदों का 1-1 मंत्र पढ़ावे।

अब कुमार सर्वप्रथम प्रणवव्याहृतिपूर्वक गायत्री मन्त्र को पढ़कर अपने वेद की शाखा का आरम्भ करे। यथा-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

शुक्लयजुर्वेद का आरम्भ -

ॐ इषे त्वोर्जे त्वा वायव स्थ देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायध्व मध्या इन्द्राय भागम्प्रजावती-रनमीवा अयक्ष्मा मा व स्तेन ईशत माघशः सो ध्रुवा अस्मिन् गोपतौ स्यात बह्वीर्यजमानस्य पशून् पाहि ।।

ऋग्वेदा का आरम्भ -

ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम् ।

सामवेद का आरम्भ -

ॐ अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये। नि होता सत्सि बर्हिषि ।

अथर्ववेद का आरम्भ -

ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः ।

पुनः गायत्री मन्त्रका पाठ करे और 'विरामोऽस्तु'- ऐसा गुरुके कहनेपर शिष्य उनके चरणों में प्रणाम करे और पाठ बन्द करे। फिर चारों वेदों के प्रथम मंत्रों से हवन करके भस्म धारण करे। पश्चात् 10 ब्राह्मणों का भोजन कराके संस्कार संपन्न करना चाहिये।

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