सीमन्तोन्नयन संस्कार
Seemantonnaya Sanskar
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आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
सीमन्तोन्नयन संस्कार
सीभंतोन्नयन संस्कार से माता के मस्तिस्क में श्रेष्ठ भाव को लाया और बढ़या जाता है ताकि इन्हीं उत्तम भावों की छाया गर्भ पर पड़ और बालक श्रेष्ठ भाव वाला उत्पन्न हो। इस संस्कार में माता की अधो वाहिनी शिराओं (नीचे की ओर जाने वाली शिरा) को उर्ध्व श्रोत (उर्ध्व - ऊपर की ओर, श्रोत - सुनने की इंद्रिय ) कर दिया जाता है जिससे कि माता के मस्तिस्क में श्रेष्ठ भाव उत्पन्न हो और उन्ही श्रेष्ठ भाव की छाया गर्भ पर पड़े। धर्म सिन्धु के अनुसार सीमंतोन्नयन संस्कार पति के बिना किसी अन्य को करने का अधिकार नहीं है।
सीमंतोन्नयन संस्कार कब किया जाता है ?
निर्णय सिंधु के अनुसार सीमंतोन्नयन संस्कार जब गर्भ में स्पन्दन (चलने-हिलने) होने लगे तब करते हैं । इस संस्कार को गर्भ के चौथे, छठवें या आठवें माह में करना चाहिये।
चतुर्थे सावने मासि षष्ठे वाप्यथ वाष्टमे ॥
दिनों में मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार तथा रविवार में यह संस्कार करना श्रेष्ठ माना गया है।
शुभ नक्षत्रों में पुष्य, हस्त, पुनर्वसु, श्रवण, मृगशिरा, रेवती, रोहिणी, तीनों उत्तरा नक्षत्र में सीमंतोन्नयन संस्कार करना चाहिए। यह पुरुष संज्ञक नक्षत्र है। इन नक्षत्रों का भी आदि-अन्त का त्याग करे। मध्य का भाग ग्रहण करे।
यह संस्कार अष्टमी, षष्ठी, रिक्ता, चतुर्दशी, नवमी, चतुर्थी, अमावस्या तथा पिता की मृत्यु तिथि में करना मना है। वसिष्ठ ने कहा है कि यदि कभी किसी कारणवश चतुर्दशी-चतुर्थी-अष्टमी-नवमीं षष्ठी और द्वादशी इन्हीं तिथियों में करना हो तो चतुर्दशी की पांच घड़ी, चतुर्थी की आठ घड़ी, अष्टमी की नौ घड़ी और द्वादशी की आरंभ की दश घड़ी का त्याग कर दे। अन्य तिथियाँ शुभ हैं।
सीमंतोन्नयन संस्कार कृष्णपक्ष में करना शुभ माना गया है। यह संस्कार दिन में करना ज्यादा श्रेष्ठ मन गया है परन्तु संस्कार रात्रि में भी हो सकता है।
निर्णय सिन्धु के अनुसार इस संस्कार में ब्राह्मण भोजन में चावल द्वारा निर्मित खीर या भात का भोजन आवश्यक है। जो ब्राह्मण इसमें भोजन करें उनको 'अराइवे' इस मंत्र का सौ बार जप अवश्य करना चाहिये।
सीमन्तोन्नयन संस्कार विधि :-
सीमन्तोन्नयन संस्कार संकल्प
मम भार्यायाः गर्भावयवेभ्यस्तेजो वृद्धयर्थं क्षेत्रगर्भयोः संस्कारार्थं प्रतिगर्भ समुद्भवै नो निवर्हणेन बीजकोत्पत्ति अतिशय द्वारा परमेश्वर प्रीत्यर्थं सीमंतोन्नयनाख्यं संस्कार कर्म करिष्ये ।
निर्वघ्नता के लिए गणपति गौरी, पुण्याहवाचन मातृका पूजन नांदी श्राद्ध करे। वेदी बनाकर कुशकंडिका करे फिर नवाहुति के पूर्व अग्नि में विष्णु भगवान् के लिए अग्नि में पुरुष सूक्त या विष्णु मंत्रों से 64 आहुति देवे। अब नवाहुति करे।
ॐ प्रजापतये स्वाहा इदं प्रजापतये न मम ॐ इन्द्राय स्वाहा इदमिन्द्राय न मम। ॐ अग्नये स्वाहा इदमग्नये न मम। ॐ सोमाय स्वाहा इदं सोमाय न मम। ॐ अग्नये स्वष्टिकृते स्वाहा इदं अग्नये स्वष्टिकृते न मम।
अब पूर्णपात्र दान करे।
अब गर्भिणी पत्नी को अग्नि कुण्ड के पश्चिम भाग में उत्तराग्र कुशा बिछाकर पूर्वाभिमुख बैठाएं । पति पत्नी के पीछे की ओर खड़ा होकर उसके केश खोले। गूलर की टहनी जिसमें २ फल लगे हों और पीपल की टहनी तथा तीन कुशाओं को एकत्रित करके पति स्त्री के बालों के मध्य से केशों को दो भागों में विभाजित कर दे (अर्थात् मांग निकाल दे)।
मानव गृह्य सूत्र में कहा है कि सीमंत संस्कार में अग्नि में जया आदि होम करके पश्चिम में बैठी पत्नी के केश खोलकर उनमें गाय का मक्खन लगावे फिर साही का कांटा जिसमें तीन जगह श्वेत हो और पत्तों सहित शमी की डाली को इक्ट्ठा करके 'पत्नीमग्निरदात्' मन्त्र पढ़कर उसमें माँग निकाले और इन इन तीन मंत्रों का पाठ करे -
(1) ॐ भू र्विनयामि।
(2) ॐ भुवर्विनयामि ।
(3) ॐ स्वर्विनयामि ।
इन मंत्रों से तीन बार माँग बनाये।
तत्पश्चात् उन दो भाग किये हुए केशों का जूड़ा बना दें और निम्न मंत्र पढ़े-
ॐ अयमूर्जान्वतो वृक्षऊर्जीव फलिनी भव।
फिर घी-दूध-शकर डालकर बनी हुई खीर पत्नी को दिखावे, जो गोदुग्ध से निर्मित हो।
पति उससे खीर दिखाकर पूछे कि तुम इसमें क्या देखती हो ? पत्नी उत्तर में कहे कि 'प्रजा'।
फिर मंगलाशीष मंत्रपाठ करें।
अब पत्नी देव विसर्जन करके पति द्वारा दी गई खीर को खाये। बड़ी उम्र की महिलाएं आशीर्वाद दें कि तुम' श्रेष्ठ सुयोग्य पुत्रवाली होओ।'