अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी - सौभाग्य, सुंदरता और संतान का व्रत
Achala Saptami Rath Saptami Suryarath Saptami Arogya Saptami Solar Saptami Arka Saptami and Bhanusaptami
अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी
अचला सप्तमी सौभाग्य, सुंदरता और संतान का व्रत है। वर्ष 2024 में अचला सप्तमी उयदया तिथि से 16 फरवरी को होगा। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 15 फरवरी सुबह 10.13 बजे से 16 फरवरी की सुबह 08.54 बजे तक है।
अचला सप्तमी का स्नान मुहूर्त: 16 फरवरी 2024, प्रातः 05:04 से प्रातः 06:42 तक कुल अवधि: 01 घण्टा 38 मिनट
अचला सप्तमी क्या है ?
प्राणिमात्र की जीवनशक्ति को जीवित रखनेवाले प्रत्यक्ष ईश्वर सूर्य- नारायण ने मन्वन्तर के आदि में माघ सप्तमी के दिन हीं अपने प्रकाश से समस्त जगत को प्रकाशित करना प्रारंभ किया था। अत: इस तिथि को सूर्य जयंती भी कहा जाता है। सरल शब्दों में कहें तो रथ सप्तमी के दिन सूर्यदेव का प्रादुर्भाव हुआ है।
इस दिन सूर्य की उपासना के कई कृत्य कई प्रयोजनों और प्रकारों से किये जाते हैं। इस कारण अचला सप्तमी को रथ सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी आदि कई नामों से भी जाना जाता है। अचला सप्तमी सौर सप्तमी भी कहते हैं। सौर सप्तमी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि महिलाएं सूर्य नारायण को प्रसन्न करने के लिए इस व्रत को करती हैं। इस समय के दौरान पवित्र स्नान करने से व्यक्ति को सभी बीमारियों से मुक्ति मिलती है और उसे अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इस कारण रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सभी पापों और दुखों से मुक्ति मिल सकती है। कहा जाता है कि मनुष्य अपने जीवन में सात प्रकार के पाप करता है। ये जानबूझकर, अनजाने में, मुंह के वचन से, शारीरिक क्रिया द्वारा, मन में, प्रचलित जन्म और पिछले जन्मों में किए गए पाप हैं। रथ सप्तमी के दिन सूर्य भगवान की आराधना करने से इन सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
जो महिलाएं इससे पहले शीतला षष्ठी का भी व्रत रखती हैं, उन्हें षष्ठी में सिर्फ एक बार ही भोजन करना चाहिए. सप्तमी के दिन विधि पूर्व सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए. उस दिन प्रातः काल जागने के बाद नदी, तालाब पर जाकर सिर पर दीप धारण कर सूर्य की स्तुति करते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र या फिर गायत्री मंत्र जपना चाहिए. स्नान के बाद सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बना कर मध्य में शिव तथा पार्वती की स्थापना कर पूजन करना चाहिए, पूजन के बाद ब्राह्मण को दान देने का प्रावधान है. इसके बाद सूर्य एवं शिव पार्वती का विसर्जन कर घर आने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए
माघी सप्तमी के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और भगवान सूर्य का पूजन करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि सूर्यदेव की विधिवत पूजा करने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। ज्योतिषों की मानें तो कारोबार में उन्नति और प्रगति के लिए सूर्य का प्रबल होना अनिवार्य है। जिन जातकों के कुंडली में सूर्य उत्तम का होता है। उन्हें कारोबार में कोई समस्या नहीं आती। कई ज्योतिष सरकारी नौकरी पाने के लिए सूर्य को मजबूत करने की सलाह देते हैं। जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के इच्छुक जातकों को प्रतिदिन सूर्य देव को जल का अर्ध्य देना चाहिए। सूर्यदेव को प्रातः काल स्नान कर अर्घ्यदान तथा दान-पुण्य करने से लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है। रथ सप्तमी के दिन कई घरों में महिलाएं सूर्य देवता के स्वागत के लिए उनका और उनके रथ के साथ चित्र बनाती हैं। वे अपने घरों के सामने सुंदर रंगोली बनाती हैं। आंगन में मिट्टी के बर्तनों में दूध डाल दिया जाता है और सूर्य की गर्मी से उसे उबाला जाता है। बाद में इस दूध का इस्तेमाल सूर्य भगवान को भोग में अर्पण किए जाने वाले चावलों में किया जाता है।
अचला सप्तमी व्रत विधि
अचला सप्तमी का व्रत उदया तिथि (जो तिथि सूर्योदय के साथ शुरू हो) से ली जाती है। स्नानके विषयमें यह स्मरण रहे कि जो माघ स्नान करते हों, वे इसी दिन अरुणोदय (पूर्व दिशाकी प्रातःकालीन 'लालिमा) होने पर और भानुसप्तमी- निमित्त स्नान करनेवालों को सूर्योदय के बाद स्नान करना चाहिये। स्नान करने के पहले आक के सात पत्तों और बेर के सात पत्तों को लाल धागे की बत्तीवाले तिल के तेल वाले दीपक में रखकर उसको सिर पर रखे और सूर्य का ध्यान करके गन्ने से जल को हिलाकर दीपक को जल में प्रवाहीत कर दें।
दिवोदास के मतानुसार दीपक के बदले आक के सात पत्ते सिर पर रखकर ईख से जल को हिलाये और निम्न मंत्र से पढ़कर दीपकको बहा दें -
नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नमः।
वरुणाय नमस्तेऽस्तु।।
इसके बाद निम्न मंत्र का जप करके विष्णु भगवान् और सूर्य भगवान् को देखकर पादोदक (गङ्गाजल अथवा चरणामृत) को जल में डालकर स्नान करें तो क्षणभर में पाप दूर हो जाते हैं -
यद् यज्जन्मकृतं पापं यच्च जन्मान्तरार्जितम्।
मनोवाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञाते च ये पुनः ॥
इति सप्तविधं पापं स्नानान्ते सप्तसप्तिके ।
सप्तव्याधिसमाकीर्ण हर भास्करि सप्तमि ॥
सूर्य सप्तमी का अर्घ्य मंत्र विधि -
स्नान के बाद अगर संभव हो तो सूर्यदेव को गंगाजल से अर्घ्य दें। अर्घ्यदान करते समय भगवान सूर्य के सामने मुँह करते हुए, नमस्कार मुद्रा में, मुड़े हुए हाथ से, छोटे कलश की सहयता से धीरे-धीरे जल चढ़ाते हैं। लोटे में जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, सात अर्कपत्र और सात बदरीपत्र रखकर निम्न मंत्र से सूर्य को अर्घ्य दें -
सप्तसप्तिवह प्रीत सप्तलोकप्रदीपन।
सप्तम्या सहितो देव गृहाणाध्यै दिवाकर॥
और इसी प्रकार अब सप्तमी को निम्न मंत्र से अर्घ्य दें -
जननी सर्वलोकानां सप्तमी सप्तसप्तिके।
सप्तव्याहृतिके देवि नमस्ते सूर्यमण्डले ॥
भानुसप्तमी पूजन संकल्प -
सुवर्णादि की छोटी मूर्ति हो तो उसे अष्टदल कमल के बीच में स्थापित कर संकल्प लें -
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2080 पिंगल नाम संवत्सरे माघ मासे शुक्ल पक्षे सप्तमी तिथौ ... वासरे (दिन का नाम जैसे रविवार है तो "रवि वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः माघ मासे सप्तमी तिथौ ममाखिलकामनासिद्धचथें सूर्यनारायणप्रीतये च सूर्यपूजनं करिष्ये।
इसके बाद सूर्याय नमः इस नाम-मन्त्र से अथवा पुरुषसूक्तादि से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करे।
इसके बाद भगवान भास्कर की आरती करें।
अचला सप्तमी का दान -
इसी दिन दान के निमित्त नित्यनियम से निवृत्त होकर चन्दन से अष्टदल लिखें। पूर्वादिक्रम से उसके आठों कोणों पर शिव, शिवा, रवि, भानु, वैवस्वत, भास्कर, सहस्त्रकिरण और सर्वात्मा इनका यथाक्रम स्थापन और पूजन करके ताम्रादि के पात्र में कुण्डल, घी, गुड़ और तिल रखकर लाल वस्त्र से ढँक कर और गन्ध-पुष्पादि से पूजन करके निम्न मंत्रोच्चार करके ब्राह्मणको दान दें -
आदित्यस्य प्रसादेन प्रातःस्त्रानफलेन च।
दुष्टदुर्भाग्यदुःखघ्नं मया दत्तं तु तालकम्॥
भानुसप्तमी के निमित्त प्रातः खानादि से निश्चिन्त होकर समीप में सूर्यमन्दिर हो तो उसके सम्मुख बैठें। ऋतुकालके पत्र, पुष्प, फल, खीर, मालपुआ, दाल-भात या दध्योदनादिका नैवेद्य निवेदन करे और भगवान्को सर्वाङ्गपूर्ण रथमें विराजमान करके गायन-वादन और स्वजनपरिजनादिको साथ लेकर नगर-भ्रमण करवाकर यथास्थान स्थापित करे। ब्राह्मणोंको खीर आदिका भोजन करवाकर दिन अस्त होने से पहले पहले स्वयं एक बार भोजन करे। उस दिन तेल और नमक न खायें। इस प्रकार प्रतिवर्ष करें तो अक्षय पुण्य होता है।
अचला सप्तमी व्रत की कथा
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा, "भगवन कृपा पूर्वक यह बताएं कि कलयुग में कोई स्त्री किस व्रत को करने से सौभाग्यवती हो सकती है." इस पर श्री कृष्ण ने उत्तर देते हुए एक कथा सुनाई. प्राचीन काल में इंदुमती नाम की एक वेश्या एक बार ऋषि वशिष्ठ के पास गई। उस गणिका ने अपने पूरे जीवन में कभी कोई दान-पुण्य का कार्य नहीं किया था। जब उस महिला का अंत काल आया तो वह वशिष्ठ मुनि के पास गई। उसने ने मुनि से कहा कि मैंने कभी भी कोई दान-पुण्य नहीं किया है तो मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी। मुनि ने कहा कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी है। इस दिन किसी अन्य दिन की अपेक्षा किया गया दान पुण्य का हजार गुना प्राप्त होता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर भगवान सूर्य को जल दें और दीप दान करें तथा दिन में एक में बार बिना नमक के भोजन करें। ऐसा करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। गणिका ने वशिष्ठ मुनि द्वारा बताई हर बात का सप्तमी के दिन व्रत और विधि पूर्वक कार्य किया। कुछ दिन बाद गणिका ने शरीर त्याग दिया और उसे स्वर्ग के राजा इंद्र की अप्सराओं का प्रधान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
माघ शुक्ल सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए। वे बहुत अधिक दिनों तक तप करके आए थे और इस कारण उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था। शाम्ब उनकी दुर्बलता का मजाक उड़ाने लगा और उनका अपमान भी किया इसे बात से क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। शाम्ब की यह स्थिति देखकर श्रीकृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर शाम्ब ने भगवान सूर्य की आराधना करना प्रारंभ किया, ऐसा करने से कुछ समय में ही कुष्ठ रोग ठीक हो गया। इसलिए जो श्रद्धालु सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना करता है। उन्हें आरोग्य, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है तथा सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है।
अचला सप्तमी के सूर्य ग्रह मजबूत करने और जीवन में हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए ज्योतिषीय उपाय -
1. अचला सप्तमी के दिन आप स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा करें। उनको पानी में लाल चंदन, गुड़ और लाल फूल डालकर अर्घ्य दें। उसके बाद आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। इससे आपको कार्य क्षेत्र में सफलता मिलेगी। यश और कीर्ति में वृद्धि होगी।
2. अचला सप्तमी के स्नान और पूजा के बाद आप किसी गरीब ब्राह्मण को मसूर दाल, गुड़, तांबा, गेहूं, लाल या नारंगी वस्त्र दान करें। यह सूर्य ग्रह से जुड़ी दान की वस्तुएं है। इससे सूर्य की स्थिति आपकी कुंडली में प्रबल होगी।
3. रथ सप्तमी को पानी में लाल चंदन, गंगाजल, केसर या लाल फूल डालकर स्नान करें। इससे सूर्य देव प्रसन्न होंगे। आपके सुख, धन, धान्य में वृद्धि होगी।
4. अचला सप्तमी को सूर्य देव की पूजा करते समय सूर्य गायत्री मंत्र या मनोवांछित फल देने वाले मंत्र का जाप करें।
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