सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना
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सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना
श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।
चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना
चौपाई
यात्रा जो नर करै विदेशा ।
सो नित सुनै पुरान सुरेशा॥
निश्चय तासु सकल शुभ होई ।
लाभ भवन चलि आवै सोई॥
जो चिंतन हो ऋण अधिकारी।
सो यह कथा करै अनुसारी॥
निश्चय ऋणहु सकल मिटि जाई।
धनि महिमा है सूर्य गुसाई॥
दोहा
यात्रा को नर जब चले, तब यह सुने पुरान ।
निश्चय नमवांछित सकल पुरवहिं श्रीभगवान ॥
॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्ये मनवांछित- फलदो नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥4॥
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