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सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान

Surya Mahatmya - Eleventh Chapter Vrat Vidhan

सूर्यदेव * अचला सप्तमी * सूर्य षष्ठी - छठ पूजा * आदित्य हृदय स्तोत्र * सूर्य गायत्री मंत्र * सूर्य स्त्रोत इक्कीस नाम * महीने के अनुसार सूर्य की उपासना * सोलह कलाओं पर सूर्य के नाम * सूर्य के 31 नाम * द्वादश आदित्य * सूर्य ध्यान स्तुति एवं जप * सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद
 
अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी
 
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान

श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।

ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान

चौपाई

मन अस्थिर सुन शैलकुमारी ।
व्रत विधान कहौं विस्तारी॥

शनीवार लघु भोजन कीजै।
आदितवार धरम बहु लीजै॥

दंतकाष्ठ 'पहिले कै लीजै ।
तब अस्नानहिं चित्तहिं दीजै॥

उदय होत रवि अंजुल देई ।
सात प्रदक्षिण करिये सोई॥

तब धोती अरु लाल उपरना।
होम करै पढ़ि मंत्र सपरना॥

बंदि दण्डवत रवि कहँ करई ।
दृढ़ विश्वास चित्तमहँ धरई ॥

अगहन ते यह व्रतहि बखानो ।
ताकर विधि अवश्य करि जानो॥

अगहन में तुलसीदल खंडित ।
व्रतहित करें सूक्ष्म ते पंडित॥

पूस मास गोघृत पल तीना ।
अति पुनीत कायाकर दीना॥

दोहा

मास माघ व्रत जो करै, मुष्टि तीन तिल खाय।
व्रतविधान जो करहिं नर, रवि लोकन को जाय ॥

चौपाई

फागुन मास बरत सुखदाई।
क्षीर तीन पल भोजन खाई॥

चैत्र मास कर सुनहु विधाना।
दही तीन पल अधिक न आना॥

वैशाख गोघृत गोबर आना।
तीन पल ते अधिक न आना॥

जेठ मास कर याहि विधाना।
तीन अंजुली करे जलपाना॥

मास असाढ़ वरत कष्ट धरई।
तीन मरिच अवलंबन करई ॥

सावन मास अमित सुखदाई ।
तामें पल तीनि सतुआ खाई॥

भादो मास अधिक सुखदाई।
त्रै अंगुल गोमूत्रहिं खाई॥

आश्विन मास वरत शुभ जाने ।
फल कदली के तीन बखाने॥

कार्तिक मास बरत जो करई।
त्रैपल हव्य आन के परई॥

दोहा

यहि विधि बारह मास लगि, व्रतविधान के दीन ।
रवि पूजा विधिवत सहित, मुनि दुर्लभ सो दीन॥
तुमसन सुनत विचार नित, कह्यो प्रगटहोयआई।
अब जो कुछ कहिहौं उमा, सुनो बरत हरषाई॥

॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यव्रतवर्णनो नाम एकादशोऽध्यायः ॥11॥

सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद

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