सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान
Surya Mahatmya - Eleventh Chapter Vrat Vidhan
सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान
श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।
ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान
चौपाई
मन अस्थिर सुन शैलकुमारी ।
व्रत विधान कहौं विस्तारी॥
शनीवार लघु भोजन कीजै।
आदितवार धरम बहु लीजै॥
दंतकाष्ठ 'पहिले कै लीजै ।
तब अस्नानहिं चित्तहिं दीजै॥
उदय होत रवि अंजुल देई ।
सात प्रदक्षिण करिये सोई॥
तब धोती अरु लाल उपरना।
होम करै पढ़ि मंत्र सपरना॥
बंदि दण्डवत रवि कहँ करई ।
दृढ़ विश्वास चित्तमहँ धरई ॥
अगहन ते यह व्रतहि बखानो ।
ताकर विधि अवश्य करि जानो॥
अगहन में तुलसीदल खंडित ।
व्रतहित करें सूक्ष्म ते पंडित॥
पूस मास गोघृत पल तीना ।
अति पुनीत कायाकर दीना॥
दोहा
मास माघ व्रत जो करै, मुष्टि तीन तिल खाय।
व्रतविधान जो करहिं नर, रवि लोकन को जाय ॥
चौपाई
फागुन मास बरत सुखदाई।
क्षीर तीन पल भोजन खाई॥
चैत्र मास कर सुनहु विधाना।
दही तीन पल अधिक न आना॥
वैशाख गोघृत गोबर आना।
तीन पल ते अधिक न आना॥
जेठ मास कर याहि विधाना।
तीन अंजुली करे जलपाना॥
मास असाढ़ वरत कष्ट धरई।
तीन मरिच अवलंबन करई ॥
सावन मास अमित सुखदाई ।
तामें पल तीनि सतुआ खाई॥
भादो मास अधिक सुखदाई।
त्रै अंगुल गोमूत्रहिं खाई॥
आश्विन मास वरत शुभ जाने ।
फल कदली के तीन बखाने॥
कार्तिक मास बरत जो करई।
त्रैपल हव्य आन के परई॥
दोहा
यहि विधि बारह मास लगि, व्रतविधान के दीन ।
रवि पूजा विधिवत सहित, मुनि दुर्लभ सो दीन॥
तुमसन सुनत विचार नित, कह्यो प्रगटहोयआई।
अब जो कुछ कहिहौं उमा, सुनो बरत हरषाई॥
॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यव्रतवर्णनो नाम एकादशोऽध्यायः ॥11॥
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