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सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन

Surya Mahatmya - Eighth Chapter Description of Narada

सूर्यदेव * अचला सप्तमी * सूर्य षष्ठी - छठ पूजा * आदित्य हृदय स्तोत्र * सूर्य गायत्री मंत्र * सूर्य स्त्रोत इक्कीस नाम * महीने के अनुसार सूर्य की उपासना * सोलह कलाओं पर सूर्य के नाम * सूर्य के 31 नाम * द्वादश आदित्य * सूर्य ध्यान स्तुति एवं जप * सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद
 
अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी
 
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन

श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।

अष्टम अध्याय नारद का वर्णन

चौपाई

उत्तर दिशि माँ कहौं गोसाई।
मैं तेहिं अर्थ कहौं समुझाई॥

तहाँ शैल एक परम विशाला ।
राज करै तहँ मदन गोपाला॥

तापर भानुकिरन नहिं जावै ।
यहि विधि पुर अँधियारजनावै॥

निशा जोर सब पुर अँधियारी।
उगै न रवि न होइ उँजियारी॥

तहाँ वास कलियुग कर होई ।
पाप म्लेच्छ चसत तहँ सोई॥

यहि कारण तहँ उगे न भानू।
मैं तोहिं अर्थ कहाँ परमानू॥

एक समय अचरज अति भयऊ।
नारदमुनि तहाँ चलि गयऊ॥

देखा नगर सकल अँधियारा।
धर्म कथा कर कहुँ न प्रचारा॥

फिर फिर सकल नगरमुनि देखा।
अन्य व्योहार अपर नहिं देखा॥

मनमहँ नारद कीन्ह विचारा ।
कहँ आये यहि पुर अँधियारा॥

असकहि नारद कोपेउ जबहीं।
दीन्हा श्राप नगर कहँ तबहीं ॥

कुष्ठी होउ सकल नर नारी।
धर्म कथा कर नाम बिसारी ॥

कुष्ठ बरन भा संबके अङ्गा ।
आठो गात कुष्ठ तन भङ्गा ॥

रहो न कोउ कुष्ठ विहीना।
जबहीं श्राप मुनीश्वर दीना ॥

व्याकुल भये सकल नर नारी ।
त्राहि त्राहि सब करहिं पुकारी ॥

श्राप देइ ऊत्तर कहँ आये।
अब हम यह मुनि चरित्र सुनाये ॥

अब कहहु मुनि देखा कैसा ।
हंस समान श्वेत भा जैसा ॥

बिदा होइ सुनि घर कहँ आये।
हरपित होइ भानु गुण गाये ॥

धनि आदित काया के राजा ।
ज्योति जासु तिहुँलोक बिराजा ॥

अस्तुति रविकर नारद गाये ।
कोटि विप्र तब नेवत पठाये ॥

भोजन सुधा समान बनाये ।
प्रेम सहित सब विप्र जेंवाये ॥

अश्वमेध मुनि करन सो लागे ।
तीन लोक के दारिद भागे ॥

सब कहँ नारद नेवत पठाये।
निजनिज वाहन चढ़िचढ़ि आये॥

बहु प्रकार सुनि सबहिं जेंवाये।
हर्षित होत भानु गुन गाये॥

वेद पढ़े सुनि गिरा सुधारी ।
हर्षित गावहिं मंगल नारी॥

चंदन अक्षत लै पकवाना।
पूजा करहिं मुनि धरि ध्याना॥

ब्रह्मादिक निज लोक सिधाये ।
प्रेम पुलक सूरज गुन गाये॥

दोहा

यज्ञ कीन्ह मुनिवरसुबुधि, शोभाबरनि न जाय ।
देव कोटि तैंतीस तहँ, हरषि भानु गुन गाय॥

॥ इति श्रीमहापुराणे नारदयशवर्णनो नाम अष्टमोऽध्यायः ॥8॥

सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद

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