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महीने के अनुसार सूर्य की उपासना

Sun worship according to month

सूर्यदेव * अचला सप्तमी * सूर्य षष्ठी - छठ पूजा * आदित्य हृदय स्तोत्र * सूर्य गायत्री मंत्र * सूर्य स्त्रोत इक्कीस नाम * महीने के अनुसार सूर्य की उपासना * सोलह कलाओं पर सूर्य के नाम * सूर्य के 31 नाम * द्वादश आदित्य * सूर्य ध्यान स्तुति एवं जप * सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद
 
अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी
 
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

सूर्यदेवजी की मासानुसार आराधना

सूर्य देव के 12 नाम उनके 12 अलग-अलग तरह के आकार-प्रकार और 12 महीनों मे बदलते स्वरूप के अनुसार पुराणो मे वर्णित है। प्रत्येक नाम के साथ भगवान सूर्य का रूप और वर्ण बदलता रहता है। जैसे एक दिन में भगवान भास्कर तीन अलग-अलग रूपों मे परिवर्तित होते रहते हैं और प्रत्येक स्वरुप के अलग ईश्वरीय नाम हैं -

उदये ब्रह्मणो रूपं मध्याहे तु महेश्वरः।
अस्तकाले स्वयं विष्णुस्वमूर्ति दिवाकरः॥

अर्थात :- उदय के समय वे ब्रह्मा के रूप हैं, दोपहर के समय वे महेश्वर हैं और सूर्यास्त के समय वे स्वयं विष्णु के रूप में सूर्य हैं।

ठीक उसी प्रकार से प्रत्येक हिन्दू माह में भगवान सूर्य के तेज़ मे परिवर्तन होता रहता है। अतः अलग-अलग हिन्दू महीने मे भगवान सूर्य को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। वर्ष के बारह महीनों में भगवान सूर्यदेवजी की आराधना पृथक-पृथक नामों से करने का विधान है, जो इस प्रकार है-

1 चैत्र मास में धाता सूर्य की आराधना की जाती है।

चैत्र मास में तपने वाले सूर्य देव का नाम धाता है। धाता सूर्य 8000 किरणों के साथ तपते हैं। चैत्र मास में "भानवे नमः" मंत्र से सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। इस मास में रविवार के दिन धाता की पूजा करने, अर्घ्य देने तथा नैवेद्य में घृत, पूरी तथा अनार चढ़ाने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। इस व्रत के दिन केवल दूध ही पीना चाहिए।

धाता सूर्य का ध्यान श्लोक :

धाता कृतस्थली हेतिर्वासुकी रथकृन्मुने पुलस्त्यस्तुम्बुरुरिति मधुमासं नयन्त्यमी ॥ १ ॥
धाता शुभस्य मे दाता भूयो भूयोऽपि भूयसः । रश्मिजालसमाश्रृिष्टस्तमस्तोमविनाशनः ॥ २ ॥

अर्थात- हम उस भगवान् सूर्य को नमन करते हैं जो चैत्र महीने में धाता नाम से जाने जाते हैं। वे अपने रथ पर अप्सरा कृतस्थली, पुलस्त्य ऋषि, वासुकी सर्प, रथकृत् यक्ष, हेति राक्षस और तुम्बुरु गंधर्व के साथ विराजमान रहते हैं।

2. वैशाख्र मास में अर्यमा सूर्य की आराधना की जाती है।

वैशाख मास में तपने वाले सूर्यदेव का नाम अर्यमा सूर्य है। यह सूर्य देव पितरों के अधिपति हैं। श्राद्ध पक्ष में पितरों की तुष्टि इन्हीं की तृप्ति से होती है। यज्ञ में मित्र और वरुण के साथ ये "स्वाहा" तथा श्राद्ध में "स्वधा" का दिया हव्य -कव्य दोनों स्वीकार करते हैं। रविवार के के दिन तक "तपनाय नमः" कहकर सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए। नैवेद्य में उड़द, घृत तथा अर्ध्य में अगिया मुनक्का देनी चाहिए। इनका वर्ण पीत होता है।

3. ज्येष्ठ मास में मित्र सूर्य की आराधना की जाती है।

ज्येष्ठ मास में सूर्य देव मित्र नाम से जाने जाते हैं। ज्येष्ठ मास में रविवार के दिन "मित्राय नमः" का जप करना चाहिए। नैवेद्य में सत्तू, दही व दलिया चढ़ाना चाहिए। ब्राह्मण को दही, चावल व आम के साथ साथ दक्षिणा भी देनी चाहिए। मित्र सूर्य की उपासना से कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है। उनका अरुण वर्ण होता है।

4. आषाढ़ मास में वरुण सूर्य की आराधना की जाती है।

आषाढ़ मास में पड़ने वाले सूर्य का नाम वरुण है। आषाढ़ मास में प्रत्येक रविवार को "रवये नमः" कहकर सूर्य की पूजा करनी चाहिए। नैवेद्य में चिउड़ा तथा अर्घ्य में जायफल देना चाहिए। ब्राह्मण को दहीभात का भोजन तथा दक्षिणा देनी चाहिए। वरुण पांच सहस्त्र किरणों से तपते हैं। वरुण आदित्य का उपासक कभी भी दरिद्रता का कष्ट नहीं भोगता। इनकी उपासना से पुत्र की प्राप्ति भी होती है। यह सूर्य देव समुद्रों के स्वामी हैं। इनका वर्ण श्याम है।

5. श्रावण (सावन) मास में इंद्र सूर्य की आराधना की जाती है।

श्रावण मास के अधिपति सूर्य का नाम इंद्र सूर्य है। इंद्र सूर्य सहस्त्र रश्मियों से तपते हैं। श्रावण मास में "इंद्राय नमः" कहकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने वाले पर स्वयं भगवान सूर्य प्रसन्न होकर उन्हें ऐश्वर्य तथा विद्या की प्राप्ति देते हैं। "गभस्तयो नमः" कहकर श्रावण के सूर्य की करवीर पुष्प से पूजा करनी चाहिए। नैवेद्य में सत्तू, पूरी तथा खीरा चढ़ाना चाहिए। ब्राह्मण को रविवार के दिन भोजन तथा दक्षिणा देनी चाहिए। इनका वर्ण श्वेत है।

6. भाद्रपद मास में विवस्वान सूर्य की आराधना की जाती है।

भाद्रपद में तपने वाले सूर्यदेव का नाम विवस्वान है। विवस्वान सूर्य दस सहस्त्र रश्मियों से तपते हैं। भगवान सूर्य का यह स्वरूप साक्षात अग्निदेव का ही है। अग्नि को ही विवस्वान कहते हैं। भाद्रपद मास में प्रत्येक रविवार को व्रत रखकर भगवान विवस्वान को अर्घ्य देना चाहिए तथा "यमाय नमः" कहकर चावल, घृत तथा कुम्हड़ा चढ़ाना चाहिए। इनकी कृपा से बुद्धि और यश की प्राप्ति होती है।

7. आश्विन मास में पूषा सूर्य की आराधना की जाती है।

आश्विन मास में पूषा सूर्य की आराधना की जाती है। पूषा सूर्य छह सहस्त्र रश्मियों से तपते हैं। भगवान सूर्य के पूषा रूप अन्न में रहकर प्रजाजनों की पुष्टि करते हैं। अश्विन मास के प्रत्येक रविवार को "हिरण्यरेतसे नमः" कहकर पूषा सूर्य की पूजा करनी चाहिए। नैवेद्य में चीनी तथा अनार चढ़ाना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन, चावल तथा चीनी देनी चाहिए।

8. कार्तिक मास में पर्जन्य सूर्य की आराधना की जाती है।

कार्तिक मास में तपने वाले सूर्य का नाम पर्जन्य सूर्य है। पर्जन्य सूर्य 9000 रश्मियों से तपते हैं। सूर्य देव का पर्जन्य विग्रह बादलों में स्थित होकर अपनी किरणों द्वारा वर्षा करते हैं। कार्तिक मास के प्रत्येक रविवार को अगस्त्य पुष्प तथा अपराजित धूप के द्वारा इनकी पूजा करनी चाहिए। नैवेद्य के स्थान पर गुड़ के बनाए हुए पुए तथा ईख का रस अर्थात गन्ने का रस चढ़ाना चाहिए। उसी नैवेद्य के द्वारा ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा आदि देनी चाहिए। कार्तिक मास में जो सूर्य देव के मंदिर में दीप दान करता है उसे संपूर्ण यज्ञों का फल प्राप्त होता है तथा वह सूर्य की भांति तेजस्वी हो जाता है। जो पुरुष कार्तिक मास में सूर्य मंदिर में दीप दान करता है वह आरोग्य, धन, बुद्धि व उत्तम संतान और पूर्वजन्म की स्मृति पाता है। इसलिए कार्तिक मास में भक्तिपूर्वक भगवान सूर्य का स्मरण क्रते हुए दीप दान करना चाहिए।

9. मार्गशीर्ष (अगहन) मास में अशुमा सूर्य की आराधना की जाती है।

मार्गशीर्ष मास में अशुमा सूर्य की आराधना करनी चाहिए। अशुमा सूर्य नौ सहस्त्र किरणों से तपते हैं। अशुमा सूर्य मार्गशीर्ष मास के अधिपति हैं। इनका तत्व वायु में ही समाहित रहता है। मार्गशीष मास में प्रत्येक रविवार को व्रत रखना चाहिए तथा भगवान सूर्य को नैवेद्य में चावल, घृत तथा गुड़ के साथ नारियल चढ़ाना चाहिए।

10. पौष (पूष) मास में भग सूर्य की आराधना की जाती है।

पौष मास में भग नामक सूर्य की आराधना करने का विधान है। 11000 रश्मियों से तपने वाले भगवान भग का वर्ण रक्तवर्ण है। भगवान सूर्य के भग विग्रह ऐश्वर्य रूप से समस्त सृष्टि में निवास करते हैं। पौष मास के प्रत्येक रविवार को "विष्णवे नमः" कहकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। नैवेद्य में भगवान सूर्य को तिल, चावल की खिचड़ी तथा अर्घ्य में बिजोरा निंबू देना चाहिए।

11. माघ मास में त्वष्टा सूर्य की आराधना की जाती है।

माघ मास में त्वष्टा सूर्य की आराधना का विधान है। त्वष्टा सूर्य 8000 रश्मियों से तपते हैं। भगवान सूर्य के चौथे विग्रह का नाम त्वष्टा है। यह संपूर्ण वनस्पतियों तथा औषधियों में स्थित रहते हैं। त्वष्टा सूर्य हस्तशिल्प के अधिदेवता हैं। अपने शिल्प कर्म की उन्नति के लिए हिंदू शिल्पी भाद्रपद की सक्रांति को इन्ही की आराधना करते हैं।

12. फाल्गुन मास में विष्णु सूर्य की आराधना की जाती है।

फाल्गुन मास में विष्णु सूर्य की आराधना का विधान है। विष्णु सूर्य छह सहस्त्र रश्मियों से तपते हैं। फाल्गुन के सूर्य का नाम विष्णु है। फाल्गुन मास में पहुंचते-पहुंचते सूर्य शक्ति संपन्न हो जाते हैं। वह ठंड से सिकुड़ी हुई सृष्टि में शक्ति का संचार करते हैं। उनकी उत्पादक शक्ति प्रखर हो जाती है। फाल्गुन मास में पयोव्रत द्वारा विष्णु रुपी आदित्य की उपासना करने से सूर्य के समान यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है।

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