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गोस्वामी तुलसी दास रचित सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना

Surya Mahatmya - Fifth Chapter Narada fascination by seeing a naked girl

सूर्यदेव * अचला सप्तमी * सूर्य षष्ठी - छठ पूजा * आदित्य हृदय स्तोत्र * सूर्य गायत्री मंत्र * सूर्य स्त्रोत इक्कीस नाम * महीने के अनुसार सूर्य की उपासना * सोलह कलाओं पर सूर्य के नाम * सूर्य के 31 नाम * द्वादश आदित्य * सूर्य ध्यान स्तुति एवं जप * सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद
 
अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी
 
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

गोस्वामी तुलसी दास रचित सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना

श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।

पंचम अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन

चौपाई

ऐसी महिमा आदित देवा ।
करहिं जासु सुरनर श्रुनि सेवा॥

मिटै गाढ़ निश्चय मन तासू  ।
पुलक प्रेम मन हरष हुलासू ॥

दीनानाथ निरञ्जन राई।
महिमा जाकर बरनि न जाई॥

सूर्य कथा मैं कहौं बखानी ।
मन अस्थिर कर सुनहु भवानी॥

करै दण्डवत अरु व्रत ध्याना ।
सो तनु ले यहि कथा समाना ॥

तेज प्रताप बरनि नहिं जाई।
सूर्यचरित्र सुनहु मन लाई ॥

कहौं सुभग यह कथा पुनीता।
रवि प्रताप मैं भयो अजीता ॥

दोहा

जो महिमा आदित्य की, बरनौं प्रेम उछाह ।
सुनहु उमा अति पुलकि तन, कीरति प्रभु अवगाह ॥

कहौं पुनीत कथा शुभ वानी ।
बहुरि महातम सुनहू भवानी॥

कार्तिक चैत पुनीत दिनभारी ।
साजहु अरघ सकल नर नारी ॥

चन्दन अगर कपूर की बाती ।
पूजा भक्ति करै बहुभाँती ॥

तेहि कल्याण करें भगवाना ।
तेज पुञ्ज प्रभु कृपानिधाना ॥

दोहा

लीला अगम अपार प्रभु कृपासिन्धुभगवान।
बरणों कथा पुनीत यह, मन स्थिर करि ध्यान॥

चौपाई

सुनहु उमा यह चरित अपारा ।
भानु महातम बहु बिस्तारा ॥

सिंहल द्वीप नगर एक नाऊ ।
तहाँ निवास परीक्षित राऊ ॥

तहाँ पुनीत धर्म नर नारी ।
तासु भवन एक सुता कुमारी ॥

करै सो निन्य भानु की पूजा।
सेवै सूर्य और नहिं दूजा ॥

श्रद्धा नेम कथा मन लाई ।
करै हर्ष सो शुभ दिनराई ॥

तासु भवन प्रभु करें कलेवा।
तीन लोक नहिं जानै भेवा ॥

एक समय अति अचरज भयऊ।
सुरसरि तीर गमन तेहि ठयऊ॥

चीर उतारि भूमि पर धरेऊ ।
कन्या पग जल भीतर करेऊ॥

अज्ञ्जन करन लागि सो बाला।
हिंये विराजत मोती माला ॥

तेहि अवसर नारद मुनि आये।
कन्या देखि परम सुख पाये॥

ठाढ़ भये सुनि सुरसरि तीरा।
लीन्ह उठाय सुता कर चीरा॥

कन्या जल में कही पुकारी ।
पट दीजै मुनि धर्म विचारी॥

 कह नारद सुनु कन्या बाता ।
मोसन करहु पुरुष कर नाता ॥

सुनु मुनि ज्ञान भये तुम बौरा।
ऐसे बचन कही जनि औरा॥

अस बानी कस कहेउ मुनीसा ।
हम सम कन्या लाख पचीसा

बिनती और सुनहु मम बानी।
देउ बसन हे मुनि विज्ञानी

दोहा

नग्ननारि जल महँ खड़ी, कह मुनि सों करजोरि।
कृपासिन्धु ज्ञाता धरम, अम्बर दीजै मोरि ॥

चौपाई

जब कन्या बहु विनती गाई।
तेहि क्षण नारद रहे लजाई॥

अंबर दे मुनि भवन सिधाये।
तहँ तबहीं श्रीशङ्कर आये ॥

सो सुनि मुनिहिं शापवशकीन्हा ।
सो आदित सों कहबे लीन्हा॥

जहँ मैं करत रही असनाना।
अम्बर ले गये मुनि विज्ञाना॥

ताही क्षण शिव तहां सिधारे ।
गौर बदन सङ्ग गिरिजा धारे॥

शक्ति सहित प्रभु नाये माथा ।
हर्षि शंभु देखा मुनि नाथा ॥

कुशल कहा सुनि शिव मुसकाई।
बैठन कहि सब कथा बुझाई ॥

पूछा प्रभु तब शिव कर जोरी।
नाथ सुनहु यह बिनती मोरी ॥

कह अपराध कीन्ह मुनि भारी ।
सो अब मोसन कहहु बिचारी॥

तब प्रभु कहा सुनहु हो भोरा।
यह कन्या सेवक है मोरा॥

कारण सोइ श्राप सब दयऊ ।
तुरतै अङ्ग बरन मुनि लयऊ॥

इतना कहि मुनि मन मुसकाना ।
ज्ञानहीन तब मुनि पहचाना ॥

बैन सुनत प्रभु क्रोधित भयऊ ।
कन्या सँग लै मुनि पहँ गयऊ॥

दोहा

बचन सुनत क्रोधित भये, क्रोध न हियेसमाय।
कौतुक कीन्ह अयुक्त तुम, मोसन कह हुबुझाय॥

जोरि पाणि सुनि बचन सुनाए।
धरि पद कमल सूर्य गुण गाए॥

कह मुनि सुन प्रभु बचन हमारी ।
भा मोसन अपराध है भारी॥

यह अपराध क्षमा प्रभु कीजै।
दीनानाथ अनुग्रह कीजै॥

तब प्रभु कहा सुनो मम बानी ।
उतके लोग सकल अज्ञानी॥

तेहि अपराध लेहु मुनि शापा ।
जस कीन्हेउ तस भोगहु पापा॥

दोहा

त्रिभुवन स्वामी मोहिं पर, करहू ज्योतिप्रकाश।
हर्षित गावहिं गुन विमल, जहां भोर भवबास।।

॥  इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्यवर्णनो नाम पञ्चमोऽध्यायः॥5॥

 

सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद

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सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना Surya Mahatmya - Fifth Chapter Description of the Sun's glory