सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास
Surya Mahatmya - Tenth Chapter Twelve months
सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास
श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।
दसवाँ अध्याय बारह मास
चौपाई
बोली तबहिं उमा हरषाई ।
दया करहु कछु कहीं गुसाई॥
जेहि सेवा करि नर सुख पावें ।
जाहिं भजे शुभ गति नर पावैं ॥
रवि महिमा अति अगम अपारा।
कहिये नाथ कथा विस्तारा॥
जासो भक्ति मिले सवधानी ।
कथा प्रसङ्ग सब कहहु बखानी॥
अति उत्तम जस रहि अवगाहा ।
सो प्रभु वरणौं सहित उछाहा॥
कस स्वरूप किमि रूपहिं करहीं ।
किमि सीतल किमि तेजहिं धरहीं ॥
कहि प्रतिमानस उदय गोसाई ।
किमि व्रत किरन मोक्ष हिं पाई॥
सोइ सत्य सब कहौं विचारी।
जेहि सुनि होइ ज्ञान अधिकारी॥
अस कहि शिवपद बंदन कीन्हा ।
हरषि शम्भु हरि सुमिरन कीन्हा ॥
दोहा
धन्य-धन्य गिरिजा सुनहु, पूछे उजग हित लाग।
रवि चरित्र पावन परम, सुनहु सहित अनुराग।।
चौपाई
रत्रि मंडप कर सुन विस्तारा ।
जेहि विधि सब स्थूल अपारा॥
द्वादस सहस जोजन चहुँ फेरा।
रवि मंडल जानहुँ शुभ डेरा॥
अति उत्तम जग तेज अपारा।
गये समीप न होय उबारा ॥
दश सहस्र रवि नयन गनाये ।
अति विशाल कहि देवन गाये॥
उदय होत त्रिभुवन तम भागे ।
तासन यह नित नित वर माँगे ॥
पारब्रह्म साखी सहिं जाने।
सुमिरत हिये ध्यान उर आने ॥
उदय होत विधि रूपहि जानो ।
मध्य विष्णु को रूप बरखानो ॥
सन्ध्या रूप रुद्र गति केरी ।
तीन काल तब मूरत टेरी॥
यह अनुमान सदा पद बंदिये ।
निश्चै करि विश्वास अनंदिये॥
पावहिं गति ते नर बड़भागी।
जाके कमल चरण लव लागी॥
दोहा
यहि विधि जाने उ है उमा, रवि पूजा जेहि हेतु ।
सिद्ध तासु मनकामना चारि पदारथ देतु ॥
चौपाई
और सुनहु प्रभु की प्रभुताई।
सूर्य-कथा सब देवन गाई॥
द्वादस तन धरि वेद बखाने ।
द्वादश कथा उद्योत विधाने ॥
द्वादस मास के द्वादस नाना ।
उदय करै रवि जग सुख धामा॥
माघ मास नासन महँ नीका।
कह श्रुति सब पासन महँ टीका॥
नजर उदय कहि वरुन समाना ।
भक्तो ज्ञान ध्यान करजामा॥
चैत मीन रवि उदय कराहीं।
नामदेव जग जाने ताहीं॥
मास हिं मेष भानु तप होई।
उच्च नाम रवि करि हैं सोई ॥
दोहा
इन्द्रनाम व्रत जेष्ठ तप, सब प्रकार सुख देहिं ।
रवि असाढ़ तपकर मिथुन, जासु नाम जपलेहिं ॥
चौपाई
सावन करक नाम रवि केरा।
भादौं सहि भवन का फेरा॥
आश्विन कन्या राशि विराजे ।
सुरतर नित्यनाम सुभ छाजै ॥
कातिक तुला दिवाकर नामा।
उदय करहिं विजय सुखधामा॥
मार्गशीर्ष वृश्चिक हिं सुनाई।
मित्रदास सब जग सुखदाई ॥
पूषमास धनराशि गनाये ।
विष्णु सनातन नाम कहाये॥
यहि विधि द्वादस मास के माहीं ।
मास मास प्रति उदद्य कराहीं॥
औरो बेद कहै जस बानी।
मास मास प्रति उदय भवानी ॥
दोहा
सुनो उमा सकल व्रत, दिन कर याहि विधान ।
जाहि करै शुभ गति मिले, गावै वेद पुरान ॥
॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्यवर्णनो नाम दशमोऽध्यायः ॥10॥
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