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सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन

Surya Mahatmya - Seventh Chapter Description of the Sun rising in the east

सूर्यदेव * अचला सप्तमी * सूर्य षष्ठी - छठ पूजा * आदित्य हृदय स्तोत्र * सूर्य गायत्री मंत्र * सूर्य स्त्रोत इक्कीस नाम * महीने के अनुसार सूर्य की उपासना * सोलह कलाओं पर सूर्य के नाम * सूर्य के 31 नाम * द्वादश आदित्य * सूर्य ध्यान स्तुति एवं जप * सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद
 
अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी
 
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन

श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।

सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन

चौपाई

गिरिजा कहयो जो कहा गुसाई ।
सो मोहिं अर्थ कहो समुझाई॥

कहन लगे शिव कथा रसाला ।
जेहि विधि ऊगहिं पूर्व कृपाला॥

गिरिजा सुनो कथा मनलाई ।
मैं तोहिं अर्थ कहौं समुझाई॥

पूर्व दिशा एक श्रीपुर देशा।
तहँ के राजा भूप महेशा ॥

सदा करे आदित की पूजा।
सेवे सूर्य और नहिं दूजा॥

यहि विधि सकल नगर उँजियारा।
तहाँ एक है अगम अपारा॥

सरस कोस परवत परमाना।
बसै तहाँ आदित बलवाना॥

उगें जाय तहँ करें निवासा।
पुनिपश्चिमदिशि करहिं प्रकाशा॥

मन बच कर्म कथा बर गाई।
सूर्य चरित विधि तुमहिं सुनाई॥

सुनि गिरिजा सुन्दर बर बानी ।
बल प्रताप सुनि मन हरषानी॥

धन्य भानु जिनकी यह लीला।
धर्म धुरन्धर परम सुशीला॥

जो नर कथा सूर्य की गावै ।
चढ़ि विमान वैकुण्ठ सिधावै॥

सूर्य चरित सुनि अमृत बानी।
अस्तुति हर्षित करें भवानी ॥

छंद

हे जगस्वामीअन्तरयामी ज्योतिकलछाविउदितमहा ।
गुन गीत निधाना श्रीभगवाना करो कृपा हेधर्ममहा ।।
छविज्योतिविराजैकु डलराजै तव प्रतापमहिमाबरना।
तव हत घनेरा सब प्रभु तेरा लेत नाम पातक हरना ।।

दोहा

करहु कृपा अब मोहिंपर, अतिछविज्योतिविराज।
तेज विपुलतिहुँलोकमहँ, जय जयजय महराज ॥

॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्ये पूर्वदिशि उदयवर्णनो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥7॥

 

सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद

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सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन Surya Mahatmya - Seventh Chapter Description of the Sun rising in the east