सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन
Surya Mahatmya - Seventh Chapter Description of the Sun rising in the east
सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन
श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।
सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन
चौपाई
गिरिजा कहयो जो कहा गुसाई ।
सो मोहिं अर्थ कहो समुझाई॥
कहन लगे शिव कथा रसाला ।
जेहि विधि ऊगहिं पूर्व कृपाला॥
गिरिजा सुनो कथा मनलाई ।
मैं तोहिं अर्थ कहौं समुझाई॥
पूर्व दिशा एक श्रीपुर देशा।
तहँ के राजा भूप महेशा ॥
सदा करे आदित की पूजा।
सेवे सूर्य और नहिं दूजा॥
यहि विधि सकल नगर उँजियारा।
तहाँ एक है अगम अपारा॥
सरस कोस परवत परमाना।
बसै तहाँ आदित बलवाना॥
उगें जाय तहँ करें निवासा।
पुनिपश्चिमदिशि करहिं प्रकाशा॥
मन बच कर्म कथा बर गाई।
सूर्य चरित विधि तुमहिं सुनाई॥
सुनि गिरिजा सुन्दर बर बानी ।
बल प्रताप सुनि मन हरषानी॥
धन्य भानु जिनकी यह लीला।
धर्म धुरन्धर परम सुशीला॥
जो नर कथा सूर्य की गावै ।
चढ़ि विमान वैकुण्ठ सिधावै॥
सूर्य चरित सुनि अमृत बानी।
अस्तुति हर्षित करें भवानी ॥
छंद
हे जगस्वामीअन्तरयामी ज्योतिकलछाविउदितमहा ।
गुन गीत निधाना श्रीभगवाना करो कृपा हेधर्ममहा ।।
छविज्योतिविराजैकु डलराजै तव प्रतापमहिमाबरना।
तव हत घनेरा सब प्रभु तेरा लेत नाम पातक हरना ।।
दोहा
करहु कृपा अब मोहिंपर, अतिछविज्योतिविराज।
तेज विपुलतिहुँलोकमहँ, जय जयजय महराज ॥
॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्ये पूर्वदिशि उदयवर्णनो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥7॥
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