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सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन

Surya Mahatmya - Sixth Chapter Description of the Sun's glory

सूर्यदेव * अचला सप्तमी * सूर्य षष्ठी - छठ पूजा * आदित्य हृदय स्तोत्र * सूर्य गायत्री मंत्र * सूर्य स्त्रोत इक्कीस नाम * महीने के अनुसार सूर्य की उपासना * सोलह कलाओं पर सूर्य के नाम * सूर्य के 31 नाम * द्वादश आदित्य * सूर्य ध्यान स्तुति एवं जप * सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद
 
अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी
 
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन

श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।

षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन

चौपाई

पंपापुर एक नगर को नाऊ ।
हलधर विप्र तहाँ एक राऊ॥

नगर बसै मानो कैलाशा ।
धर्म कथा तहँ होइ प्रकाशा॥

पूजन करै भानु दिन राती ।
निस दिन टेक धरे बहु भाँती॥

कोटि अग्नि चारहु दिशि माहीं ।
श्री सूर्य को आश्रम ताहीं॥

रत्न जड़ित सर तहाँ सुहावा ।
कनक घाट चहुँ ओर बनावा॥

तहाँ खंभ एक परम विशाला ।
शतयोजन सो ऊँच रसाला॥

तेहि खंभ आदित कर वासा ।
जात खंभ सो लाग अकासा॥

जोजन लक्ष सों उदय कराहीं ।
जोजन सहस एक पल जाहीं ॥

प्रात होत उदयाचल पासा ।
अस्ताचल पर करहिं निबासा॥

आदित कथा सुनहु मन लाई।
मैं तोहि अर्थ कहीं समुझाई॥

दोहा

धन्य भानु ईश्वर प्रभू, महिमा अगम अपार ।
तीन लोक छबि ज्योतिमय, है जाकर उजियार ।
कुष्ठी ध्यावे भक्ति कर, पावे काया दान ।
अन्तरयामी दयानिधि, कृपा कर हिंभगवान ॥

सुरनरमुनि अस्तुति कर हि, होउ प्रसन्न भगवान।
जा हित मन व्रत नर करें, श्रद्धा प्रीति समान ॥
सब गुण आगर बुद्धिवर, सुन्दर सील निधान ।
मन बच कर्म ते हषयुत, जो नर करहिं बखान ।

॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्ये षष्ठोऽध्यायः ॥6॥

सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद

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