सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन
Surya Mahatmya - Sixth Chapter Description of the Sun's glory
सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन
श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।
षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन
चौपाई
पंपापुर एक नगर को नाऊ ।
हलधर विप्र तहाँ एक राऊ॥
नगर बसै मानो कैलाशा ।
धर्म कथा तहँ होइ प्रकाशा॥
पूजन करै भानु दिन राती ।
निस दिन टेक धरे बहु भाँती॥
कोटि अग्नि चारहु दिशि माहीं ।
श्री सूर्य को आश्रम ताहीं॥
रत्न जड़ित सर तहाँ सुहावा ।
कनक घाट चहुँ ओर बनावा॥
तहाँ खंभ एक परम विशाला ।
शतयोजन सो ऊँच रसाला॥
तेहि खंभ आदित कर वासा ।
जात खंभ सो लाग अकासा॥
जोजन लक्ष सों उदय कराहीं ।
जोजन सहस एक पल जाहीं ॥
प्रात होत उदयाचल पासा ।
अस्ताचल पर करहिं निबासा॥
आदित कथा सुनहु मन लाई।
मैं तोहि अर्थ कहीं समुझाई॥
दोहा
धन्य भानु ईश्वर प्रभू, महिमा अगम अपार ।
तीन लोक छबि ज्योतिमय, है जाकर उजियार ।
कुष्ठी ध्यावे भक्ति कर, पावे काया दान ।
अन्तरयामी दयानिधि, कृपा कर हिंभगवान ॥
सुरनरमुनि अस्तुति कर हि, होउ प्रसन्न भगवान।
जा हित मन व्रत नर करें, श्रद्धा प्रीति समान ॥
सब गुण आगर बुद्धिवर, सुन्दर सील निधान ।
मन बच कर्म ते हषयुत, जो नर करहिं बखान ।
॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्ये षष्ठोऽध्यायः ॥6॥
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