सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन
Surya Mahatmya - First Chapter Description of a barren woman
सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन
श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।
प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन
दोहा
बन्दि कञ्जपद जोरि कर, श्रीपति गौरिगणेश।
तुलसिदास कहते सुयश बरणौं कथा दिनेश ॥
बन्दों चरणन हृदय धरि, प्रेत भक्ति मन लाइ।
महिमा अगम अपार है, साहब ज्ञान सहाइ ॥
चौपाई
सूर्य देवता सुमिरौं तोहीं ।
सुमिरत ज्ञानबुद्धि देहु मोहीं ॥
ज्योतिस्वरूप भानु बलवाना।
तेज प्रताप है अग्नि समाना॥
तुम आदित परमेश्वर स्वामी ।
अलख निरञ्जन अन्तरयामी ॥
वरणि न जाय ज्योतिकर लीला ।
धर्म धरन्धर परम सुशीला ॥
ज्योतिकला चहुँओर विराजै ।
जगमग कानन कुण्डल छाजै ॥
नील बरण बर है असवारी ।
ज्ञान निधान धर्म व्रतधारी॥
तासु कथा मैं कहा बखानी ।
पुरुषोत्तम आनन्द घर ज्ञानी ॥
आदित महिमा अगम अपारा ।
तीन भुवन जेहि रवि उजियारा ।
दोहा
आदित कथा पुनीत अति, गावहि शम्भुसुजान।
तीन लोक छवि ज्योतिमय, करौं प्रताप बखान॥
चौपाई
सुनहु उमा आदित परतापा ।
बरौं विमल सूर्यकर जापा ॥
नाम महातम सुनहु भवानी ।
कहौं पुनीत कथा शुभ बानी॥
बाँझ सुनै एक मास पुराना ।
मन क्रम बचन धरे व्रत घ्याना ॥
द्वादश वर्ष रहै इतवारा ।
नेम धर्म एक मधुर अहारा॥
कुशा बिछाइ जरै विश्रामा ।
हर्षित जपे सूर्य कर नामा॥
आदित वासर जबहीं आवै ।
सुन पुराण अरु विप्र जिमावै॥
इतनी टेर घरे तिय जबहीं।
होहिं दयाल दयानिधि तबहीं॥
होहिं पाँच सुत अग्नि समाना ।
धर्म धुरंधर ज्ञान निधाना॥
तिनसों जीति सके नहिं कोई ।
विद्यावान सुलक्षण होई॥
दोहा
बांझ कथा मनलाइके, टेक थरे व्रत ध्यान ।
निश्चय इपज पांच सुत, योधा अग्नि समान ॥
॥ इति श्रीमहापुराणे गोस्वामी तुलसीदासकृत सूर्यमाहात्म्ये वन्ध्या स्त्री वर्णनो नाम प्रथमोऽध्यायः ॥ 1 ॥
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