सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण
Surya Mahatmya - Second Chapter Leprosy Cure
सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण
श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।
दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण
चौपाई
कथा कहौं रवि अमृतवानी ।
मन अस्थिर कर सुनहु भवानी॥
कुष्ठ बरन हो जाके अङ्गा ।
सुने मनुज सो भानु प्रसङ्गा॥
रवि दिन भोजन करे अलोना ।
पुष्प सुवास चढ़ावै दोना॥
विप्र बोलि रवि होम करावें ।
सो भस्म ले अङ्ग लगावै॥
निश्चय कुष्ट बरन छय जाई।
धनि महिमा है सूर्य गोसाई॥
दोहा
जाके कुष्ठ शरीर में, सो नित सुनै पुरान ।
निश्चय सूर्य प्रताप से, पावे कायादान ॥
चौपाई
सूर्य कथा मैं कहौं बखानी।
मन स्वतन्त्र होइ सुनहु भवानी॥
जाके बरण अङ्ग महँ होई।
सूरज कथा पाठ कर सोई॥
करै पांच व्रत हर इतवारां ।
नेम धर्म एक मधुर अहारा॥
चन्दन अगर लेप तन करई ।
निसदिन ध्यान सूर्य पर धरई ॥
भानु चरित्र सनै मनलाई ।
निश्चय कुष्ठबरन क्षय जाई॥
दोहा
जाके उपजे कुष्ठ जो, सो नित सुने पुरान ।
धनि महिमा आदित्य की करौं प्रताप बखान ॥
॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्ये कुष्ठनिवारणे नाम द्वितीयोऽध्यायः ॥2॥
***********