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सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन

Surya Mahatmya - Ninth Chapter Description of Kali in the Sun's glory

सूर्यदेव * अचला सप्तमी * सूर्य षष्ठी - छठ पूजा * आदित्य हृदय स्तोत्र * सूर्य गायत्री मंत्र * सूर्य स्त्रोत इक्कीस नाम * महीने के अनुसार सूर्य की उपासना * सोलह कलाओं पर सूर्य के नाम * सूर्य के 31 नाम * द्वादश आदित्य * सूर्य ध्यान स्तुति एवं जप * सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद
 
अचला सप्तमी रथ सप्तमी सूर्यरथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी सौर सप्तमी अर्क सप्तमीऔर भानुसप्तमी
 
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन

श्रीमहापुराण सूर्य माहात्म्य की रचन गोस्वामी तुलसी दास जी ने की है। इसमें कुल बारह अध्याय हैं।

नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन

चौपाई

जो नर धरै सूर्य पर ध्याना ।
ताके होइ पुत्र कल्याना॥

जो रवि कथा सुनै मन लाई ।
तापर दिनकर होइ सहाई॥

धर्म प्रताप आदित बलवाना ।
तेज प्रताप है अग्नि समाना॥

हे गिरिजा सुनु शैलकुमारी ।
कहिहौं भानु चरित विस्तारी॥

कहन लगे शिव कथा रसाला ।
जेहि विधि दक्षिण उगहिं कृपाला॥

वर्णन करहिं अर्थ समुझाई।
सुमहु सत्य गिरिजा मन लाई॥

दक्षिण दिशि एक नगर अनूपा।
जलमय विप्र तहाँ कर भूपा ॥

हर्षित भजन करै दिन राती।
तहाँ करै प्रभु सुख बहुँ भाँती॥

यहि विधि प्रभुकी ज्योति विराजे ।
अनहद नाद घट धुनि बाजे॥

तेंतिस कोटि देवता जहँवाँ ।
श्री सूर्य के आश्रम तहँवाँ॥

दक्षिण दिशि काशी परियागा।
तहँ के लोग सकल बड़भागा॥

दो बलभद्र सहोदर संगा।
तहाँ बहें सरितावर गङ्गा ॥

कृपासिन्धु प्रभु परम अगाधा ।
निशिदिन सुमिरतनाथ अबाधा॥

दोहा

दक्षिण दिशा पुनीत है, सुनहु उमा मनलाय ।
सुभग अर्थ जैसे अहै, तैसे कहों बुझाय ॥

चौपाई

कलि व्यतीत जबहीं ह्वै जैहैं।
मानुप को मानुष धरि खैं हैं ॥

तब प्रभु धरि अवतार कलंकी ।
मानुष तन हो जैहैं तंखी ॥

तब दक्षिण दिशि उदय कराहीं ।
आगिल अर्थ कहौं तुम पाहीं ॥

धर्म कथा गइहैं दिन राती ।
नेम धर्म करि हैं बहु भाँती ॥

विप्र जेंवाय के होम करावै ।
वाहि भस्म लै अंग लगावै ॥

यहि प्रति कमला करहिं निवासा।
धर्म कथा कर होइ प्रकाशा ॥

मिथ्या बचन कोय ना भाषै।
घम विचार भानु तप राखै ॥

दोहा

द्वादश कला उगहिं तब, आदि अंत तब आय ।
पूर्वजन्मके सकल अघ, कहत सुनत क्षयजाय॥

॥ इति श्रीमहापुराणे सूर्यमाहात्म्ये कलिवर्णनो नाम नवमोऽध्यायः ॥9॥

सूर्य माहात्म्य - प्रथम अध्याय वन्ध्या स्त्री वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दूसरा अध्याय कुष्ठ निवारण * सूर्य माहात्म्य - तीसरा अध्याय अंधे को दृष्टि मिलना * सूर्य माहात्म्य - चौथा अध्याय मनोवांछित फल मिलना * सूर्य माहात्म्य - पंचम अध्याय नारद का नग्न युवती देख मोहित होना * सूर्य माहात्म्य - षष्ठ अध्याय सूर्य माहात्म्य वर्णन * सूर्य माहात्म्य - सप्तम अध्याय सूर्य के पूर्व दिशा में उदय होने का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - अष्टम अध्याय नारद का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - नौवां अध्याय सूर्य माहात्म्य में कलि का वर्णन * सूर्य माहात्म्य - दसवाँ अध्याय बारह मास * सूर्य माहात्म्य - ग्यारहवाँ अध्याय व्रत विधान * सूर्य माहात्म्य - बारहवाँ अध्याय उमामहेश्वर संवाद

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