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श्री बगलामुखी कीलक स्तोत्रम्

Baglamukhi Keelak Stotram

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श्री बगलामुखी कीलक स्तोत्रम् अपनी देह एवं स्थान रक्षा हेतु, शत्रु का विनाश एवं शत्रु  पर विजय प्राप्ति हेतु
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

श्री बगलामुखी कीलक स्तोत्रम्

अपनी देह एवं स्थान रक्षा हेतु, शत्रु का विनाश एवं शत्रु पर विजय प्राप्ति हेतु श्री बगलामुखी कीलक स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। शासक वर्ग द्वारा यह बहुधा प्रयोग में लाई जाती है।

ह्रीं ह्रीं ह्रींकारवाणे रिपुदलदलने घोरगम्भीरनादे।
ह्रीं ह्रींकाररूपे मुनिगणनमिते सिद्धिदे शुभ्रदेहे ॥
भ्रों भ्रों भ्रोंकारनादे निखिलरिपुघटात्रोटने लग्नचित्ते।
मातर्मातर्नमस्ते सकलभयहरे नौमि पीताम्बरे त्वाम् ॥ १ ॥

क्रौं क्रौं क्रौंमीशरूपे अरिकुलहनने देहकीले कपाले ।
हस्त्रौं हस्त्रौं स्वरूपे समरसनिरते दिव्यरूपे स्वरूपे ॥
ज्रौं ज्रौं जौं जातरूपे जहि जहि दुरितं जम्भरूपे प्रभावे।
कालि कङ्कालरूपे अरिजनदलने देहि सिद्धिं परां मे॥ २॥

हस्त्रां हस्त्रीं च हस्स्रे त्रिभुवनविदिते चण्डमार्त्तण्डचण्डे ।
ऐं क्लीं सौं कौलविद्ये सततशमपरे नौमि पीतस्वरूपे ॥
द्रौं द्रौं द्रौं दुष्टचित्ताऽऽदलनपरिणतबाहुयुग्मत्वदीये ।
ब्रह्मास्त्रे ब्रह्मरूपे रिपुदलहनने ख्यातदिव्यप्रभावे॥ ३॥

टं ठं ठंकारवेशे ज्वलनप्रतिकृतिज्वालमालास्वरूपे ।
धां धां धां धारयन्तीं रिपुकुलरसनां मुद्गरं वज्रपाशम् ।
मातर्मातर्नमस्ते प्रबलखलजनं पीडयन्तीं भजामि ।
डां ड डां डाकिन्याद्यैर्डिमकडिमडिमं डमरुकं वादयन्तीम् ॥ ४ ॥

वाणीं व्याख्यानदात्रीं रिपुमुखखनने वेदशास्त्रार्थपूताम् ।
मातः श्री बगले परात्परतरे वादे विवादे जयम् ॥
देहि त्वं शरणागतोऽस्मि विमले देवि प्रचण्डोद्धृते ।
माङ्गल्यं वसुधासु देहि सततं सर्वस्वरूपे शिवे ॥ ५ ॥

निखिलमुनिनिषेव्यं स्तम्भनं सर्वशत्रोः ।
शमपरमिह नित्यं ज्ञानिनां हार्दरूपम् ॥
अहरहरनिशायां यः पठेद्देवि कीलम् ।
भवति परमेशो वादिनामग्रगण्यः ॥ ६ ॥

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