नवरात्रि हवन की विधि - Method of Navratri Havan
नवरात्रि हवन की सरल विधि Method of Navratri Havan
नवरात्र में नवमी के दिन हवन किया जाता है। अगर आपने कोई मंत्र जाप किया है तो उसके योग का दसवाँ हिस्सा हवन में आहुति देते हैं। अगर सिर्फ पाठ किया है तो 108 बार आहुति दें। घर के जो छोटे बच्चे हैं उनसे 5 बार आहुति दिला कर छोड़ दें।
अब दसवाँ हिस्सा को समझिये - यदि आपने यदि सवा लाख मंत्र जपे हैं तो दस प्रतिशत, यानी 12,500 आहुतियां उसी मंत्र को पढ़ते हुए दें। परंतु ये बाध्यता तभी है जब आपने संकल्प लेकर जप आरंभ किया था। यदि संकल्प लेकर आरंभ नहीं किया था तो यह बाध्यता नहीं है। यदि साढ़े बारह हजार आहुतियां देनी हैं तो जरूरी नहीं कि केवल जपकर्ता ही दे। एक व्यक्ति मंत्र पढ़ने के बाद स्वाहा कहता हो। 10 लोग इसी भाव से आहुतियां दे रहे हों कि वे भी इसी मंत्र के लिए आहुति दे रहे हैं। इस तरह सिर्फ 1,250 आहुति ही देनी होगी। सबके अंश से एक आहुति की गिनती हो जाएगी। इस प्रकार साढ़े बारह हजार आहुतियां पूर्ण मानी जाएंगी।
हवन - होम सम्बन्धी जानने योग्य बातें-
हवनकी अग्निको पंखेसे प्रज्वलित करना मना है। मुखसे बाँसकी फूँकनी द्वारा फूँककर प्रज्वलित करे। सामान्य अग्नि को भी मुख से फूँकना मना है। यदि भूख प्यास या क्रोधका आवेग हो, मन्त्र न आता हो, अग्नि प्रज्वलित न हो तो हवन न करे। अग्नि जब दक्षिणावर्त हो अर्थात् दक्षिण की ओरसे घूमती हुई जल रही हो, तब हवन करना उत्तम माना जाता है। यदि अग्नि वामावर्त हो, थोड़ी जली हो, रुक्ष हो, चिनगारियोंसे व्याप्त हो, फट्- फट् करती हो और वह लकड़ियोंसे ढक दी गयी हो तो हवन न करे।
हवन की तैयारी -
सबसे पहले अपनी नियमित पूजा कर लें फिर हवन की तैयारी करें। हवनकुंड वेदी को साफ करें। कुण्ड का लेपन गोबर जल आदि से करें। फिर आम की चौकोर लकड़ी हवन के लिए लगा लें। नीचे में कपूर रखकर जला दें। अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो चारों ओर समिधाएं लगाएं। हवनकुंड की अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो पहले घी की आहुतियां दी जाती हैं।
अग्निका ध्यान करे।
अग्निका ध्यान -
ॐ चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा:, द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य। त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्याँ आविवेश॥ (–ऋग्वेदः ४.५८.३)
ॐ मुखं यः सर्वदेवानां हव्यभुक् कव्यभुक् तथा । पितॄणां च नमस्तस्मै विष्णवे पावकात्मने ॥
(नोट : यह अर्थ आपके समझने के लिए दे रहा हूँ , हवन के समय अग्नि का ध्यान उपरोक्त मंत्र से हीं करना है अथवा अग्नि को सूर्य का प्रतिक मानते हुए ध्यान कर घृत से तीन आहुतियां देनी है । इस मंत्र में एक अद्भुत बैल का वर्णन है । यह मन्त्र ऋग्वेद और यजुर्वेद में है । सूर्य का प्रतीक पृथिवी पर 'अग्नि' मानकर इस मन्त्र को यज्ञाग्नि पर भी आरुढ़ किया गया है । ऋग्वेद के इस मंत्र का जो हिंदी अनुवाद ग्रंथों में दिया गया है वो इस प्रकार है - "उसके चार सींग, तीन पैर, दो सिर, सात हाथ हैं; बैल संप्रभु भगवान, सभी उपहारों का दाता, खुद को मनुष्यों में स्थापित कर चुका है, जहां, तीनों द्वारा जंजीरों में बंधे होने के कारण, वह फुंफकारता है।" यहां वास्तव में अग्नि का यह मंत्र वृषभ रूपी यज्ञ की अग्नि को परिभाषित कर रहा है जिसमें 4 सींग वेद हैं, 3 पैर तीन सवन (सुबह, दोपहर, शाम) हैं, 2 सिर ब्रह्मौदान (ज्ञान रूपी अन्न, जो ज्ञानी है ज्ञान रूपी अन्न का हीं भोजन करता है) और प्रवर्ग्य (अग्नि का तापीय और ध्वनि ऊर्जा का प्रयोग करना) हैं । 7 हाथ 7 स्वर होते हैं, (गायत्री, बृहती आदि छन्दों के) हैं, तीन जंजीर (स्थानों ) से बंधे हुए हैं ( मंत्र, कल्प, ब्राह्मण) इत्यादि से अथवा तीन बन्धन ऋक, यजुः व साम हैं, जहां ऋक् पद्यरूप मन्त्र हैं, यजुः गद्यात्मक मन्त्र हैं, साम गीतियुक्त मन्त्र हैं । यज्ञ भी वर्षा का कारण होता है - जलों की अथवा सुखों की, इसलिए वह वृषभ हुआ, कारण यह इच्छाओं की वर्षा करती है । मन्त्रोच्चारण रूप में वह शब्द करता है (भाषा की ध्वनि हमें सुनाई देती है), व प्रज्वलित होने से देव है । और यह दिव्य भाषा हम मनुष्यों में प्रवेश कर चुकी है (हम इसका उपयोग कर रहे हैं)।
अग्नि का ध्यान करके ॐ अग्ने शाण्डिल्यगोत्र मेषध्वज प्राङ्मुख मम सम्मुखो भव' - इस प्रकार प्रार्थना करके 'पावकाग्नये नम:' इस मन्त्रसे पञ्चोपचार पूजन करे। गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाये। तदनन्तर घृतमिश्रित हविष्यान्नसे अथवा घृतसे हवन करे। सम्भव हो तो घृतसे स्रुवाद्वारा अग्निके जलते अंश पर आहुति दे—
ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये न मम्।
ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदं इन्द्राय न मम्।
ॐ अग्नये स्वाहा। इदं अग्नये न मम।
ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय न मम।
ॐ भूः स्वाहा।
उसके बाद हवन सामग्री से हवन शुरू कर सकते हैं। इन मंत्रों से हवन शुरू करें-
ऊँ सूर्याय नमः स्वाहा
ऊँ चंद्रयसे स्वाहा
ऊं भौमाय नमः स्वाहा
ऊँ बुधाय नमः स्वाहा
ऊँ गुरवे नमः स्वाहा
ऊँ शुक्राय नमः स्वाहा
ऊँ शनये नमः स्वाहा
ऊँ राहवे नमः स्वाहा
ऊँ केतवे नमः स्वाहा
इसके बाद गायत्री मंत्र से आहुति देनी चाहिए। गायत्री मंत्र इस प्रकार से है
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। स्वाहा।।
अब नर्वाण बीज मंत्र से हवन शुरू करें , काम से काम एक माला यानी 108 बार। और मंत्र के अंत में " इदं दुर्गाय इदं न मम " बोलें। इदं दुर्गाय इदं न मम स्वाहा का अर्थ है की यह जो भी क्रिया हम कर रहे हैं वह माँ दुर्गा के लिए है, यह मेरे लिए नहीं है। नर्वाण बीज मंत्र कई हैं। एक उदाहरण दे रहा हूँ -
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।। स्वाहा।।
इदं दुर्गाय इदं न मम ।।
या इसे आप ऐसे भी पढ़ सकते हैं -
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।। स्वाहा।।
इदं दुर्गायै न मम ।।
(सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी कल्याण करने वाली, सब के मनोरथ को पूरा करने वाली, तुम्हीं शरण ग्रहण करने योग्य हो, तीन नेत्रों वाली यानी भूत भविष्य वर्तमान को प्रत्यक्ष देखने वाली हो, तुम्ही शिव पत्नी, तुम्ही नारायण पत्नी अर्थात भगवान के सभी स्वरूपों के साथ तुम्हीं जुडी हो, आप को नमस्कार है। यह आहुति आपके हीं के लिए है। मेरे स्वांत:सुखाय के लिए नहीं है। )
हवन के बाद की प्रक्रिया -
हवन के बाद नारियल के गोले में कलावा बांध लें। चाकू से उसके ऊपर के भाग को काट लें। उसके मुंह में घी, पान, सुपारी, लौंग, जायफल और जो भी प्रसाद उपलब्ध है, उसे रख दें। बची हुई हवन सामग्री फिर उसमें डाल दें। यह पूर्ण आहुति की तैयारी है। फिर पूर्ण आहुति मंत्र पढ़ते हुए उसे हवनकुंड की अग्नि में रख दें।
हवन पूर्णाहुति मंत्र-
ऊँ पूर्णमद: पूर्णम् इदम् पूर्णात पूर्णादिमं उच्यते, पुणस्य पूर्णम् उदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णभादाय पूर्णमेवावाशिष्यते।।
इस मंत्र को कहते हुए पूर्ण आहुति दे देनी चाहिए। उसके बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें, फिर आरती करें। क्षमा प्रार्थना करें।
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