दक्षिणा काली त्रिविंशत्यक्षर मन्त्र तन्त्र साधना - तेईस अक्षरों वाले दक्षिणकाली मन्त्र की प्रयोग विधि
Dakshin Kali Trivinshatyakshar Mantra Tantra Sadhana - Method of using Dakshin Kali Mantra with twenty-three letters
दक्षिणा काली त्रिविंशत्यक्षर मन्त्र तन्त्र साधना
दशमहाविद्याओं के मन्त्र जप ध्यान पूजन तथा प्रयोग की विधि
काली' शब्द का अर्थ है-'काल' की पत्नी ।' 'काल' शिवजी का नाम है और काली माता पार्वती हैं। इन्हीं को भगवती आद्या काली भी कहते सारी सृष्टि की रचयिता हैं। भगवती आद्या काली मार्कण्डेय पुराण के 'दुर्गा सप्तशती खण्ड में भगवती अम्बिका के ललाट से उत्पन काली से भिन्न है । भगवती अम्बिका के ललाट से उत्पन्न काली दुर्गा की त्रिमूर्तियों में से एक हैं। उनके ध्यान का स्वरूप भी आद्या काली के ध्यान से भिन्न है। आद्या काली के स्वरूपों में 'दक्षिणा काली' मुख्य हैं। इन्हें दक्षिण कालिका' तथा दक्षिणा कालिका आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है।
तन्त्र शास्त्रों में आद्या भगवती के दस भेद कहे गए हैं- (१) काली, (२) तारा, (३) षोडशी, (४) भुवनेश्वरी, (५) भैरवी, (६) छिन्नमस्ता, (७) धूमावती, (८) बगला, (२) मातंगी एवं (१०) कमलात्मिका । इन्हें सम्मिलित रूप में 'दशमहाविद्या' के नाम से भी जाना जाता है। इनमें भगवती काली मुख्य हैं।
भगवती काली के रूप-भेद असंख्य है तत्त्वतः सभी देवियां, योगिनियाँ आदि भगवती की ही प्रतिरूपा हैं, तथापि इनके आठ भेद मुख्य माने जाते हैं- (१) चिन्तामणि काली, (२) स्पर्शमणि काली, (३) सन्ततिप्रदा काली, (४) सिद्धि- काली (५) दक्षिणा काली, (६) कामकला काली, (७) हंस काली एवं (4) गुह्य काली।
गुह्यकाली, भद्रकाली, श्मशान काली तथा महाकाली - ये चारों स्वरूप भगवती दक्षिणा कालिका के ही है। इनके अतिरिक्त (१) भद्रकाली, (२) श्मशानकाली तथा (३) महाकाली- ये तीन भेद भी विशेष प्रसिद्ध हैं तथा इनकी उपासना भी विशेष रूप से की जाती है।
तंत्र साधना में मातृ योनि का बेहद महत्त्व है। मूलाधार स्थित त्रिकोण को मातृ योनि कहा जाता है। यह अलंघ्य और मूल होता है। मंत्र जाप वाले माला के सुमेर को भी 'मातृ योनि' कहा जाता है और उसको भी जाप के समय नहीं पार करते हैं। 'सुमेरु' के अतिरिक्त माला के अन्य दानों को 'योनि' कहा जाता है।
त्रिविंशत्यक्षर दक्षिणकाली मन्त्र-प्रयोग
मन्त्र
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं स्वाहा
इस मन्त्र के आरम्भ से 'ॐ निकाल देने पर यह 'बाईस अक्षर का रह जाता है । तेईस तथा बाईंस अक्षरों वाले दोनों मन्त्रों का विधान एक-सा ही है।
मन्त्र-सिद्धि एवं प्रयोग-विधि - तेईस अक्षरों वाले दक्षिणकाली मन्त्र की प्रयोग विधि निम्नानुसार है -
1. सिद्ध गुरु के सानिध्य में दक्षिणा काली की विधि -विधान से पूजा करें। तंत्र विधान से पूजन विधि में भेद होता है ,अत: उसकी विधि हम नहीं दे रहे हैं। विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु मन्त्र की प्रयोग विधियां तथा फल निम्नलिखित है-
2. पूजनोपरान्त मन्त्र का एक लाख (1,00,000) की संख्या में जप करना चाहिए। जप के बाद कनेर के फूलों से दशांश अर्थात् 10,000 आहुतियाँ देकर हवन करना चाहिए। ऐसा करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है।
3 . जो साधक स्वयं के लिए अथवा दूसरों के लिए लक्ष्मी प्रदान अथवा प्रसिद्धि-प्रदान हेतु सुन्दरी स्त्री के मदनावास (गुह्याङ्ग) को देखता हुआ उक्त मन्त्र का 1०,००० (दस सहस्र) की संख्या में मन्त्र जप करता है। वह बृहस्पति-तुल्य हो जाता है।
4. जो साधक नग्न होकर बालों को खुला रख कर, श्मशान में स्थित हो, अर्द्धरात्रि के समय 10,000 (दस सहस्र) की संख्या में मन्त्र जप करता है, उसकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
5 . जो साधक श्मशान में शव (मृत मनुष्य) के हृदय पर नग्न बैठकर, अपने वीर्य से युक्त एक सहस्र मदार पुष्पों से भक्ति पूर्वक जप करता हुआ एक- एक पुष्प से देवी की पूजा करता है, वह पृथ्वीपति होने का सौभाग्य प्राप्त करता है। जो साधक शव के ऊपर बैठकर एक लाख की संख्या में जप करता है, उसका मन्त्र तत्काल सिद्ध हो जाता है तथा समस्त अभीष्ट फल प्राप्त होते हैं ।
6. जो साधक रजः स्राव करती हुई नारी-भग का ध्यान करता हुआ 10,000 (दस सहस्र) की संख्या में मन्त्र का जप करता है, वह सुन्दर कवित्व- शक्ति से संसार को विमोहित कर लेता है।
7. जो साधक शव के हृदय पर, आठ आरे वाले महापीठ पर स्थित शिवजी के साथ मदन संग्राम (सहवास) करती हुई तथा मुस्कुराती हुई देवी का ध्यान करते हुए स्वयं भी रमण-क्रिया (सहबास) में प्रवृत्त रहते हुए १,००० (एक सहस्र) की संख्या में मन्त्र का जप करता है, वह शंकर के समान हो जाता है।
8 . जो साधक हविष्य मात्र सेवन करता हुआ, दिन के समय, देवी के ध्यान में मग्न होकर जप करता है। वह विद्या, लक्ष्मी, यश तथा पुत्रों से युक्त होकर चिरकाल तक सुखी बना रहता है।
9. जो साधक रात्रि के समय मैथुन में आसक्त हो, इस मन्त्र का 1,00,000 (एक लाख) की संख्या में जप करता है, वह राजा होता है।
10. जो साधक लालकमलों से होम करते हुए इस मन्त्र का 1,00,000 लाख की संख्या में जप करता है वह कुबेर को भी जीत लेता है।
11 . जो बेल के पत्तों से हवन करते हुए जप करता है, वह राज्य पाता है। जो लालपुष्पों से हवन करते हुए जप करता है, उसे वशीकरण का लाभ होता है।
12. जो भैंसे आदि पशुओं के रक्त से कालिका का तर्पण करके जप करता है, उसके हाथ में सभी सिद्धियाँ शीघ्र आ जाती हैं।