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Shri Bhagwati Stotra श्री भगवती स्तोत्र

श्रीभगवती स्तोत्रम

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 श्रीभगवती स्तोत्रम

श्री भगवती स्तोत्र हिंदी अर्थ के साथ

आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥

हे वरदायिनी देवि! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट प्रदान करने वाली और अनंत फलों को प्रदान करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो! हे शुम्भ-निशुम्भ के मुण्डों को धारण करनेवाली देवी! तुम्हारी जय हो। हे मनुष्यों को पीड़ा हरनेवाली देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता/करती हूं।।1।।

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥

हे सूर्य-चंद्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान दैदीप्यमान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुर का शोषण करने वाली देवी तुम्हारी जय हो, जय हो।।2।।

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥

हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।।3।।

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥

सशस्त्र शंकर और कार्तिकेयजी द्वारा वन्दित होने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलनेवाली गंगारूपिणी देवी! तुम्हारी जय हो। दुख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।।4।।

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥

हे देवी! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दुख हारिणी हो। हे व्याधिनाशिनी देवी! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवांछित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवी! तुम्हारी जय हो।।5।।

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥

माता के कोई भी भक्त, जो कहीं भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं।।6।।

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