शांकभरी जयंती शाकंभरी पूर्णिमा
25 जनवरी 2024 पौष मास, शुक्ल पक्ष , पूर्णिमा तिथि को शांकभरी पूर्णिमा है जिसे शाकंभरी नवरात्र के रूप में भी जाना जाता है।
शांकभरी जयंती शाकंभरी पूर्णिमा
25 जनवरी 2024 पौष मास, शुक्ल पक्ष , पूर्णिमा तिथि को शांकभरी पूर्णिमा है जिसे शाकंभरी नवरात्र के रूप में भी जाना जाता है।
शांकभरी जयंती को शाकंभरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है जो मार्कंडेय पुराण के अनुसार माता शाकंभरी का जन्मदिन है जो पौष पूर्णिमा के दिन है। माता शाकंभरी को देवी दुर्गा की ही रूप माना जाता है। माँ शाकम्भरी ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी,भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा है। माता शाकंभरी का अवतरण सृष्टि पर अकाल को दूर करने और खुशहाली लाने के लिए हुआ था।
दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में मां शाकंभरी का वर्ण नील कहा गया है। मां के नेत्र नील कमल की तरह हैं और वे कमल के पुष्प पर विराजित होती हैं। मां की एक मुट्ठी में कमल का पुष्प है तो दूसरी मुट्ठी में बाण कहे जाते हैं।
शाकंभरी नवरात्रि की पूजा -
पंचांग के अनुसार, शाकंभरी नवरात्रि पौष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन तक रहती है। एक श्लोकी दुर्गा सप्तशती के मंत्र का कम से कम 108 बार करें।
माता शाकंभरी पूजा विधि
शाकंभरी जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें व नए अथवा साफ वस्त्र पहने। इसके बाद शुभ दिशा में चौकी स्थापित करें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें और मां शाकंभरी को स्मरण करते हुए हल्दी, कुमकुम, अक्षत व श्रृंगार का सामान अर्पित करें। साथ ही माता को ताजे फल एवं सब्जियों का भोग अवश्य लगाएं और इस मंत्र का जाप करें -
शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।
मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।
अंत में देवी शाकंभरी की कथा सुनें और आरती करना ना भूलें।
शाकम्भरी माता की आरती
जय जय शाकम्भरी माता ब्रह्मा विष्णु शिव दाता
हम सब उतारे तेरी आरती री मैया हम सब उतारे तेरी आरती
संकट मोचनी जय शाकम्भरी तेरा नाम सुना है
री मैया राजा ऋषियों पर जाता मेधा ऋषि भजे सुमाता
हम सब उतारे तेरी आरती
मांग सिंदूर विराजत मैया टीका सूब सजे है
सुंदर रूप भवन में लागे घंटा खूब बजे है
री मैया जहां भूमंडल जाता जय जय शाकम्भरी माता
हम सब उतारे तेरी आरती
क्रोधित होकर चली मात जब शुंभ- निशुंभ को मारा
महिषासुर की बांह पकड़ कर धरती पर दे मारा
री मैया मारकंडे विजय बताता पुष्पा ब्रह्मा बरसाता
हम सब उतारे तेरी आरती
चौसठ योगिनी मंगल गाने भैरव नाच दिखावे।
भीमा भ्रामरी और शताक्षी तांडव नाच सिखावें
री मैया रत्नों का हार मंगाता दुर्गे तेरी भेंट चढ़ाता
हम सब उतारे तेरी आरती
कोई भक्त कहीं ब्रह्माणी कोई कहे रुद्राणी
तीन लोक से सुना री मैया कहते कमला रानी
री मैया दुर्गे में आज मानता तेरा ही पुत्र कहाता हम सब उतारे तेरी आरती
सुंदर चोले भक्त पहनावे गले मे सोरण माला
शाकंभरी कोई दुर्गे कहता कोई कहता ज्वाला
री मैया मां से बच्चे का नाता ना ही कपूत निभाता
हम सब उतारे तेरी आरती
पांच कोस की खोल तुम्हारी शिवालिक की घाटी
बसी सहारनपुर मे मैय्या धन्य कर दी माटी
री मैय्या जंगल मे मंगल करती सबके भंडारे भरती
हम सब उतारे तेरी आरती
शाकंभरी मैया की आरती जो भी प्रेम से गावें
सुख संतति मिलती उसको नाना फल भी पावे
री मैया जो जो तेरी सेवा करता लक्ष्मी से पूरा भरता हम सब उतारे तेरी आरती ||
शाकम्भरी देवी कथा
प्राचीन समय में एक बार दुर्गम नाम के राक्षस ने अत्यंत आतंक मचाया था। उस राक्षस ने ब्रह्मा जी से। चारो वेद चुरा लिए थे। और तब सौ वर्षों तक वर्षा नही हुई थी। तब अन्न जल के अभाव के कारण लोग मर रहे थे। तब शाकंभरी देवी के रूप में मां दुर्गा ने अवतार लिया था। उनके सौ नेत्र थे। उन्होंने अपने नेत्रों का प्रयोग कर रोना शुरू किया और इतने आंसू बहाए की पूरी धरती पर जल प्रवाहित हो गया। फिर उन्होंने उस दैत्य को खत्म कर दिया था।
दूसरी प्राचीन कथा के अनुसार मां ने सौ वर्षो तक तप किया था और वह महीने के अंत में सिर्फ शाकाहारी भोजन करती थी। जिस जगह पर सौ वर्षो तक पानी भी नहीं था वह तप करने से पैड पौधे उत्पन्न हो गए थे। तब साधु संत उनका चमत्कार देखने आए और उनको शाकाहारी भोजन दिया । माता सिर्फ शाकाहारी भोजन करती होने के कारण उनका नाम शाकमभरी देवी पड़ा था।
शाकुम्भरी देवी की पूजा अर्चना करने वाले भक्तो का घर हमेशा धनधान्य तथा अन्न से भरा रहता है।
शाकंभरी पूर्णिमा के उपाय -
मां दुर्गा के इस सौम्य स्वरूप को शताक्षी के नाम से भी जाना जाता है। किवदंतियों में बताया गया है कि जब सृष्टि पर भीषण अकाल पड़ा था। तब अपने भक्तों को इस विकराल समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए शाकंभरी देवी ने अवतार लिया था। वैदिक कथाओं में बताया गया है कि मां शाकंभरी के हजारों की संख्या में आंखें हैं। जिनसे 9 दिनों तक अश्रु के रूप में पानी की धाराएं बहने लगी थी। उसी पानी से सृष्टि ओर पुनः हरियाली आ गई थी। इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन माता शाकंभरी को प्रसन्न करने के लिए जरूरतमंदों में अनाज, सब्जी व फल और अन्न का दान अवश्य करना चाहिए। अगर ऐसा ना कर पाएं तो किसी देवालय में भंडारा इत्यादि के लिए पैसों का दान कर दें।
भारत देश मे माता शाकंभरी के अनेक पीठ है। लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है, जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग मे स्थित है। और उत्तर भारत मे वैष्णो देवी के बाद अगर कोई दूसरा मंदिर है तो वह सहारनपुर मंदिर है। इसके अलावा दो मंदिर भी है शाकम्भरी माता राजस्थान,को सकरायपीठ कहते हैं। जोकि राजस्थान मे है और सांभर पीठ भी राजस्थान मे है।
शाकंभरी मंदिर शक्तिपीठ, उदयपुरवाटी
शाकंभरी मंदिर शक्तिपीठ राजस्थान के सीकर जिले के उदयपुरवाटी के पास है, जो सकराय माताजी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है की पांडवो ने अपने भाइयों और परिजनों का युद्ध में वध किया था, इसीलिए उस पाप की मुक्ति के लिए वह अरावली की पहाड़ियों में रुके थे। तब युधिस्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए माता सकराय की स्थापना की थी, उसी को अभी शाकम्भरी देवी मां के रूप में माना जाता है।
यह मंदिर सीकर जिले से 56 किमी दूर और उदयपुर वाटी से 16 किमी दूर अरावली की हरी वादियों में स्थित है। यहां पर आम्र कुंज तथा स्वच्छ जल का झरना बहता है, जो अत्यंत आकर्षित करता है। इस शक्तिपीठ पर नाथ संप्रदाय के लोगो का वर्चस्व है। घुसर और धरकट्ट के खंडेलवाल वैश्यो ने धन इकठ्ठा करके इस मंदिर की स्थापना की थी। इसीलिए यह मंदिर उनकी कुलदेवी के रूप में माना जाता है।
इस मंदिर को 7 वी सदी में स्थापित किया गया था। इसमें देवी सकराय, गणपति और कुबेर की प्राचीन मूर्तियां है। इसकी शिलाओं पर इन तीनो देवी देवताओं की स्तुति बड़े भावपूर्वक लिखी गई है। इसके आसपास जटा शंकर मंदिर तथा आत्ममुनि आश्रम भी है।
शाकंभरी मंदिर शक्तिपीठ, सांभर
शाकंभरी मंदिर शक्तिपीठ राजस्थान जिले के सांभर के समीप स्थित है, जिसका नाम शाकुम्भर है। शाकम्भरी देवी सांभर की अधिष्ठात्री है। इसी लिए इस जिल्ले का नाम सांभर पड़ा। शाकुम्भरी माता को चौहान राजवंश की कुलदेवी माना गया है। यह शक्तिपीठ सांभर जिले से 15 किमी दूर है।
महाभारत के समय पर एक असुर राजा था। उसके साम्राज्य का एक भाग यह सांभर जिला था। यहां पर शुक्राचार्य भी निवास करते थे, जो की असुरों के कुलगुरु थे।
उनकी पुत्री देवयानी का विवाह नरेश नामक युवक के साथ हुआ था। यहां देवयानी को समर्पित एक मंदिर भी स्थापित किया गया है, और माता शाकुम्भरी को समर्पित मंदिर का निर्माण किया हुआ है, जानकी सबसे प्राचीन है, और माना जाता है, की यह देवी की मूर्ति स्वयं उत्पन्न हुई थी।
ऐसा माना जाता है, की चौहान राजपूतों को कुलदेवी शाकम्भरी देवी है। एक समय पर जब यह धन संपत्ति को लेकर होनेवाले जगडो के कारण सांभर प्रदेश के लोग परेशान हुए थे, तब माता ने यहां स्थित वन को बहुमूल्य धातुओं में परिवर्तित कर दिया था, तब लोगो ने इस वरदान को श्राप समज लिया था। लोगो ने माता से इस वरदान को वापस लेने को कहा तो माता ने सारी चांदी को नमक बना दिया था।
शाकंभरी मंदिर शक्तिपीठ, सहारनपुर
शाकंभरी शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश के मेरठ के सहारनपुर में 40 किमी दूर स्थित है। इस मंदिर में माता शाकुम्भरी देवी, भीमा देवी, भ्रामरी देवी तथा शताक्षी देवी की प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर कस्बा बेहट से 15 किमी दूरी पर स्थित है। यहां पर माता का मंदिर नदियों के बीच में तथा पहाड़ और जंगलों के बीच में बनाया गया है।
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