कालिका स्तुति - अयि गिरि नन्दिनि नन्दिति मेदिनि, विश्व विनोदिनि नन्दिनुते
Kalika Stuti written by Kalidas
कालिका स्तुति Kalika Stuti
कालिदास द्वारा रचित कालिका स्तुति Kalika Stuti written by Kalidas
॥ अथ श्री कालिका स्तुति ॥
अयि गिरि नन्दिनि नन्दिति मेदिनि, विश्व विनोदिनि नन्दिनुते ।
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनि, विष्णु विलासिनिजिष्णुनुते ॥
भगवति हे शितकण्ठ कुटुम्बिनि भूरि कुटुम्बिनि भूत कृते ।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि जगदम्ब कदम्ब वन प्रिय, वासिनि वासिनि वासरते ।
शिखर शिरोमणि तुंग हिमालय, श्रृंगनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुरे मधुरे, मधुकैटभ भञ्जनि रासरते ।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते ॥
सुर वर वर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि घोषरते ।
दनुजन रोषिणि दुर्मुखशोषिणि, भवभयमोचनि सिन्धु सुते ॥
त्रिभुवन पोषिणि शंकर तोषिणि किल्विषमोचनि हर्षरते ।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्डवितुण्डित शुण्ड गजाधिपते ।
रिपुगजदंडविदारण खंड, पराक्रम चण्ड निपातित मुण्ड मठाधिपते ॥
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते ॥
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोरम कान्तियुते ।
श्रुति रजनी रजनी रजनी, रजनी रजनीकर चारुयुते ॥
सुनयन विभ्रमरभ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते ।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
सुरललना प्रतिथे वितथे, वितथेनियमोत्तर नृत्यरते ।
धुधुकट धुंगड़ धुंगड़दायक, दानकुतूहल गान रते ॥
धुंकुट धुंकुट धिद्धिमितिध्वनि, धीर मृदंग निनादरते ।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
जय जय जाप्यजये जयशब्द, परिस्तुति तत्पर विश्वनुते ।
झिणिझिणिझिणिझिणिझिंकृत नूपुर, झिंजिंत मोहित भूतरते ॥
धुनटित नटार्द्धनटी नट नायक नाटितनुपुरुते ।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥
महित महाहवमल्लिम तल्लिम, दल्लित वल्लज भल्लरते ।
विरचित पल्लिक पुल्लिक मल्लिक, झल्लिकमल्लिक वर्गयुते ॥
कृत कृत कुल्ल समुल्लस तारण, तल्लिज वल्लज साललते ।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते ॥
यामाता मधुकैटभ प्रमथिनी या महिषोन्मूलनी ।
या धूम्रेक्षण चण्डमुण्ड मथिनी या रक्तबीजाशनी ॥
शक्तिः शुम्भ निशुम्भ दैत्य दलिनी या सिद्धि लक्ष्मी परा ।
सा चण्डी नवकोटि शक्ति सहिता मां पातु विश्वेश्वरी ॥
॥ इति कालिदास विरचित् कालिका स्तुति ॥