महालया क्या है ? महालया का क्या महत्त्व है?
What is Mahalaya? What is the importance of Mahalaya?
महालया
महालया क्या है ? महालया का क्या महत्त्व है?
वर्ष 2024 में महालया 18 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक है।
महालया पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा के कैलास पर्वत से धरती पर आने का दिन है। इसी दिन त्रिदेव शिव, विष्णु, ब्रह्मा और इंद्र, वरुण, पवन देव आदि देवी-देवताओं ने महिषासुर मर्दन हेतु शक्ति देवी को सृजित किया था जिसे मां दुर्गा के रूप में हम पूजा करते हैं। मां दुर्गा में त्रिदेवियॉं महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती अपने पूर्ण शक्ति से समाहित हैं। नवरात्र के लिए बन रही माता की मूर्ति की आंखें मूर्तिकार इसी दिन बनाते हैं और रंग भरते हैं। वो माता की विशेष पूजा भी आज के दिन करते हैं।
महालया नवरात्रि और दुर्गा पूजा के शुरुआत का प्रतीक है। बंगाल में इस दिन का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि महालया के दिन ही सबसे पहले पितरों को विदाई दी जाती है। इसके बाद मां दुर्गा कैलाश पर्वत से सीधे धरती पर आती हैं और यहां 9 दिन तक वास करती है तथा अपनी कृपा के अमृत बरसाती हैं।
बंगाल में, महालया ( মহালয়া) से दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत होती है। बंगाली लोग महिषासुरमर्दिनी के भजनों से सुबह की शुरुआत करते हैं जिसमें देवी दुर्गा के जन्म और राक्षस राजा महिषासुर पर अंतिम विजय का वर्णन रहता है। इसके साथ हीं चंडी पाठ करते हैं जो देवीमाहात्म्य ग्रंथ से लिया गया है।
महालया शुभ है अथवा अशुभ?
महालया शुभ दिन हीं है। इसी दिन पितरों को तर्पण दी जाने के कारण लोग इसको अशुभ मानते हैं परन्तु यह एक शुभ दिन है।
महालया के दिन पितरों का तर्पण करने का विधान निम्न रूप में है -
महालया के दिन पितरों को अंतिम विदाई दी जाती है। पितरों को दूध, तील, कुशा, पुष्प और गंध मिश्रित जल से तृप्त किया जाता है। इस दिन पितरों की पसंद का भोजन बनाया जाता है और विभिन्न स्थानों पर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। इसके अलावा इसका पहला हिस्सा गाय को, दूसरा देवताओं को, तीसरा हिस्सा कौवे को, चौथा हिस्सा कुत्ते को और पांचवा हिस्सा चीटियों को दिया जाता है। जल से तर्पण करने से पितरों की प्यास बुझती है।