अपराजितास्तोत्र - माँ दुर्गा की साधना का सबसे फलदायक पाठ - स्तोत्र। भगवान राम ने रावण पर विजय पाने हेतु अपराजितास्तोत्रम् का ही पाठ कर माँ दुर्गा से शक्ति प्राप्त की थी और रावण पर विजय पाई थी।
अपराजितास्तोत्र (संस्कृत) का हिंदी अनुवाद एक साथ अपराजितास्तोत्रम् (संस्कृत) के अंत में दिया गया है ताकि हिंदी भाषी साधक सहजता से पाठ कर सकें।
हमारे स्त्रोत आदि धार्मिक चीजें संस्कृत में रचे गए हैं। अतः इन चीजों का पाठ संस्कृत में हीं हो इस पर हमारा पारंपरिक जोर रहता है और हिंदी भाषी श्रद्धालुओं में हिंदी में इनका पाठ करने में थोड़ा संकोच होता है या यह भाव होता है कि संस्कृत जो देव भाषा है उसी में पाठ करने से देवी या ईश्वर प्रसन्न होंगे। अतः इच्छा होने पर भी वो अपने धार्मिक अनुष्ठानों से कटते चले जाते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि चाहे वो जिस भाषा में आराधना करें, अगर सच्चे भाव से करेंगे तो माता/ईश्वर उनकी जरुर सुनेंगे। ध्यान कैसा लगा, भावना कैसी रही, इसी पर फल टिका होता है। इसीलिए गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा है -
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
अतः बिना भटके ईश्वर के शरण में आइए। ईश्वर आपकी हर भाषा को सुन लेंगे। समझ लेंगे। हां, जो श्रद्धालु पारंपरिक तरीके से हीं करना चाहते हैं उनके संस्कृत भाषा में शुद्ध उच्चारण सीखने के लिए जल्द हीं हम केंद्र उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं जहां वो निःशुल्क सिख सकें।
लक्ष्य प्राप्ति हेतु विजयादशमी की अपराजिता पूजा
Aparajitastotram - The most fruitful recitation of Durga Maa's sadhana - Stotra
श्रीत्रैलोक्यविजया अपराजितास्तोत्रम्
Shri trailokya vijaya aprajita stotram
अपराजिता का अर्थ है जो कभी पराजित नहीं होता। देवी अपराजिता के पूजनारम्भ तब से हुआ जब देवासुर संग्राम के दौरान नवदुर्गाओं ने जब दानवों के संपूर्ण वंश का नाश कर दिया तब माँ दुर्गा अपनी मूल पीठ शक्तियों में से अपनी आदि शक्ति अपराजिता को पूजने के लिए शमी की घास लेकर हिमालय में अन्तरध्यान हुईं। अपराजिता की साधना के सम्बन्ध में" धर्मसिन्धु "जो वर्णन है वह निम्न प्रकार है :-
धर्मसिंधु में अपराजिता की पूजन की विधि संक्षेप में इस प्रकार है :-
"अपराह्न में गाँव के उत्तर पूर्व जाना चाहिए, एक स्वच्छ स्थल पर गोबर से लीप देना चाहिए, चंदन से आठ कोणों का एक चित्र खींच देना चाहिए उसके पश्चात संकल्प करना चहिए :
"मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्ध्यर्थमपराजितापूजनं करिष्ये"
राजा के लिए विहित संकल्प अग्र प्रकार है :
" मम सकुटुम्बस्य यात्रायां विजयसिद्ध्यर्थमपराजितापूजनं करिष्ये"
इसके उपरांत उस चित्र (आकृति) के बीच में अपराजिता का आवाहन करना चाहिए और इसी प्रकार उसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन करना चहिए और 'साथ ही क्रियाशक्ति को नमस्कार' एवं 'उमा को नमस्कार' कहना चाहिए।
इसके उपरांत :
"अपराजितायै नम:, जयायै नम:, विजयायै नम:,
मंत्रों के साथ अपराजिता, जया, विजया की पूजा 16 उपचारों के साथ करनी चाहिए और यह प्रार्थना करनी चाहिए, 'हे देवी, यथाशक्ति जो पूजा मैंने अपनी रक्षा के लिए की है, उसे स्वीकर कर आप अपने स्थान को गमन करें जिससे कि मैं अगली बार पुनः आपका आवाहन और पूजन वंदन कर सकूँ "।
राजा के लिए इसमें कुछ अंतर है।
राजा को विजय के लिए ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए :
"वह अपाराजिता जिसने कंठहार पहन रखा है, जिसने चमकदार सोने की मेखला (करधनी) पहन रखी है, जो अच्छा करने की इच्छा रखती है, मुझे विजय दे"
इसके उपरांत उसे उपर्युक्त प्रार्थना करके विसर्जन करना चाहिए। तब सबको गाँव के बाहर उत्तर पूर्व में उगे शमी वृक्ष की ओर जाना चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए।
शमी की पूजा के पूर्व या या उपरांत लोगों को सीमोल्लंघन करना चाहिए। कुछ लोगों के मत से विजयादशमी के अवसर पर राम और सीता की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि उसी दिन राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी। राजा के द्वारा की जाने वाली पूजा का विस्तार से वर्णन हेमाद्रि तिथितत्त्व में वर्णित है। निर्णय सिंधु एवं धर्मसिंधु में शमी पूजन के कुछ विस्तार मिलते हैं।
यदि शमी वृक्ष ना हो तो अश्मंतक वृक्ष की पूजा की जानी चाहिए।
अस्तु मेरे अपने हिसाब से देवी अपराजिता का पूजन शक्ति क्रम में ही किया जाना चाहिए। ठीक जैसे अन्य शक्ति साधनाएं संपन्न की जाती हैं -!
प्रथम गुरु पूजन, द्वितीय गणपति पूजन, भैरव पूजन , देवी पूजन अपनी सुविधानुसार पंचोपचार,षोडशोपचार इत्यादि से पूजन संपन्न करें मन्त्र जप - स्तोत्र जप आदि संपन्न करें और अंत में होम विधि संपन्न करें।
मन्त्र जप : सबसे आसान उपाय है कि श्री अपराजिता देवी के गायत्री मंत्र का प्रयोग करें। यथा :
"ॐ सर्वविजयेश्वरी विद्महे शक्तिः धीमहि अपराजितायै प्रचोदयात"
अपनी सामर्थ्यानुसार उपरोक्त गायत्री का जप करें और देवी अपराजिता का वरदहस्त प्राप्त करें - देवी आपको सदा अजेय और संपन्न रखें। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित आपके साधना हेतु एकदम शुद्धता के साथ हुबहू यहाँ प्रस्तुत है। -
।।अथ श्री अपराजिता स्तोत्र ।।
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करे:
श्री गणेशाय नमः।
ॐ अस्य श्री अपराजितामन्त्रस्य वेदव्यास ऋषिरनुष्टुप्छन्दः। क्लीं बीजं हूँ शक्ति: सर्वाभीष्टसिद्धयर्थे जपे पाठे विनियोगः।
ॐ अपराजिता देवी को नमस्कार है। इस श्री अपराजिता-मन्त्र के वेदव्यास ऋषि हैं। अनुष्टुप छन्द हैं। क्लीं बीजम्, हुं, शक्ति है। और सकलकामना सिद्धि के लिए अपराजिता स्त्रोत के इस मंत्रपाठ का विनियोग करता हूँ (महिलायें करता हूँ के जगह करती हूँ , कहेंगी )।
(जल भूमि पर छोड़ दे)
मार्कण्डेय उवाच - "शृणुध्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदां । असिद्धसाधनों देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ॥"
मारकण्डेय ऋषि ने कहा- हे मुनियो सब सिद्धि देने वाली, असिद्धिसाधिका वैष्णवी अपराजिता देवी के इस स्तोत्र को श्रवण करो ।।
अपराजिता देवी ध्यान
ॐ नीलोत्पल-दल-श्यामां भुजङ्गाभरणोज्वलाम्,
बालेन्दु-मौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम्।
शंखचक्रधरां देवीं वरदां भयशालिनीम्,
पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्ध पद्मासनां शिवाम्।
अजितां चिन्तयेद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ॥
शुद्धस्फटिक-संकाशां चन्द्रकोटि-सुशीतलाम्,
अभयां वर-हस्तां च श्वेतवस्त्रैरलंकृताम्।
नानाभरण-संयुक्तां जयन्तीमपराजिताम्,
त्रिसन्ध्यं यः स्मरेद्देवीं ततः स्तोत्रं पठेत्सुधीः॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
ॐ नमोस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षाय क्षीरार्णवशायिनें, शेषभोग - पर्यङ्काय गरुड-वाहनाय अमोघाय अजाय अजिताय मत्स्यकूर्म अपराजिताय पीतवाससे।
वासुदेव-संकर्षण - प्रद्युम्नानिरुद्ध-हयशीर्ष-मत्स्यकूर्म-वराह नृसिंह वामन राम-राम वर-प्रद! नमोस्तुते।
असुर दैत्य-दानव-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच किन्नर-कूष्माण्ड सिद्ध-योगिनी डाकिनी स्कन्दपुरोगान् ग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्यान् हन हन, पच, पच, मथ, मथ विध्वंसय, विध्वंसय, विद्रावय, विद्रावय, चूर्णय चूर्णय शंखेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुशलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा।।
ॐ सहस्रवाहो सहस्रप्रहरणायुध जय, जय, विजय, विजय, अजित अमित अपराजित अप्रतिहत सहस्रनेत्र ज्वल, ज्वल, प्रज्वल, प्रज्वल, विश्वरूप, बहुरूप मधुसूदन महावराहच्युत महापुरुष पुरुपोत्तम पद्मनाभ वैकुण्ठानिरुद्ध-नारायण गोविन्द दामोदर हृषीकेश केशव सर्वासुरोत्सादन सर्वमन्त्रप्रभञ्जन, सर्वदेवनमस्कृत सर्वबन्धनविमोचन, सर्वशत्रु वशंकर सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वरोगप्रशमन, सर्व-पाप- विनाशन, जनार्द्दन नमोस्तु ते स्वाहा।
य इमां अपराजितां परमवैष्णवीं पठति, सिद्धां जपति, सिद्धां स्मरति, सिद्धां महाविद्यां पठति, जपति, स्मरति, शृणोति, धारयति, कीर्तयति वा न तस्याग्निवायुर्वज्रोपलाशनिभयं नववर्षणि भयं, न समुद्रभयं, न ग्रह-भयं न चौर-भयं वा भवेत्।
क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्री राजकुविषोपविषगरल वशीकरण विद्वेपोच्चाटन वधवन्धनभयं वा न भवेत्।
ऐतैमन्त्रै: सदाहतैः सिद्धैः संसिद्ध-पूजितः, तद्यथा ॐ नमस्तेस्त्वनघेऽजितेऽपराजिते पठति सिद्धे, पठति सिद्धे, जपति सिद्धे, जपति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, महाविद्ये एकादशे उमे ध्रुवे अरुन्धति सावित्रि, गायत्रि, जातवेदसि मानस्तोके सरस्वति धरणि धारिणि सौदामिनी अदिति दिति गौरि गांधारी मातंगी कृष्णे यशोदे सत्यवादिनि ब्रह्मवादिनि कालि कपालि करालनेत्रे संद्योपयाचितकरि-जलगतस्थलगतमंतरिक्षगं वा मां रक्ष रक्ष सर्वभूतेभ्य: सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा।
यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि।
म्रियन्ते बालका यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ॥
भूर्जपत्रेत्विमां विद्यां लिखित्वा धारयेद्यदि।
एतैर्दोषनं लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ।।
शस्त्रं वार्यंते ह्येषा समरे काण्डवारिणी।
गुल्मशूलाक्षि-रोगाणां क्षिप्रं नाशयते व्यथाम् ॥
शिरोरोगज्वराणां च नाशिनी सर्वंदेहिनाम् तद्यथा- एकाहिक-द्वयाहिक त्र्याहिक-चातुर्थिकार्धंमासिक-द्वैमासिक-त्रैमासिक-चातुर्मासिकपञ्च-मासिकषाण्मा-सिक वातिक-पैत्तिक, श्लैष्मिक-सान्निपातिक, सततज्वर-विषमज्वराणां नाशिनी सर्वदेहिनां ॐ हर हर कालि सर सर गौरि घम धम विद्ये आले ताले माले गन्धे पच पच विद्ये मथ मथ विद्ये, नाशय पापं, हर दुःस्वप्नं, विनाशय मातः, रजनि सन्ध्ये दुन्दुभि-नादे मानसवेगे शंखिनी चक्रिणी वज्रिणी शूलिनी अपमृत्युविनाशिनी विश्वेश्वरी द्राविड द्राविडि केशवदयिते, पशुपतिसहिते, दुन्दुभिनादे मानसवेगे दुन्दुभि-दमनी शवरि किराती मातंगी ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं हैं ह्रौं ह्रः ॐ ॐ श्रां श्रीं श्रुं श्रैं श्रौं श्रः ॐ क्ष्वौ तुरु तुरु स्वाहा। ॐ ये क्ष्मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् दम दम मर्दय मर्दंय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि माहेश्वरि।
वैष्णवी वैनायकी कौमारी नारसिंही ऐन्द्री चान्द्री आग्नेयी चामुंडे वारुणि वायव्ये रक्ष रक्ष प्रचण्डविद्ये ॐ इन्द्रोपेन्द्र-भगिनी जये विजये शान्तिपुष्टितुष्टि विवर्द्धनी॥
कामांकुशे कामदुधे सर्वंकामफलप्रदे सर्वंभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ आकर्पिणी आवेशिनी तापिनी, धरणि धारिणी मदोन्मादिनी शोंषिणी सम्मोहिनी महानीले नीलपताके महागौरि महाप्रिये महामान्द्रिका महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मिनी जाह्नवी यमघण्टे किलि किलि चिन्तामणि सुरभि सुरोत्पन्ने सर्वं-काम-दुधे यथाभिलषितं कार्यं तन्मे सिध्यतु स्वाहा।
ॐ भूः स्वाहा।ॐ भुवः स्वाहा।
ॐ स्वः स्वः स्वाहा।
ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा।
ॐ यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहा।
ॐ बले बले महाबले असिद्धि-साधिनी स्वाहा ।
इति श्रीत्रैलोक्य विजया अपराजिता सम्पूर्णम्
अपराजिता स्तोत्र हिंदी में (Aparajita Stotra in Hindi)
ॐ अपराजिता देवी को नमस्कार। (इस वैष्णवी अपराजिता महाविद्या के वामदेव, ब्रहस्पति, मारकंडये ऋषि है गायत्री उष्णिग् अनुष्टुप बृहति छन्द, लक्ष्मी नरसिंह देवता, क्लीं बीजम्, हुं शक्ति, सकलकामना सिद्धि के लिए अपराजिताविद्या मंत्रपाठ में विनियोग है।)
नीलकमलदल के समान, श्यामल रंग वाली, भुजंगो के आभरण से युक्त, शुद्धस्फ़टिक के समान उज्जवल तथा कोटि चन्द्र के प्रकाश के समान मुख वाली, शंख-चक्र धारण करने वाली, बालचंद्र मस्तक पर धारण करने वाली, वैष्णवी अपराजिता देवी को नमस्कार करके महान् तपस्वी मारकण्डेय ऋषि ने इस स्तोत्र का पाठ आरम्भ किया ।। १-३।। मारकण्डेय ऋषि ने कहा- हे मुनियो। सिद्धि देने वाली, असिद्धिसाधिका वैष्णवी अपराजिता देवी (के इस स्तोत्र) को श्रवण।। ४।। ॐ नारायण भगवान् को नमस्कार, वासुदेव भगवान् को नमस्कार, अनंत्भागवान को नमस्कार, जो सहस्त्र सिर वाले क्षीरसागर में शयन करने वाले, शेषनाग के शैया में शयन करने वाले, गरुण वाहन वाले, अमोघ, अजन्मा, अजित तथा पीताम्बर धारण करने वाले है।
ॐ हे वासुदेव, संकर्षण प्रद्दुम्न अनिरुद्ध, हयग्रिव, मतस्य, कुर्म, वाराह,नृसिंह, अच्युत,वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम, बलराम, परशुराम, हे वरदायक, आप मेरे लिए वर प्रदायक हों । आपको नमन हैं।
ॐ असुर, दैत्य, यक्ष, राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, कुष्मांड, सिद्ध्योगिनी, डाकिनी, शाकिनी, स्कंद्ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र्ग्रह तथा अन्य ग्रहों को मारो-मारो, पाचन करो- पाचन करो । मंथन करो- मंथन करो, विध्वंस करो- विध्वंस करो, तोड़ दो- तोड़ दो, चूर्ण करो- चूर्ण करो । शंख, चक्र, वज्र, शूल, गदा, मूसल तथा हल से भस्म करो ।
ॐ हे सहस्त्रबाहू, हे सह्स्त्रप्रहार आयुध वाले, जय, विजय, अमित, अजित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्त्र्नेत्र जलाने वाले, प्रज्वलित करने वाले, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्द्नाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सभी असुरों को उत्सादन करने वाले, हे सभी भूत-प्राणियों को वश में करने वाले, हे सभी दु:स्वप्न को नाश करने वाले, सभी यंत्रो को भेदने वाले, सभी नागों को विमर्दन करने वाले, सर्वदेवों को महादेव, सभी बंधनों को मोक्ष करने वाले, सभी अहितों को मर्दन करने वाले, सभी ज्वरों को नाश करने वाले, सभी ग्रहों का निवारण करने वाले, सभी पापों का प्रशमन करने वाले, हे जनार्दन आपको नमस्कार है ।
ये भगवान् विष्णु कीविद्या सर्वकामना के देने वाली, सर्वसौभाग्य की जननी, सभी भय को नाश करें वाली है ।। ५।।
ये विष्णु की परम वल्लभा सिद्धों के द्वारा पठित है, इसके समान दुष्टों को नाश करने वाली कोई औरविद्या नही है।। ६।।
ये वैष्णवी अपराजिताविद्या साक्षात सत्वगुण, सम्निवत, सदा पढने योग्य तथा मार्ग प्रशस्ता है ।। ७।।
ॐ शुक्लवस्त्र धारण करने वाले, चंद्र्वर्ण वाले, चार भुजा वाले, प्रसन्न मुख वाले भगवान् का सर्व विघ्नों का विनाश करने हेतुध्यान करें । हे वत्स । अब मैं मेरी अभया अपराजिता के विषय में कहूँगा, जो रजोगुणमयी कही गई है ।। ८-९।।
ये सत्व वाली सभी मन्त्रों वाली स्मृत, पूजित, जपित कर्मों में योजित, सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली है । इसको ध्यान पूर्वक सुनो ।। १०।।
जो इस अपराजिता परम वैष्णवी, अप्रतिहता पढने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने से सिद्ध होने वाली,विद्या को सुनें, पढ़ें, स्मरण करें, धारण करें, कीर्तन करें, इससे अग्नि , वायु , वज्र, पत्थर, खड़ग, वृष्टि आदि का भय नहीं होता । समुद्र भय, चौर भय, शत्रु भय, शाप भय भी नहीं होता। रात्री में, अन्धकार में, राजकुल से विद्वेष करने वालों से, विष देने वालों से, वशीकरण आदि टोटका करने वालों से, विद्वेशिओं से, उच्चाटन करने वालों से, वध-भय, बंधन का भय आदि समस्त भय से इसका पाठ करने वाले सुरक्षित हो जाते हैं । इन मन्त्रों द्वारा कही गई, सिद्ध साधकों द्वारा पूजित यह अपराजिता शक्ति हैं ।
ॐ आप को नमस्कार है। भयरहित, पापरहित, परिमाण रहित, अमृत तत्व परिपूर्ण, अपरा, अपराजिता पढने से सिद्ध होने वाली, जप करने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने मात्र से सिद्धि से देने वाली, नवासिवाँ स्थान वाली, एकांत प्रिय, निश्चेता, सुदृमा, सुगंधा, एक अन्न लेने वाली, उमा, ध्रुवा, अरुन्धती, गायत्री, सावित्री, जातवेदा, मानस्तोका, सरस्वती, धरणी, धारण करने वाली, सौदामिनी, अदिती, दिती, विनता, गौरी, गांधारी, मातंगी, कृष्णा, यशोदा, सत्यवादिनी, ब्रम्हावादिनी, काली कपालिनी, कराल नेत्र वाली, भद्रा, निद्रा, सत्य की रक्षा करने वाली, जल में, स्थल में, अन्तरिक्ष में, सर्वत्र सभी प्रकार के उपद्रवों से रक्षा करों स्वाहा ।
जिस स्त्री का गर्भ नष्ट हो जाता है, गिर जाता है, बालक मर जाता है अथवा वह काक बंध्या भी हो तो इसविद्या को धारण करने से अर्थात जप करने से गर्भिणी जीववत्सा होगी इसमें कोई संशय नहीं है ।। ११-१२।।
इस मन्त्र को भोजपत्र में चन्दन से लिखकर धारण करने से सौभाग्यवती स्त्रियाँ पुत्रवती हो जाति है, इसमें कोई शंका नहीं है ।। १३।।
युद्ध में, राजकुल में, जुआ में, इस मन्त्र के प्रभाव से नित्य जय हो जाती है । भयंकर युद्ध में भीविद्या अर्थ-शस्त्रों से रक्षा करती है ।। १४।।
गुल्म रोग, शूल रोग, आँख के रोग की व्यथा इससे शीघ्र नाश हो जाती है । येविद्या शिरोवेदना, ज्वर आदि नाश करने वाली है ।। १५।।
इस प्रकार की अभया ये अपराजिताविद्या कही गई है, इसके स्मरण मात्र से कही भी भय नहीं होता ।। १६।।
सर्प भय, रोग भय, तरस्करों का भय, योद्धाओं का भय, राज भय, द्वेष करने वालों का भय और शत्रु भय नहीं होता है ।। १७।।
यक्ष, राक्षस, वेताल, शाकिनी, ग्रह, अग्नि, वायु, समुद्र,विष आदि से भय नहीं होता ।। १८।।
क्रिया से शत्रु द्वारा किये हुए वशीकरण हो, उच्चाटन स्तम्भ हो, विद्वेषण हो, इन सबका लेशमात्र भी प्रभाव नहीं होता ।। १९।।
जहाँ माँ अपराजिता का पाठ हो, यहाँ तक की यदि यह मुख में कंठस्थ हो, लिखित रूप में साथ हो,चित्र अर्थात यन्त्र रूप में लिखा हो तो भी भय-बाधाएं कुछ नहीं कर पाते ।। २०।।
यदि माँ अपराजिता के इस स्तोत्र को तथा चतुर्भुजा स्वरुप को साधक ह्रदय रूप में धारण करेगा तो वह बाहर भीतर सब प्रकार से भयरहित होकर शांत हो जाता है।। २१।।
लाल पुष्प की माला धारण की हुई, कोमल कमलकान्ति के समान आभा वाली, पाश अंकुश तथा अभय मुद्राओं से समलड़्कृत सुन्दर स्वरुप वाली ।। २२।।
साधको को मन्त्र वर्ण रूप अमृत को देती हुई, माँ का ध्यान करें । इसविद्या से बढ़कर कोई वशीकरण सिद्धि देने वालीविद्या नहीं है ।। २३।।
न रक्षा करने वाली, न पवित्र, इसके समान कोई नहीं है, इस विषय म कोई चिन्तन करने की आव्य्शकता नहीं है । प्रात:काल में साधको माँ के कुमारी रूप की पूजन विधि खाद्द सामग्री से अनेक प्रकार के आभरणों से करनी चाहिए । कुमारी देवी के प्रसन्न होने से मेरी ( अपराजिता की ) प्रीति बढ़ जाती है ।। २४।।
ॐ अब मैं उस महान बलशालिनीविद्या को कहूँगा, जो सभी दुष्ट दमन करने वाली, सभी शत्रु नाश करने वाली, दारिद्र्य दुःख को नाश करने वाली, दुर्भाग्य का नाश करने वाली, भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस का नाश करने वाली है ।। २५-२६।।
डाकिनी, शाकिनी, स्कन्द, कुष्मांड आदि का नाश करने वाली, महारौद्र रूपा, महाशक्ति शालिनी, तत्काल विशवास देने वाली है ।। २७।।
येविद्या अत्यन्त गोपनीय तथा पार्वती पति भगवान् भोलेनाथ की सर्वस्व है, इसलिए इसे गुप्त रखना चाहिए । ऐसीविद्या तुम्हे कहता हु सावधान होकर सुनो ।। २८।।
एक, दो, चार, दिन या आधे महीने, एक महीने, दो महीने, तीन महीने, चार महीने, पाँच महीने, छह महीने तक चलने वाला वाट ज्वर, पित्त सम्बन्धी ज्वर अथवा कफ दोष, सन्निपत हो या मुहूर्त मात्र तक रहने वाला पित्त ज्वर, विष का ज्वर, विषम ज्वर, दो दिन वाला, तीन दिन वाला, एक दिन वाला अथवा अन्य कोई ज्वर हो वे सब अपराजिता के स्मरण मात्र से शीघ्र नष्ट हो जाते है ।। २९-३०-३१।।
ॐ हृीं हन हन काली शर शर, गौरी धम-धम, हेविद्या स्वरुपा, हे आले ताले माले गंधे बंधेविद्या को पचा दो पचा दो, नाश करो नाश करो, पाप हरण करो पाप हरण करो, संहार करो संहार करो, दु:स्वप्न विनाश करने वाली, कमल पुष्प में स्थित, विनायक मात रजनी संध्या स्वरुपा, दुन्दुभी नाद करने वाली, मानस वेग वाली, शंखिनी, चक्रिणी, वज्रिणी, शूलिनी अपस्मृत्यु नाश करने वाली, विश्वेश्वरी द्रविडी द्राविडी द्रविणी द्राविणी केशव दयिते पशुपति सहिते, दुन्दुभी दमन करने वाली, दुर्मद दमन करने वाली, शबरी किराती मातड़्गी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।
जो प्रत्यक्ष या परोक्ष में मुझसे जलते है, उन सबका दमन करो- दमन करो, मर्दन करो – मर्दन करो, तापित करो तापित करो, छिपा दो छिपा दो, गिरा दो गिरा दो, शोषण करो शोषण करो, उत्सादित करो, उत्सादित करो, हे ब्रह्माणी, हे वैष्णवी, हे माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, हे नृसिंह सम्बन्धिनी, ऐन्द्री, चामुंडा, महालक्ष्मी, हे विनायक सम्बन्धिनी, हे उपेन्द्र सम्बन्धिनी, हे अग्नि सम्बन्धिनी, हे चंडी, हे नैॠत्य सम्बन्धिनी, हे वायव्या, हे सौम्या, हे ईशान सम्बन्धिनी, हे प्रचण्डविद्दा वाली, हे इन्द्र तथा उपेन्द्र की भागिनी आप ऊपर तथा नीचे से सब प्रकार से रक्षा करें ।
ॐ जया विजया शान्ति स्वस्ति तुष्ठी पुष्ठी बढाने वाली देवी आपको नमस्कार है । दुष्टकामनाओं को अंकुश में करने वाली, शुभकामना देने वाली, सभी कामनाओं को वरदान देने वाली, सब प्राणियों में मुझे प्रिय करो प्रिय करो स्वाहा ।
आकर्षण करने वाली, आवेशित करने वाली, ज्वाला माला वाली, रमणी, रमाने वाली, पृथ्वी स्वरुपा, धारण करने वाली, तप करने वाली, तपाने वाली, मदन रूपा, मद देने वाली, शोषण करने वाली, सम्मोहन करने वाली, नील्ध्वज वाली, महानील स्वरुपा, महागौरी, महाश्रिया, महाचान्द्री, महासौरी, महामायुरी, आदित्य रश्मि, जाहृवी। यमघंटा किणी किणी ध्वनीवाली, चिन्तामणि, सुगंध वाली, सुरभा, सुर, असुर उत्पन्न करने वाली, सब प्रकार की कामनाये पूर्ति करने वाली, जैसा मेरा मन वांछित कार्य है (यहाँ स्तोत्र का पाठ करने वाले अपनी कामना का चिन्तन कर सकते है।) वह सम्पन्न हो जाये स्वाहा ।
ॐ स्वाहा । ॐ भू: स्वाहा । ॐ भुव: स्वाहा । ॐ स्व: स्वाहा । ॐ मह: स्वाहा । ॐ जन: स्वाहा । ॐ तप: स्वाहा । ॐ सत्यम स्वाहा । ॐ भूभुर्व: स्व: स्वाहा ।
जो पाप जहा से आया है , वाही लौट जाये स्वाहा । ॐ यह महा वैष्णवी अपराजिता महाविद्या अमोघ फलदायी है ।। ३२।।
ये महाविद्या महाशक्तिशाली है अत: इसे अपराजिता अर्थात् किसी प्रकार की अन्य विद्द्य से पराजित ना होने वाली कहा गया है । इसको स्वयं विष्णु ने निर्मित किया है इसका सदा पाठ करने से सिद्दी प्राप्त होती है ।। ३३।।
इसविद्या के समान तीनो लोको में कोई रक्षा करने में समर्थ दूसरीविद्या नहीं है । ये तमोगुण स्वरूपा साक्षात रौद्र्शक्ति मानी गई है ।। ३४।।
इसविद्या के प्रभाव से यमराज भी डरकर चरणों में बैठ जाते है । इसविद्या की मूलाधार स्थापित करना चाहिए तथा राटा को स्मरण करना चाहिए।। ३५।।
नीले मेघ के समान चमकती बिजली जैसे केश वाली, चमकते सूर्य के समान तीन नेत्र वाली माँ मेरे प्रत्यक्ष विराजमान है ।। ३६।।
शक्ति, त्रिशूल, शंख, पानपात्र को धारण की हुई, व्याघ्र चरम धारण की हुई , किंकिणियों से सुशोभित, मण्डप में विराजमान, गगनमंडल के भीतरी भाग में धावन करती हुई, पादुकाहित चरण वाली, भयंकर दांत तथा मुख वाली, कुण्डल युक्त सर्प के आभरणों से सुसज्जित, खुले मुख वाली, जिहृा को बाहर निकाली हुई, टेड़ी भौंहें वाली, अपने भक्त से शत्रुता करने वालों का रक्त पानपात्र से पीने वाली, क्रूर दृष्टि से देखने पर सात प्रकार के धातु शोषण करने वाली, बारम्बार त्रिशूल से शत्रु के जिहृा को कीलित कर देने वाली, पाश से बाँधकर उसे निकट लाने वाली, ऐसी महाशक्ति शाली माँ को आधी रात के समय में ध्यान करे।। ३७-४१।।
फिर रात के तीसरे प्रहर में जिस जिसका नाम लेकर जिस हेतु जप किया जाये उस- उस को वैसा स्वरुप बना देती है ये योगिनी माता ।। ४२।।
ॐ बला महाबला असिद्द्साधनी स्वाहा इति । इस अमोघ सिद्ध श्रीवैष्णवीविद्या, श्रीमद अपराजिता को दु:स्वप्न, दुरारिष्ट, आपदा की अवस्था में अथवा किसी कार्य के आरम्भ में ध्यान करें तो इससे विघ्न बाधाये शांत हो जायेंगी । सिद्धि प्राप्त होगी ।। ४३-४४।।
हे जगज्जननी माँ इस स्तोत्र पाठ में मेरे द्वारा यदि विसर्ग, अनुस्वार, अक्षर, पाठ छोड़ गया हो तो भी माँ आपसे क्षमा प्रार्थना करता हुँ की मेरे पाठ का पूर्ण फल मिले, मेरे संकल्प की अवश्य सिद्धि हो अर्थात किसी भी प्रकार की उच्चारण की भूल को क्षमा करें ।। ४५।।
हे माँ मैं आपके वास्तविक स्वरुप को नही जानता आप कैसी है ये भी नहीं जानता, बस मुझे इतना पता है की आपका रूप जैसा भी हो मैं उसी रूप को पुजरा हुँ । आपके सभी रूपों को नमस्कार हैं अर्थात हे अपराजिता माँ आपका स्वरुप अपरम्पार है, उसे जाना नहीं जा सकता, आपके विलक्षण स्वरुप को हमारा शत शत नमन है ।। ४६।।