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शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार से प्रारंभ - देवी दुर्गा का नवरात्र पूजन विधान

नवरात्र में देवी दुर्गा का पूजन कैसे करें?

संकल्प से लेकर हवन तक की पुरी विधि, ताकि आप अपने से अपने घर में पूर्ण विधि-विधान से पूजन कर सकें और माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

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Navratri worship method of Goddess Durga
आलेख © कॉपीराइट - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

दुर्गा पूजा विधान

शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार से प्रारंभ होकर 12 अक्टूबर 2024, शनिवार तक है।

देवी दुर्गा का नवरात्र पूजा विधान - नवरात्र में देवी दुर्गा का पूजन कैसे करें? संकल्प से लेकर हवन तक की पुरी विधि, ताकि आप अपने से अपने घर में पूर्ण विधि-विधान से पूजन कर सकें और माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

और अगर संस्कृत न आती हो तो क्या करेंगे ? अगर संस्कृत न आती हो तो माता का ध्यान कर सभी पूजा सामग्री माई को अर्पित कर मंत्र साधना करेंगे। हाँ , नर्वाण मंत्र का उच्चारण एकदम शुद्ध रखने का प्रयास करें। याद रखें, हम अपनी माता की आराधना कर रहे हैं और हमारी माई तो भाव देखती है। हमेशा कल्याण हीं करेंगी।

साल में चार बार नवरात्रि आती हैं, चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि प्रसिद्ध हैं और अन्य दो गुप्त हैं इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह के दौरान आती है। गुप्त नवरात्र में देवी के दस महाविद्याएं - काली, तारा, छिन्नमस्ता, महात्रिपुरसुन्दरी षोडशी ललिता, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करने से मनुष्य को विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

नवरात्र पूजा विधान

पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसनपर बैठ जाएं (अगर माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित है तो माँ दुर्गा की मूर्ति ओर मुख करके आसन पर बैठें)। जलसे प्रोक्षणकर शिखा बाँधे। तिलक लगाकर आचमन एवं प्राणायाम करे। संकल्प करे। दायें हाथ में जल, अक्षत, फूल लेकर अञ्जलि बाँधकर दुर्गाजीका ध्यान करे। निम्नलिखित संकल्प करे-

नवरात्रि में दुर्गा पूजन के लिए संकल्प

ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे - (अपने नगर/गांव का नाम लें) - नगरे/ ग्रामे विक्रम संवत 2081 पिंगल नाम संवत्सरे माघ मासे शुक्ल पक्षे ... तिथौ (दुर्गा पूजा के पहले दिन होगा "प्रतिपद तिथौ ") ..वासरे (दिन का नाम जैसे गुरुवार है तो "गुरु वासरे ")..(अपने गोत्र का नाम लें) ... गोत्रोत्पन्न ... (अपना नाम लें)... शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं कर्म करिष्ये ।

( उदहारण के लिए - ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । ॐ अद्य ब्रह्मणो, द्वितीयपरार्धे, श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे, कलियुगे, कलिप्रथमचरणे, बौद्धावतारे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, पटना नगरे, विक्रम संवत 2080 पिंगल नाम संवत्सरे, माघ मासे, शुक्ल पक्षे, प्रतिपद तिथौ, शनि वासरे, वाशिष्ठ गोत्रोत्पन्न, साधक प्रभात शर्मोऽहम्, सर्वमंगलकामनया, श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं कर्म करिष्ये ।)

देवी दुर्गा का ध्यान

सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः
शङ्खं चक्रधनुःशरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता ।
आमुक्ताङ्गदहारकङ्कणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला ॥
ॐ श्रीदुर्गायै नमः ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।

जो सिंहकी पीठपर विराजमान हैं, जिनके मस्तकपर चन्द्रमा का मुकुट है, जो मरकतमणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, तीन नेत्रों से सुशोभित होती हैं, जिनके भिन्न-भिन्न अंग बाँधे हुए बाजूबंद, हार, कंकण, खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरों से विभूषित हैं तथा जिनके कानों में रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाते रहते हैं, वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करनेवाली हों।

यदि प्रतिष्ठित प्रतिमा हो तो आवाहन की जगह पुष्पाञ्जलि दे, नहीं तो हाथ में पुष्पाञ्जलि लेकर दुर्गाजी का आवाहन करे।

(नोट : पूजा के समय अगर कोई सामग्री उपलब्ध नहीं हो तो मानसिक रूप से उसे चढ़ा दें )

आवाहन –

आगच्छ त्वं महादेवि! स्थाने चात्र स्थिरा भव ।
यावत् पूजां करिष्यामि तावत् त्वं सन्निधौ भव ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । दुर्गादेवीमावाहयामि। आवाहनार्थे पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि । (पुष्पाञ्जलि समर्पण करें ।)

आसन -

अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम् ।
इदं हेममयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः ।
आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि । ( रत्नमय आसन या फूल समर्पित करें ।)

पाद्य-

गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्य आनीतं तोयमुत्तमम् ।
पाद्यार्थं ते प्रदास्यामि गृहाण परमेश्वरि ॥

श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । पादयोः पाद्यं समर्पयामि । (जल चढ़ायें ।)

अर्घ्य –

गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्घ्यं सम्पादितं मया ।
गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि । (चन्दन, पुष्प, अक्षतसे युक्त अर्घ्य दें ।)

आचमन-

कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम् ।
तोयमाचमनीयार्थ गृहाण परमेश्वरि ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । आचमनं समर्पयामि। (कर्पूरसे सुवासित शीतल जल चढ़ायें ।)

स्नान -

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं देवि ! स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । स्नानार्थं जलं समर्पयामि । (गङ्गा-जल चढ़ायें ।)

स्नानाङ्ग- आचमन -

स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमनके लिये जल दें ।)

दुग्धस्नान -

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम् ।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । दुग्धस्नानं समर्पयामि। (गोदुग्ध से स्नान करायें ।)

दधिस्नान -

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।
दध्यानीतं मया देवि ! स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । दधिस्नानं समर्पयामि (गोदधि से स्नान करायें ।)

घृतस्नान –

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । घृतस्नानं समर्पयामि। (गोघृत से स्नान करायें ।)

मधुस्नान -

पुष्परेणुसमुत्पन्नं सुस्वादु मधुरं मधु ।
तेजः पुष्टिसमायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बा दुर्गादेव्यै नमः । मधुस्नानं समर्पयामि । (मधुसे स्नान करायें ।)

शर्करास्नान -

इक्षुसारसमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम् ।
मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । शर्करास्नानं समर्पयामि । (शक्करसे स्नान कराये ।)

पञ्चामृतस्नान —

पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम्।
पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ( अन्य पात्रमें पृथक् निर्मित पञ्चामृत से स्नान कराये।)

गन्धोदकस्नान -

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुमिश्रितम् ।
सलिलं देवदेवेशि शुद्धस्नानाय गृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । गन्धोदकस्नानं समर्पयामि । (मलयचन्दन और अगरुसे मिश्रित जल चढ़ाये ।)

शुद्धोदकस्नान -

शुद्धं यत् सलिलं दिव्यं गङ्गाजलसमं स्मृतम् ।
समर्पितं मया भक्त्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

आचमन -

शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(आचमनके लिये जल दे।)

वस्त्र –

पट्टयुग्मं मया दत्तं कञ्चुकेन समन्वितम् ।
परिधेहि कृत्वा मातर्दुर्गार्तिनाशिनि ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । वस्त्रोपवस्त्रं कञ्चुकीयं च समर्पयामि । (धौतवस्त्र, उपवस्त्र और कञ्चुकी निवेदित करें ।)

वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (आचमनके लिये जल दें।)

सौभाग्यसूत्र –

सौभाग्यसूत्रं वरदे सुवर्णमणिसंयुतम् ।
कण्ठे बध्नामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सदा ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । सौभाग्यसूत्रं समर्पयामि । (सौभाग्यसूत्र चढ़ायें।)

चन्दन -

श्रीखण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । चन्दनं समर्पयामि । (मलयचन्दन लगाये ।)

हरिद्राचूर्ण -

हरिद्रारञ्जिते देवि ! सुखसौभाग्यदायिनि ।
तस्मात् त्वां पूजयाम्यत्र सुखं शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । हरिद्रां समर्पयामि । (हल्दीका चूर्ण चढ़ाये।)

कुङ्कुम –

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनीकामसम्भवम् ।
कुङ्कुमेनार्चिता देवी कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । कुङ्कुमं समर्पयामि । (कुङ्कुम चढ़ाये।)

सिन्दूर —

सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसन्निभम् ।
अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरि ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । सिन्दूरं समर्पयामि। (सिन्दूर चढ़ाये ।)

कज्जल (काजल) —

चक्षुर्थ्यां कज्जलं रम्यं सुभगे शान्तिकारकम् ।
कर्पूरज्योतिसमुत्पन्नं गृहाण परमेश्वरि ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । कज्जलं समर्पयामि । (काजल चढ़ाये ।)

दूर्वाङ्कुर –

तृणकान्तमणिप्रख्यहरिताभिः सुजातिभिः ।
दूर्वाभिराभिर्भवतीं पूजयामि महेश्वरि ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि। (दूब चढ़ाये।)

बिल्वपत्र —

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। बिल्वपत्रं समर्पयामि । (बिल्वपत्र चढ़ाये ।)

आभूषण —

हारकङ्कणकेयूरमेखलाकुण्डलादिभिः ।
रत्नाढ्यं हीरकोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । आभूषणानि समर्पयामि। (आभूषण चढ़ायें ।)

पुष्पमाला -

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः ।
मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । पुष्पमालां समर्पयामि । (पुष्प एवं पुष्पमाला चढ़ायें ।)

नानापरिमलद्रव्य -

अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् ।
नानापरिमलद्रव्यं गृहाण परमेश्वरि ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि। (अबीर, गुलाल, हल्दीका चूर्ण चढ़ाये ।)

सौभाग्यपेटिका -

हरिद्रां कुङ्कुमं चैव सिन्दूरादिसमन्विताम् ।
सौभाग्यपेटिकामेतां गृहाण परमेश्वरि ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । सौभाग्यपेटिकां समर्पयामि । (सौभाग्यपेटिका समर्पण करे ।)

धूप -

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः ।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । धूपमाघ्रापयामि । (धूप दिखाये।)

दीप -

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया ।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । दीपं दर्शयामि । (घी की बत्ती दिखाये, हाथ धो ले।)

नैवेद्य -

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारार्थं भक्ष्यभोज्यं नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । नैवेद्यं निवेदयामि च। (नैवेद्य निवेदित करे ।)

आचमनीय आदि -

नैवेद्यान्ते ध्यानमाचमनीयं जलमुत्तरापोऽशनं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि । (आचमनीसे जल दे।)

ऋतुफल -

इदं फलं मया देवि स्थापितं पुरतस्तव ।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । ऋतुफलानि समर्पयामि । (ऋतुफल समर्पण करे।)

ताम्बूल -

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।
एलालवङ्गसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । ताम्बूलं समर्पयामि । (इलायची, लौंग, पूगीफलके साथ पान निवेदित करे)

दक्षिणा —

दक्षिणां हेमसहितां यथाशक्तिसमर्पिताम् ।
अनन्तफलदामेनां गृहाण परमेश्वरी ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । दक्षिणां समर्पयामि । ( दक्षिणा चढ़ाये ।)

अब श्री अम्बाजी की आरती गाते हुए आरती करें।

आरती -

कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् ।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदा भव ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि।

अब श्री अम्बाजी को कर्पूर की आरती करते हुए आरती गाएँ।

श्री दुर्गा आरती

जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामागौरी।

तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥ जय० ॥

माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को ।

उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्रबदन नीको ॥ जय० ॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै ।

रक्त-पुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ जय० ॥

केहरि वाहन राजत, खड्‍ग खप्पर धारी ।

सुर-नर मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ जय० ॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।

कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति ॥ जय० ॥

शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर-घाती ।

धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥ जय० ॥

चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे ।

मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥ जय० ॥

ब्रह्माणी, रुद्राणी तुम कमलारानी ।

आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ जय० ॥

चौंसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरूँ ।

बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू ॥ जय० ॥

तुम ही जगकी माता, तुम ही हो भरता ।

भक्तनकी दुख हरता सुख सम्पति करता ॥ जय० ॥

भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी ।

मनवांछित फल पावत, सेवत नर-नारी ॥ जय० ॥

कंचन थाल बिराजत अगर कपुर बाती ।

श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥ जय० ॥

श्री अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावै ।

कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥ जय० ॥

अब आरती के पूर्ण होने के उपरांत आरती के बाद का प्रदक्षिणा करें -

प्रदक्षिणा -

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । एकां प्रदक्षिणां समर्पयामि । (प्रदक्षिणा करे।)

मन्त्रपुष्पाञ्जलि -

श्रद्धया सिक्तया भक्त्या हार्दप्रेम्णा समर्पितः ।
मन्त्रपुष्पाञ्जलिश्चायं कृपया प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि । (पुष्पाञ्जलि समर्पित करे।)

देवी नमस्कार -

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । नमस्कारान् समर्पयामि ।
(नमस्कार करे, इसके बाद चरणोदक सिरपर चढ़ाये।)

क्षमा-याचना -

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। क्षमायाचनां समर्पयामि । (क्षमा याचना करे।)

अर्पण -

ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु ।
विष्णवे नमः, विष्णवे नमः, विष्णवे नमः ।

इस प्रकार देवी दुर्गा का पूजा विधान सम्पूर्ण हुआ। अगर आप को संस्कृत पढ़ने में असुविधा हो तो आप माता को ध्यान कर सब अर्पित करते जाएँ। यह पूजा की विधि पुरे नवरात्र करना है। फिर इसके बाद दुर्गा पाठ , मंत्र सिद्ध जो भी करना हो ध्यान माता में केंद्रित कर करें। माँ दुर्गा कल्याण करेंगी। नवमी के दिन हवन करें। हवन, कुमारी कन्या पूजन का मंत्र विधि भी हमने दिया है।

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कुमारी कन्या पूजन का मंत्र विधि के लिए क्लिक करें

॥देवी दुर्गा का पूजा विधान सम्पूर्ण॥

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