श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
Durga Ashtottara Shatanamavali
श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
॥ श्रीदुर्गायै नमः ॥
ईश्वर उवाच
शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने । यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥ १ ॥
शंकरजी पार्वतीजीसे कहते हैं- कमलानने ! अब मैं अष्टोत्तरशत नामका वर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण) मात्र पर साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं ॥ १ ॥
श्लोक २ से १५ तक का हिंदी भावार्थ एक साथ दिया गया है ताकि माँ दुर्गा के १०८ नामों को एक साथ पाठ किया जा सके |
ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी । आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥ २ ॥
पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः। मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥ ३ ॥
सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी । अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥ ४॥
शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा । सर्वविद्या दक्षकन्या अपर्णानेकवर्णा पट्टाम्बरपरीधाना च दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ ५॥
अपर्णनिकारवर्ना च पाटला पाटलावती । पट्टाम्बरपरिधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ॥ ६ ॥
अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी । वनदुर्गा मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥ ७ ॥
ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा । चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥ ८ ॥
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा । बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ॥ ९ ॥
निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी । मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ १० ॥
सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी । सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥ ११ ।।
अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी । कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥ १२ ॥
अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा । महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ॥ १३ ॥
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी । नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥ १४ ॥
शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी । कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥ १५ ॥
1 ॐ सती, 2 साध्वी, 3 भवप्रीता (भगवान् शिवपर प्रीति रखनेवाली), 4 भवानी, 5 भवमोचनी (संसारबन्धनसे मुक्त करनेवाली), 6 आर्या, 7 दुर्गा, 8 जया, 9 आद्या, 10 त्रिनेत्रा, 11 शूलधारिणी, 12 पिनाकधारिणी, 13 चित्रा, 14 चण्डघण्टा (प्रचण्ड स्वरसे घण्टानाद करनेवाली), 15 महातपाः ( भारी तपस्या करनेवाली), 16 मनः (मनन-शक्ति), 17 बुद्धिः (बोधशक्ति), 18 अहंकारा (अहंताका आश्रय), 19 चित्तरूपा, 2० चिता, 21 चितिः (चेतना), 22 सर्वमन्त्रमयी, 23 सत्ता (सत्-स्वरूपा), 24 सत्यानन्दस्वरूपिणी, 25 अनन्ता (जिनके स्वरूपका कहीं अन्त नहीं), 26 भाविनी (सबको उत्पन्न करनेवाली), 27 भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य), 28 भव्या (कल्याणरूपा), 29 अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं), 3० सदागतिः, 31 शाम्भवी (शिवप्रिया), 32 देवमाता, 33 चिन्ता, 34 रत्नप्रिया, 35 सर्वविद्या, 36 दक्षकन्या, 37 दक्षयज्ञविनाशिनी, 38 अपर्णा (तपस्याके समय पत्तेको भी न खानेवाली), 39 अनेकवर्णा (अनेक रंगोंवाली), 4० पाटला (लाल रंगवाली), 41 पाटलावती (गुलाबके फूल या लाल फूल धारण करनेवाली), 42 पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्र पहननेवाली), 43 कलमञ्जीररञ्जिनी (मधुर ध्वनि करनेवाले मञ्जीरको धारण करके प्रसन्न रहनेवाली), 44 अमेयविक्रमा (असीम पराक्रमवाली), 45 क्रूरा (दैत्योंके प्रति कठोर), 46 सुन्दरी, 47 सुरसुन्दरी, 48 वनदुर्गा, 49 मातङ्गी, 5० मतङ्गमुनिपूजिता, 51 ब्राह्मी, 52 माहेश्वरी, 53 ऐन्द्री, 54 कौमारी, 55 वैष्णवी, 56 चामुण्डा, 57 वाराही, 58 लक्ष्मीः, 59 पुरुषाकृतिः, 6० विमला, 61 उत्कर्षिणी, 62 ज्ञाना, 63 क्रिया, 64 नित्या, 65 बुद्धिदा, 66 बहुला, 67 बहुलप्रेमा, 68 सर्ववाहनवाहना, 69 निशुम्भशुम्भहननी, 7० महिषासुरमर्दिनी 71 मधुकैटभहन्त्री, 72 चण्डमुण्डविनाशिनी, 73 सर्वासुरविनाशा, 74 सर्वदानवघातिनी, 75 सर्वशास्त्रमयी, 76 सत्या, 77 सर्वास्त्रधारिणी 78 अनेकशस्त्रहस्ता, 79 अनेकास्त्रधारिणी, 8० कुमारी, 81 एककन्या, 82 कैशोरी, 83 युवती, 84 यतिः, 85 अप्रौढा, 86 प्रौढा, 87 वृद्धमाता, 88 बलप्रदा, 89 महोदरी, 9० मुक्तकेशी, 91 घोररूपा, 92 महाबला, 93 अग्निज्वाला, 94 रौद्रमुखी, 95 कालरात्रिः, 96 तपस्विनी, 97 नारायणी, 98 भद्रकाली, 99 विष्णुमाया, 1०० जलोदरी, 1०1 शिवदूती, 1०2 कराली, 1०3 अनन्ता (विनाशरहिता), 1०4 परमेश्वरी, 1०5 कात्यायनी, 1०6 सावित्री, 1०7 प्रत्यक्षा, 1०8 ब्रह्मवादिनी ॥ 2-15 ॥
य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् । नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥ 16 ॥
देवी पार्वती ! जो प्रतिदिन दुर्गाजीके इस अष्टोत्तरशतनामका पाठ करता है, उसके लिये तीनों लोकोंमें कुछ भी असाध्य नहीं है ॥ 16॥
धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च । चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥ 17 ॥
वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्तमें सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है ॥ 17 ॥
कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् । पूजयेत् परया तस्य भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥ 18 ॥
कुमारीका पूजन और देवी सुरेश्वरीका ध्यान करके पराभक्तिके साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशत नामका पाठ आरम्भ करे ॥ 18 ॥
तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि । राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥ 19 ॥
देवि ! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओंसे भी सिद्धि प्राप्त होती है। राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मीको प्राप्त कर लेता ॥ 19 ॥
गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण। विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ।। 2० ।।
गोरोचन, लाक्षा, कुङ्कुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु–इन वस्तुओंको एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्रको धारण करता है, वह शिवके तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता है ॥ 2० ॥
भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते । विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ॥ 21 ॥
भौमवती अमावास्याकी आधी रातमें, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्रपर हों, उस समय इस स्तोत्रको लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है ॥ 21 ॥