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दस महाविद्या

काली, तारा, छिन्नमस्ता, महात्रिपुरसुन्दरी षोडशी ललिता, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी

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दस महाविद्या काली, तारा, छिन्नमस्ता, महात्रिपुरसुन्दरी षोडशी ललिता, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी Das Mahaavidya

दस महाविद्या

काली, तारा, छिन्नमस्ता, महात्रिपुरसुन्दरी षोडशी ललिता, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी

दश महाविद्या में काली, तारा, षोडषी और भुवनेश्वरी ये चार महाविद्याएँ हैं। इसके बाद भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती ये तीनों विद्याएँ हैं। फिर बगला, मातंगी, कमला ये तीनों सिद्ध विद्याएँ हैं। प्राचीन परम्परा के आधार पर इन दश महाविद्याओं को दो कुलों में बाँटा गया है।
1. पहला कुल कालीकुल है जिसमें काली, तारा, भुवनेश्वरी और छिन्नमस्ता माँ हैं।
2. दूसरा कुल श्रीकुल है जिसमें षोडषी, बगला, भैरवी, कमला, धूमावती और मातंगी माँ हैं।
महाविद्या की साधना में किसी एक कुल की साधना का विधान है। दश महाविद्याओं का पूजन करते समय उनके दाईं ओर शिव का पूजन करने का विधान है।

महाविद्या और उनके शिव रूप का नाम-क्रम निम्न प्रकार से है।
1. काली महाविद्या के शिव रूप का नाम महाकाल है।
2. तारा महाविद्या के शिव रूप का नाम अक्षोभ्य है।
3. षोडषी महाविद्या के शिव रूप का नाम कामेश्वर है।
4. भुवनेश्वरी महाविद्या के शिव रूप का नाम त्र्यम्बक है।
5. भैरवी महाविद्या के शिव रूप का नाम दक्षिण मूर्ति है।
6. छिन्नमस्ता महाविद्या के शिव रूप का नाम क्रोध भैरव
7. धूमावती - यह विधवा रूपिणी हैं अत: इस महाविद्या के शिव नहीं हैं।
8. बगला महाविद्या के शिव रूप का नाम मृत्युंजय है।
9. मातंगी महाविद्या के शिव रूप का नाम मातंग (सदाशिव) है।
10. कमला महाविद्या के शिव रूप का नाम विष्णुरूप (नारायण) है।

महाविद्या काली

मां काली रुद्रावतार महाकालेश्वर की शक्ति हैं। 'काली' की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से हुई है जो सबको अपना ग्रास बना लेता है। माँ का यह रूप है जो नाश करने वाला है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए है जो दानवीय प्रकृति के हैं, जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। इनकी साधना से विरोधियों पर विजय प्राप्ति होती है। काली, कालिका या महाकाली मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी हैं। यह सुन्दरी रूप वाली आदिशक्ति दुर्गा माता का काला, विकराल और भयप्रद रूप है, जिसकी उत्पत्ति असुरों के संहार के लिये हुई थी। उनको विशेषतः बंगाल, ओडिशा और असम में पूजा जाता है। काली को शाक्त परम्परा की दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। वैष्णो देवी में दाईं पिंडी माता महाकाली की ही है।

सनातन धर्म के शाक्त सम्प्रदाय के अलावा तांत्रिक बौद्ध और अन्य सम्प्रदायों में भी काली की पूजा होती है। तांत्रिक बौद्ध धर्म में भयानक रूप वाली योगिनियों , डाकिनियों जैसे वज्रयोगिनी और क्रोधकाली की पूजा होती है। तिब्बत में क्रोधकाली (अन्य नाम: क्रोदिकाली, कालिका, क्रोधेश्वरी, कृष्णा क्रोधिनी आदि) को 'त्रोमा नग्मो' कहते हैं। सिखों के दशम गुरु गुरु गोविन्द सिंह ने चण्डी दी वार नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की थी।

महाविद्या तारा

तारकेश्वर रुद्र की शक्ति मां तारा की सबसे पहले उपासना महर्षि वसिष्ठ ने की थी। जब काली ने नीला रूप ग्रहण किया तो वह तारा कहलाई। यह देवी तारक है अर्थात् मोक्ष देती हैं। अतः इन्हें तारा कहते हैं। इन्हें तांत्रिकों की देवी माना गया है। ये पार्वती की स्वरूप हैं। इनके तीन सर्वाधिक प्रसिद्ध रूप हैं- एकजता, उग्रतारा और नीलसरस्वती। उपासना करने पर यह देवी वाक्य सिद्धि प्रदान करती है, अतः इन्हें नील- सरस्वती भी कहते हैं। मां तारा की उपासना से आर्थिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यह भी मान्यता है कि हयग्रीव का वध करने के लिये देवी ने नीला विग्रह ग्रहण किया था। यह शीघ्र प्रभावी हैं अतः इन्हें उग्रा भी कहते हैं। उग्र होने के कारण इन्हें उग्रतारा भी कहा जाता है। भयानक से भयानक संकटादि में भी अपने साधक को यह देवी सुरक्षित रखती है अतः इन्हें उग्रतारिणी भी कहते हैं। कालिका को भी उग्रतारा कहा जाता है। इनका उग्रचण्डा तथा उग्रतारा स्वरूप देवी का ही स्वरूप है। तारा रूपी द्वितीय महाविद्या अपने साधकों पर अत्यधिक शीघ्रता से प्रसन्न होकर दर्शन दिया करती हैं।

महाविद्या षोडषी त्रिपुर सुंदरी

षोडेश्वर रुद्रावतार की शक्ति को ललिता या राज राजेश्वरी भी कहा जाता है। इनकी पूजा से धन, ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महाविद्या भुवनेश्वरी

ये भुवनेश्वर रुद्र की शक्ति हैं। इनकी साधना से संतान सुख की प्राप्ति होती है।

महाविद्या छिन्नमस्ता

छिन्नमस्तक रुद्र की शक्ति मां छिन्नमस्ता की साधना से सभी चिंताएं दूर होती हैं और समस्त कामनाएं पूरी होती हैं।

महाविद्या त्रिपुर भैरवी

रुद्र भैरवनाथ की शक्ति हैं। इनकी साधना से जीव बंधनों से मुक्त हो जाता है।

महाविद्या धूमावती

धूमेश्वर रुद्र की शक्ति हैं। इनकी आराधना से सभी संकट दूर होते हैं। इनकी पूजा विवाहिता नहीं बल्कि विधवा स्त्रियां करती हैं।

महाविद्या बगलामुखी

बगलेश्वर रुद्र की शक्ति मां बगलामुखी की साधना से मनुष्यों को भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि प्राप्त होती है।

महाविद्या मातंगी

मतंगेश्वर रुद्र की शक्ति हैं। इनकी उपासना से गृहस्थ जीवन में खुशहाली आती है।

महाविद्या कमला

कमलेश्वर रुद्र की शक्ति हैं। इनकी कृपा से मनुष्य को धन-संतान की प्राप्ति होती है।

दश महाविद्याओं से ही भगवान विष्णु के दस अवतार भी प्रगट हुए हैं ऐसी शाक्त मान्यता है। इसमें कलियुग में होने वाले कल्कि अवतार नहीं हैं। माना गया है कि उनके अवतार का अवतरण माँ के श्री दुर्गा रूप से होगा।

1. काली से श्री कृष्ण का अवतार हुआ माना गया है।
2. तारा से श्री मत्स्य का अवतार हुआ माना गया है।
3. षोडषी से श्री परशुराम का अवतार हुआ माना गया है।
4. भुवनेश्वरी से श्री वामन का अवतार हुआ माना गया है।
5. भैरवी से श्री बलराम का अवतार हुआ माना गया है।
6. छिन्नमस्ता से श्री नृसिंह का अवतार हुआ माना गया है।
7. धूमावती से श्री वाराह का अवतार हुआ माना गया है।
8. बगला से श्री कूर्म का अवतार हुआ माना गया है।
9. मातंगी से श्री राम का अवतार हुआ माना गया है।
10. कमला से श्री बुद्ध का अवतार हुआ माना गया है।

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