हनुमान जी के लिए दीपदान-विधि
Deepdan method for Hanuman ji

हनुमान जी के लिए दीपदान-विधि
नारद पुराण में हनुमानजी के लिए दीपदान-विधि का वर्णन है जिसमें दीपकपात्र का प्रमाण, तेल का मान, द्रव्य-प्रमाण तथा तंतु (बत्ती) का मान-इन सबका क्रमशः वर्णन किया गया है। हनुमान जी को पांच, सात या नौ दीपक का दान करना चाहिए। सुगन्धित तेल से जलने वाले दीपक का कोई मान नहीं है। उसका मान अपनी भक्ति भाव के अनुसार ही माना गया है।
हनुमानजी के देव-प्रतिमा के आगे दीपदान करने के अलावे स्फटिकमय शिवलिङ्ग के समीप, शालग्राम शिला के निकट हनुमानजी के लिये किया हुआ दीपदान नाना प्रकार के भोग और लक्ष्मी की प्राप्ति का हेतु कहा गया है। विघ्न तथा बड़े संकटों का नाश करने के लिये गणेशजी के निकट हनुमानजी के उद्देश्य से दीपदान करना चाहिए। व्याधि नाश तथा दुष्ट ग्रहों रक्षा के लिए हनुमानजी को चौराहे पर दीपदान करना चाहिए। सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिए पीपल और वट वृक्ष के मूल भाग में हनुमान जी को दीपदान करना चाहिए।
दीपदान के समय हनुमान जी की प्रतिमा दूध, दही, मक्खन या गोबर से बनाने का विधान है। सिंह के समान पराक्रमी वीरवर हनुमानजी को दक्षिणाभिमुख करके उनके पैर को रीछ पर रखा हुआ प्रतिमा बनावें। उनका मस्तक किरीट से सुशोभित होना चाहिये। नित्य दीपदान के समय हनुमान जी के द्वावादशाक्षर मन्त्रों से दीपदान करना चाहिए। जो प्रतिदिन विधिपूर्वक हनुमानजीको दीप देता है, उसके लिये तीनों लोकोंमें कुछ भी असाध्य नहीं है।
(किरीट शोभा, विजय या राज्यश्री के चिह्नस्वरूप माथे पर बाँधे जानवाले नुकीला या एक शिखरवाला आलंकारिक उपकरण। आप इसे मुकुट सामान समझिये , परन्तु मुकुट अर्धचंद्र के आकार का होता है और किरीट एक शिखरवाला। इसी प्रकार और माल तीन शिखरोवाला होता है। )
दीप बनाने के विधान
सोमवार को पंच धान्य लेकर उसे जल में डुबाकर रखे। गेहूँ, तिल, उड़द, मूँग और चावल ये पंच धान्य कहे गये हैं। फिर प्रमाण के अनुसार कुमारी कन्या के हाथ से उसको पिसाना चाहिये। पीसे हुए धान्य को शुद्ध पात्र में रखकर नदी के जलसे उसकी पिण्ड़ी बनानी चाहिये। उसी से शुद्ध एवं एकाग्रचित्त होकर दीपपात्र बनाये। जिस समय दीपक जलाया जाता हो, हनुमत्कवच का पाठ करे। मंगलवार को शुद्ध भूमि पर रखकर दीपदान करें। हनुमानजीके के लिए पंचधान्यक आटा से दीपक बना कर, उससे दीपदान से सदा संपूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
हनुमान जी के दीपदान में दिया की बाती बनाने का विधान
हनुमान जी के दीपदान में दिया की बाती का विशेष नियम होता है। हनुमानजी के दीपदान में लाल सूत का होना बहुत अच्छा है। बाती ग्यारह तन्तु के होने चाहिए। मार्ग में जो दीपक जलाये जाते हैं, उनकी बत्ती में इक्कीस तन्तु होने चाहिये। जैसी तेल का मान अपने मन की रुचि के अनुसार रखें । नित्य अथवा नैमित्तिक कर्मों ( किसी विशेष प्रयोजन की सिद्धि के लिये किया जाने वाला कर्म ) के अवसर पर हनुमानजी की प्रतिमा के समीप अथवा शिव-मन्दिर में दीपदान करना चाहिये।
हनुमान जी का पूजन विधि -
गोबर से लिपी हुई भूमि पर एकाग्रचित्त हो षट्कोण अङ्कित करे। उसके बाह्यभाग में अष्टदल कमल बनाये। उस कमल में दीपक रखे। शैव अथवा वैष्णव पीठ पर अञ्जनीनन्दन हनुमानजी की पूजा करे। छः कोणों के अन्तराल में ह्रौं हस्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं हस्ख्फें हसौं - इन छः कूटों का उल्लेख करे। छहों कोणों में बीज सहित छः अङ्गों ( मस्तक, ललाट, दोनों नेत्र, मुखकण्ठ, दोनों बाहु, हृदय, कुक्षि, नाभि, लिङ्ग, दोनों जानु) को लिखें । मध्य में सौम्यका उल्लेख करे और उसी में पवननन्दन हनुमानजी की पूजा करके छः कोणों में छः अङ्गों तथा छः नामों की पहले बताये अनुसार पूजा करे। कमल के अष्टदलों में क्रमशः इन वानरों की पूजा करनी चाहिये-
सुग्रीवाय नमः, अङ्गदाय नमः, सुषेणाय नमः, नलाय नमः, नीलाय नमः, जाम्बवते नमः, प्रहस्ताय नमः, सुवेषाय नमः ।
तत्पश्चात् षडङ्गमें देवताओंका पूजन करे -
अञ्जनापुत्राय नमः, रुद्रमूर्तये नमः, वायुसुताय नमः, जानकीजीवनाय नमः, रामदूताय नमः, ब्रह्मास्त्रनिवारणाय नमः ।
फिर पञ्चोपचार (गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य) से इन सबका पूजन करके कुश और जल -हाथ में लेकर दीपदान का संकल्प करें । उसके बाद दीप-मन्त्र बोले । श्रेष्ठ साधक उत्तराभिमुख हो उस मन्त्र को कूट-संख्या के बराबर (छः बार) जपकर हाथमें लिये हुए जलको भूमिपर गिरा दे। तदनन्तर दोनों हाथ जोड़कर यथाशक्ति मन्त्र जप करे। फिर इस प्रकार कहे-
हनुमानजी ! उत्तराभिमुख अर्पित किये हुए इस श्रेष्ठ दीपक से प्रसन्न होकर आप ऐसी कृपा करें, जिससे मेरे सारे मनोरथ पूर्ण हो जायँ ।
नारदपुराण से हनुमानजी के लिये रहस्यसहित दीपदान-विधिका वर्णन
नारद पुराण में कहा गया है कि हनुमान जी को पुष्प से वासित तिल के द्वारा दिया गया दीपक संपूर्ण मनोकामनाएं देने वाला माना गया है। किसी पथिक के आने पर उसकी सेवा के लिए तिल का तेल अर्पण किया जाता है तो उसे लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
रोग के नाश के लिए के लिये दीपदान करना
रोग के नाश के लिए हनुमान जी को सरसों के दीपदान करना चाहिए। सरसों का तेल रोग नाश करने वाला है।
लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए दीपदान करना -
लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए हनुमान जी को कस्तूरी के दीप का उपयोग किया जाता है। कन्या-प्राप्ति के लिए इलायची, लौंग, कपूर और कस्तूरी के दीपक का विधान दिया गया है।
दीपदान के लिए तेरह द्रव्य उपयुक्त होते हैं- गोबर, मिट्टी, मषी, आलता, सिन्दूर, लाल चन्दन, श्वेत चन्दन, मधु, कस्तूरी, दही, दूध, मक्खन और घी।
बालक आदिकी रक्षा के लिये दीपदान करना -
बालक आदिकी रक्षा, चोर आदि के भय का नाश आदि कार्यों में गाय का गोबर उत्तम कहा गया है। वह भी भूमिपर पड़ा हो तो नहीं लेना चाहिये। जब गाय गोबर कर रही
हो तो किसी पात्र में ऊपर-ही-ऊपर उसे रोप लेना चाहिये।
खोये हुए द्रव्यकी पुनः प्राप्तिके लिये दीपदान करना -
गोबर दो प्रकार के होते हैं - गायका और भैंस का। खोये हुए द्रव्यकी पुनः प्राप्तिके लिये दीपदान करना हो तो उसमें भैंसके गोबर का उपयोग आवश्यक माना गया है। गोपीचन्दन से (मिट्टी चार प्रकारकी कही गयी है- सफेद, पीली, लाल और काली। ) चौकोर मण्डल बनाकर उसके मध्यभाग में भैस के गोबर से हनुमानजी की मूर्ति बनाये। मन्त्रोपासक एकाग्रचित्त हो बीज और क्रोध (ह्रूं ) से उनकी पूँछ अङ्कित करें । फिर ऐसी मूर्तिको नहलाये और गुड़ से तिलक करे तथा कमल के समान रंगवाला धूप जो शालवृक्ष की गोंद से बना हो, निवेदन करे। पाँच बत्तियों के साथ तेल का दीपक जलाकर अर्पण करे। इसके बाद (हाथ धोकर) श्रेष्ठ साधक दही-भात का नैवेद्य हनुमान जी को निवेदन करे। उस समय वह तीन बार शेष (आ) सहित विष (म्) का उच्चारण करे। ऐसा करनेपर खोयी हुई भैंसों, गौओं तथा दास-दासियोंकी भी प्राप्ति हो जाती है।
चोर एवं सर्प आदि दुष्ट जीवों का भय से मुक्ति के लिये दीपदान करना
चोर एवं सर्प आदि दुष्ट जीवों का भय प्राप्त होने पर 'हरताल' (गंधक तथा संखिया के योग से बना एक पीला खनिज द्रव्य) से चार दरवाजे का सुन्दर गृह बनाये। पूर्व के द्वार पर हाथी की मूर्ति बिठाये और दक्षिण द्वार पर भैंसे की, पश्चिम द्वार पर सर्प और उत्तर द्वार पर व्याघ्र स्थापित करे। इसी प्रकार क्रम से पूर्वादि द्वारों पर खड्ग, छुरी, दण्ड और मुग्दर अङ्कित करके मध्य भाग में भैस के गोबर से मूर्ति बनाये। उसके हाथ में डमरू धारण कराये और यत्नपूर्वक यह चेष्टा करे कि मूर्ति से ऐसा भाव प्रकट हो मानो वह चकित नेत्रों से देख रही है। उसे दूध से नहलाकर उसके ऊपर लाल चन्दन लगाये। चमेली के फूलों से उसकी पूजा करके शुद्ध धूपकी गन्ध दे। घी का दीपक देकर खीर का नैवेद्य अर्पण करे। गगन (ह), दीपिका (उ) और इन्दु (अनुस्वार) अर्थात् 'हुं' और शस्त्र (फट्) - यह आराध्यदेवता के आगे जपे। इस प्रकार सात दिन करके मनुष्य भारी भय से मुक्त हो जाता है। यह प्रयोग मंगलवार को शुरू करना चाहिये।
शत्रु-सेनासे भय प्राप्त होने पर मुक्ति के लिये दीपदान करना
शत्रु-सेनासे भय प्राप्त होने पर गेरूसे मण्डल बनाकर उसके भीतर थोड़ा झुका हुआ ताड़का वृक्ष अङ्कित करे। उसपर से लटकती हुई हनुमानजी की प्रतिमा गोबर से बनाये। उनके बायें हाथ में ताड़का अग्रभाग और दाहिने में ज्ञान-मुद्रा हो। ताड़की जड़से एक हाथ दूर अपनी दिशामें एक चौकोर मण्डल बनाये । उसके मध्यभागमें मूर्ति अङ्कित करे। उसका मुख दक्षिणकी ओर हो, वह हनुमन्मूर्ति बहुत सुन्दर बनी हो, हृदयपर अञ्जलि बाँधे बैठी हो। उसे जलसे स्नान कराकर यथासम्भव गन्ध आदि उपचार अर्पण करे। फिर घृतमिश्रित खिचड़ीका नैवेद्य निवेदन करे और उसके आगे 'किलि-किलि' का जप करे। प्रतिदिन ऐसा करनेपर पथिकों का समागम अवश्य होता है।