श्री हनुमान पंचक मेवाड़ी
Shri Hanuman Panchak Mewari
श्री हनुमान पंचक मेवाड़ी
मेवाड़ी बोली के महाकवि श्री चतुरसिंह जी द्वारा रचित श्री हनुमान पञ्चक। हमारे राजस्थान के साधकों / पाठकों का विशेष जोर था की इस श्री हनुमान पंचक को सनातनशक्ति डॉट इन पर प्रकाशित किया जाय। हमें भी सनातनी समाज के ऐसे उत्साह देख काफी सुख मिलता है। ईश्वर आप सबका कल्याण करें।
- साधक प्रभात
श्री हनुमान पंचक मेवाड़ी
दोहा
सञ्चक सुख कञ्चक कवच पञ्चक पूरन बान।
रञ्चक रञ्चक कष्ट ना हनुमत पञ्चक जान ॥
मत्तगयन्द छन्द
ग्राहि नसाहि पठाहि दई, दिवदेवमहाहि सराहि सिधारी।
वीर समीरन श्री रघुवीरन, धीरहिं पीर गम्भीर विदारी ॥
कन्द अनन्द सुअञ्जनिनन्द, सदा खलवृन्दन मन्दजहारी।
भूधर को घर के कर ऊपर निर्जन केजुद की जर जारी ॥1 ॥
बालि सहोदर पालि लयो हरि कालि पतालिहु डालि दई है।
भालि मरालिसि सीय करालि बिडालि निशालि बिहालि भई है ।।
डालि डरालि महालिय राय गजालिन चालि चपेट लई है।
ख्यालिहिं शालि दई गन्ध कालि कपाल उत्तालि बहालि गयी है ।।2।।
आसुविभावसु पासु गये अरु तांसु सुहासु गरासु धर्यो है।
अच्छ सुबच्छन तच्छन तोरि स रच्छन पच्छन पच्छ कर्यो ।
आर अपार कु कार पछार समीर कुमार समार भर्यो है।
को हनुमान् समान जहान बखानत आज अमान भर्यो है ।।३ ।।
अञ्जनि को सुत भञ्जन भीरन सञ्जन रञ्जन पञ्ज रहा है।
रुद्र समुद्रहि छुद्र कियो पुनि कुद्ध रसाधर ऊर्द्ध लहा है।
मोहिन ओप कहो पतऊ तुब जोप दया करु तोप कहा है।
गथ्थ अकथ्थ बनत्त कहा हनुमत्त तु हथ्थ समथ्थ सहा है ।।4।।
भान प्रभानन कै अनुमान गये असमान बिहान निहारी।
खान लगे मधवानहु को सुकियो अपमान गुमानहिं गारी ।।
प्राण परान लगे लच्छमानतु आनन गानपती गिरधारी।
बान निवाय सुजान महानसु है हनुमान् करान हमारी ।।5।।
दोहा
बसुदिशि औं पौराण दृग इक इक आधे आन।
सित नवमी इष इन्दु दिन पञ्चक जन्म जहान ।।